पटनाः बिहार में 2020 के लिए सज रही सत्ता की सियासत में हर रंग की राजनीति अपनी तैयारी में जुट गई है. देश को जोड़ने और देश से जुड़ने के सियासी रंग की फसल को फिर से जमीनी रंग दिया जा रहा है. जिसकी लहलहाती फसल को राजनीतिक दलों ने कई बार काटा है. बिहार अपने आप में विविध परिवेश को समेटे हुए है और अंतहीन वादों का गवाह भी रहा है. देश के लिए फिर से आजादी की मांग कर चर्चा में आए कन्हैया कुमार अपनी राजनीतिक लीला में जुट गए हैं.
मैं गांधी मैदान हूं...
वाम दल के बैनर के नीचे कन्हैया ने गांधी मैदान में नए भारत के लिए जो भाव भरा है, उससे पहले से ही खुद गांधी मैदान भी अभिलाषा का सेहरा बांधे कन्हैया वाली आजादी का सपना सजोए, अपने अतीत की कहानी पर अपनी ही बात कह रहा है- कि मैं गांधी मैदान हूं... वहीं गांधी मैदान जो महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से लेकर आजाद भारत के इतिहास का मूक गवाह हूं. जय प्रकाश नारयण के स्वराज्य का हुंकार हूं, इतना ही नहीं हर दौर में बदलती राज्य की तस्वीरों को मैंने अपने अंदर समाया है. बिहार की जातिवाद की राजनीति के कई दर्द भी अपने दामन में छुपाकर रखे हैं.
बिहार में नई इबारत लिखने की कोशिश
आज एक बार फिर गांधी के इसी मैदान से देश को नई आजादी दिलाने की बात करने वाले लोग बिहार की राजनीति में नई इबारत लिखने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन ये कहना मुश्किल है कि इस नए बिहार और नई आजादी के लिए बिहार की कुर्बानी और मानवीय व्यवस्था के लिए लोकतंत्र को स्थापित करने वाली यह धरती अपने इस इरादे में कहां तक सफल होगी.
गांधी मैदान में बताए गए आजादी के मायने
हमें चाहिए आजादी के नारों को आम आदमी के दिलों दिमाग में भरने वाले कन्हैया आज संविधान को बचाने की बात करे रहे हैं. उन्होंने गांधी मैदान में लोगों को बताने की यह कोशिश की कि जो आजादी गांधी ने आप को दिलाई थी, वह देश के बाहरी दुश्मनों से दिलाई थी, लेकिन अब हम जिस अजादी की बात कर रहे हैं, वह देश के अंदर बैठे दुशमनों से आजादी की बात है, जिनसे हमारे देश और देश के संविधान को खतरा है.
खूब हुआ जन-गण-मन यात्रा का विरोध
जेएनयू की गोद से निकले कन्हैया कुमार की इस महारैली में सामाजिक-राजनीतिक जगत की युवा हस्तियां और बालीवुड के सितारे भी शामिल हुए. इसी महारैली के लिए भाकपा नेता कन्हैया कुमार ने पिछले 30 जनवरी से जन-गण-मन यात्रा पर सभी जिलों का दौरा किया. इस दौरान कन्हैया कुमार के काफिले पर नौ बार अलग-अलग जिलों में हमले भी किए गए. कई जगह गाड़ियां तोड़ी गईं और पथराव किया गया. भोजपुर के आरा में तो मंच तक जला दिया गया. मामला साफ है कि जिस आजाादी की बात कन्हैया कर रहे हैं उसके लिए बिहार का मन तैयार नहीं है.
देश के लोगों को नई आजादी दिलाने की जिद
इन सबके बावजूद कन्हैया कुमार ने देश के लोगों को आजादी दिलाने की जो जिद पकड़ी है, वह छोड़ी नहीं है. खास करके वह बिहार के लोगों को इस नई आजादी का मजा चखाकर ही दम लेंगे, क्योंकि बिहार का यह साल चुवावी साल है. मौके की नजाकत को भापना खूब आता है, हमें चाहिए आजादी, एनआरसी और सीसीए की आड़ में सीपीआई की ठंडी पड़ चुकी राजनाति में दोबारा जान डालने का इससे अच्छा मौका भी नहीं मिलेगा.
लोकतंत्र की धरती बिहार को समझने की जरूरत
लेकिन सवाल यही है कि वाम दल जो कभी आम लोगों की ताकत था, आज बिखर क्यों गया है. कई धड़ों में बटे वाम दल को फिर से एक सियासत का हिस्सा बनाने और राजनाति में आने लिए आजादी का मंच सजा रहे कन्हैया को बिहार के बुद्व वाले सच को भी जानाना होगा. लोकतंत्र की जिस धरती से बापू ने आजादी की लड़ाई का आगाज किया उसमें किसी एक व्यक्ति की नहीं लोगों की ताकत थी, जिस आजादी की गाथा का गाना आज गाने की बात हो रही है. उसमें कुछ अतिवाद की राजनीति का पुट भी है... मन की मनमानी भी... बिहार को समझने के लिए गांधी मैदान के भाव को समझना भी बहुत जरूरी है. तभी सियासत की आजादी का नया नारा किसी भी रूप में बिहार की जनता और जन मानस को जोड़ पाएगा.
समय बताएगा कहां तक सफल हुई महारैली
बहरहाल, अब तो बिहार के लोगों को गांधी मैदान में गढ़े जाने वाले नए इतिहास के मजमून और आजादी के नए फार्मूले को समझना होगा. शायद गांधी की बात करने वाले ये लोग बिहार की राजनीति को नई दिशा और दशा देने में सफल हो जाएं. क्योंकि इतिहास गवाह है कि इस गांधी मैदान में जब भी जनसैलाब आया है, वह कईयों को बहा ले गया तो कई लोगों को बिहार की राजनीति में संवार गया. केंद्र सरकार के जरिए लाए गए सीएए, एनआरसी और एनपीआर के विरोध में संघर्ष मोर्चा के तत्वाधान में आयोजित यह रैली बिहार के लोगों बीच आजादी का सपना लिए घूम रहे कन्हैया के लिए कहां तक सफल होगी, यह तो आने वाले समय ही बताएगा.