पटना: देशभर में बच्चों के साथ दरिंदगी के बढ़ रहे मामले को देखते हुए वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए पॉक्सो (Protection of Children from Sexual Offences) के अंतर्गत विशेष अदालत गठित करने का आदेश दिया था. तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने इस विशेष अदालतों को जिला स्तर पर महज 2 महीने के अंदर स्थापित करने का निर्देश दिया था. बिहार के सभी जिलों में भी मासूमों के संरक्षण के लिए पॉक्सो कोर्ट का गठन किया गया है.
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पॉक्सो एक्ट 2012
केंद्र सरकार की ओर से साल 2012 में बनाए गए पॉक्सो एक्ट के तहत अलग-अलग प्रकृति के अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई. जिसका कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है. बिहार के 37 ज्यूडिशियल जिलो में पॉक्सो कोर्ट और विशेष वकील की नियुक्ति की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने उन सभी जिलों में जहां पर 100 से ज्यादा पॉक्सो के मामले हैं. वहां पर पॉक्सो कोर्ट खोलने का निर्देश दिया था.
बिहार के 11 जिलों में 2 विशेष पॉक्सो कोर्ट
बिहार में 11 जिले ऐसे हैं जहां 300 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. इन जिलों में 2 विशेष पॉक्सो कोर्ट का गठन किया गया है. वहीं 26 जिलों में एक पॉक्सो कोर्ट है.
घर जैसा कोर्ट का माहौल
इन पॉक्सो कोर्ट को ऐसे तैयार किया गया है कि बच्चों को यह असहज ना लगे. बच्चों के सहूलियत और सौहार्द पूर्ण वातावरण को लेकर घर जैसा माहौल इसे देने की कोशिश की गई है. दीवार पर पेंटिंग, बच्चों के लिए खिलौने इत्यादि समान यहां उपलब्ध हैं. इसके साथ ही पॉक्सो कोर्ट स्पीडी ट्रायल कर पीड़ितों को जल्द से जल्द न्याय दिला रहा है.
'जिस तरह से सभी जिले में स्पेशल पॉक्सो कोर्ट स्थापित किया गया है. ठीक उसी प्रकार अनुमंडल स्तर पर भी सभी राज्य में स्पेशल पॉक्सो कोर्ट स्थापित होना चाहिए ताकी इससे जुड़े मामले का जल्द से जल्द निपटारा किया जा सके.'- दिनेश कुमार, सीनियर वकील, पटना हाईकोर्ट
इन जिलों में हैं 300 से अधिक पॉक्सो के मामले
भागलपुर | पूर्वी चंपारण | गया | कटिहार |
मधुबनी | मुजफ्फरपुर | नालंदा | पटना |
पूर्णिया | रोहतास | पश्चिम चंपारण |
मामले अधिक होने की वजह से इन जिलों में 2 विशेष पॉक्सो कोर्ट का गठन किया गया है.
26 जिलों में है एक-एक पॉक्सो कोर्ट
वहीं बिहार के बचे 26 जिलों में एक-एक पॉक्सो कोर्ट है. पॉक्सो कोर्ट में सरकार की तरफ से रिक्रूटमेंट में हो रही देरी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करते हुए हाईकोर्ट ने एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज को लगाया है. जो सिर्फ स्पेशल पॉक्सो जज के रूप में कार्य कर रहे हैं.
स्टाफ की कमी बनी समस्या
पिछले अक्टूबर माह से पूर्ण रूप से बिहार के सभी जिलों में पॉक्सो कोर्ट ने कार्य करना शुरू कर दिया है. इन न्यायालयों में वकील की कमी महसूस नहीं होती है लेकिन राज्य सरकार द्वारा पूर्ण रूप से स्टाफ की नियुक्ति नहीं हो पाई है. हाईकोर्ट के द्वारा हाईकोर्ट के स्टाफ को पॉक्सो कोर्ट में तब तक के लिए लगाया गया है जब तक कि राज्य सरकार द्वारा स्टाफ की नियुक्ति ना हो जाए.
