पटना: हिंदू धर्म में संक्रांति का विशेष महत्व माना जाता है. सूर्य की राशि परिवर्तन को संक्रांति के रूप में जाना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार साल में 12 संक्रांति होते हैं जिसमें से मेष संक्रांति भी एक है. इस संक्रांति को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है. बिहार में सतुआनी और पंजाब में बैसाखी के साथ साथ अलग-अलग राज्यों में कई नामों से जाना जाता है.
पढ़ें- महागठबंधन में खरमास इफेक्ट: बीजेपी का बयान- '2 विधायकों ने नीतीश के खिलाफ बदले सुर, कई और बदलेंगे'
आज शाम इस समय खत्म होगा खरमास: ज्योतिष विद मनोज मिश्रा ने बताया कि मेष संक्रांति 14 अप्रैल शुक्रवार यानी कि आज संध्या 5:26 मिनट पर सूर्यदेव मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करेंगे. सूर्य का राशि परिवर्तन मेष राशि में होगा इसलिए इसे मेष संक्रांति के नाम से जाना जाता है. 14 अप्रैल को 5:26 पर पर सूर्य ग्रह का संक्रमण होगा. सूर्य ग्रह मीन राशि से मेष राशि में संक्रमण करेंगे.
1 महीने बाद शुभ कार्य प्रारंभ: जब भी सूर्य धनु राशि और मीन राशि में जाते हैं तो खरमास शुरू हो जाता है. खरमास जैसे ही चालू होता है शुभ कार्य बंद हो जाते हैं. लेकिन जैसे ही 14 अप्रैल को सूर्य मीन राशि से मेष राशि में जाएंगे खरमास समाप्त हो जाएगा. इसके साथ ही शुभ कार्य भी शुरू हो जाएंगे. शुभ कार्य का अर्थ होता है गृह प्रवेश, नए घर का निर्माण कार्य चालू करना, उपनयन, मुंडन, शादी विवाह और शादी से संबंधित कार्य करना.
शादी विवाह का नहीं है शुभ मुहूर्त: 15 अप्रैल से सभी शुभ कार्य चालू हो जाएंगे. हालांकि इस महीने पर शादी विवाह का शुभ मुहूर्त नहीं होने के कारण शहनाई नहीं बजेगी. लेकिन शादी विवाह से संबंधित सभी कार्य 15 अप्रैल से शुरू हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि शादी का कार्यक्रम 1 मई से चालू होगा, जो पूरे मई-जून उसके बाद नवंबर दिसम्बर महीने में शादी के अच्छे योग हैं. अप्रैल में शादी का योग नहीं है इसीलिए शादी नहीं होगी और बाकी सारे शुभ कार्य हो सकते हैं.
"मेष संक्रांति का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है क्योंकि सौर वर्ष की शुरुआत मेष संक्रांति से हो जाती है. गंगा स्नान के साथ-साथ पूजा-पाठ का विशेष महत्व है. संक्रांति पर श्रद्धालुओं को गंगा स्नान करके गरीब और ब्राह्मणों को दान भी करना चाहिए. इससे घर में खुशहाली बनी रहती है. साथ ही साथ पितृ तर्पण के लिए भी मेष संक्रांति विशेष शुभ माना जाता है. बिहार में मेष संक्रांति को सतुआनी के रूप में मनाया जाता है. बिहार के लोग सतुआनी के मौके पर गंगा स्नान करते हैं और सतुआ पीते हैं."- मनोज मिश्रा, ज्योतिष विद