12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म पर मौत की सजा
मासूमों पर बढ़ते अपराध को देखते हुए 2012 में एक विशेष कानून प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस' यानी पॉक्सो एक्ट बनाया गया. 2018 में इसमें संशोधन कर 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म के दोषियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए पॉक्सो के अंतर्गत विशेष अदालत गठन करने का आदेश दिया था. 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म करने पर दोषियों को मौत की सजा देने का प्रस्ताव केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी भी मिल चुकी है.
राजद विधायक पर भी कस चुका है शिकंजा
राजद विधायक अरुण यादव के खिलाफ 19 जुलाई 2019 को आरा के टाउन थाना में नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म का केस दर्ज हुआ था. इसमें दो नामजद आरोपी बनाए गए थे. जिसके बाद वह लगातार फरार चल रहे हैं. पुलिस द्वारा लगातार शिकंजा कसते हुए उनके आवास पर कुर्की जब्ती की भी की गई है. आरा पुलिस के द्वारा सेक्स रैकेट का भंडाफोड़ किया गया था. जिसमें आरजेडी एमएलए अरुण यादव का भी नाम जुड़ा हुआ था. जिसमें नाबालिग लड़की ने आरोप लगाते हुए कहा था कि राजद विधायक रात में उसे अपने पास बुलाते हैं और गंदा काम करते हैं. जिसके बाद से ही विधायक भूमिगत हो गए थे.
पॉक्सो एक्ट के तहत पहली बार महिला को सजा
विगत 23 फरवरी को बिहार में पहली बार पॉक्सो एक्ट के तहत महिला को छह माह की सजा हुई थी. उस पर आरोप लगाया गया था कि उसने अपने भाई को एक लड़की के साथ दुष्कर्म करने में मदद की थी.
पॉक्सो के तहत कई मामलों में हुई त्वरित कार्रवाई
विगत साल राजधानी पटना के नामी-गिरामी एक निजी स्कूल में एक महिला टीचर के द्वारा नाबालिक बच्ची का यौन उत्पीड़न किया गया था. उसके बाद न्यायालय द्वारा महिला टीचर को सजा भी सुनाई गई थी. बिहार के भागलपुर के मोजाहिदपुर थाना क्षेत्र निवासी महिला को पॉक्सो एक्ट की धारा 21 के तहत सजा सुनाई गई.
पॉक्सो कानून को लेकर नेशनल कमिशन फॉर प्रोटक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने एक सेल बनाई है. इसमें एक सीनियर टेक्निकल एक्सपर्ट एक टेक्निकल एक्सपर्ट और दो जूनियर टेक्निकल एक्सपर्ट शामिल हैं.
पॉक्सो एक्ट की प्रासंगिकता बढ़ी
यहां पर यह भी बता दें कि 18 साल से कम किसी भी मासूम के साथ अगर दुराचार होता है तो वह पॉक्सो एक्ट के तहत आता है. इस एक्ट के लगने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है. इसके अतिरिक्त, एक्ट की धारा 11 के साथ यौन शोषण को भी परिभाषित किया जाता है, जिसका मतलब है कि यदि कोई भी व्यक्ति अगर किसी बच्चे को गलत नीयत से छूता है या फिर उसके साथ गलत हरकतें करने का प्रयास करता है या उसे पॉर्नोग्राफी दिखाता है तो उसे धारा 11 के तहत दोषी माना जाएगा. इस धारा के लगने पर दोषी को 3 साल तक की सजा हो सकती है.कुल मिलाकर इस कानून के निर्माण और उसमें किये गए संशोधन से पॉक्सो एक्ट की प्रासंगिकता समाज में बढ़ी है.
अभिभावक भी रहें सतर्क
फिलहाल देश के साथ ही बिहार में बच्चों पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए सख्त और कड़े कदम उठाए जा रहे हैं. बावजूद इसके मासूम दरिंदगी का शिकार हो रहे हैं. जरूरत इस बात की है कि जो भी कमियां हैं उन्हें जल्द से जल्द सरकार दूर करे और व्यवस्था में जरूरी सुधार किए जाएं. ताकि मामलों का निपटारा तेजी से हो सके और साथ ही जरूरी है कि हम भी अपने बच्चों को लेकर सतर्क रहें. क्योंकि ज्यादातर मामलों में बच्चों का शोषण जान-पहचान के लोग ही करते हैं और घर के लोग उनपर शक भी नहीं करते.
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