पटना: सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को प्रमोशन में आरक्षण (Reservation in Promotion) मामले पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि प्रमोशन में आरक्षण से पहले उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाना जरूरी है. कोर्ट अपनी तरफ से इसके लिए कोई पैमाना तय नहीं करेगा. इसको लेकर बिहार पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी (Former Chief Minister Jitan Ram Manjhi) ने अपनी प्रतिक्रिया दी है.
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मांझी ने कहा कि, 'प्रमोशन में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का HAM स्वागत करते हैं. सरकारों की गलत नीतियों के कारण आजादी के करीब 75 साल बाद भी SC-ST को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया जा सका है, जो शर्मनाक है. अब सरकार प्रमोशन में आरक्षण को लेकर कार्रवाई जल्द शुरू करे.'
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प्रमोशन में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का HAM स्वागत करतें हैं।
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सरकारों की गलत नीतियों के कारण आजादी के करीब 75 साल बाद भी SC-ST को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया जा सका है,जो शर्मनाक है।
अब सरकार प्रमोशन में आरक्षण को लेकर कारवाई जल्द शुरू करे।
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— Jitan Ram Manjhi (@jitanrmanjhi) January 28, 2022
सरकारों की गलत नीतियों के कारण आजादी के करीब 75 साल बाद भी SC-ST को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया जा सका है,जो शर्मनाक है।
अब सरकार प्रमोशन में आरक्षण को लेकर कारवाई जल्द शुरू करे।प्रमोशन में आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का HAM स्वागत करतें हैं।
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सरकारों की गलत नीतियों के कारण आजादी के करीब 75 साल बाद भी SC-ST को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया जा सका है,जो शर्मनाक है।
अब सरकार प्रमोशन में आरक्षण को लेकर कारवाई जल्द शुरू करे।
उच्चतम न्यायालय ने अपनी सुनवाई के दौरान कहा कि उच्च पदों में प्रतिनिधित्व का एक तय अवधि में मूल्यांकन किया जाना चाहिए. यह अवधि क्या होगी, इसे केंद्र सरकार तय करे.
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल 2006 के नागराज फैसले और 2018 के जरनैल सिंह फैसले में रखी गई शर्तों पर रियायत नहीं दी है. केंद्र और राज्यों से जुड़े आरक्षण के मामलों में अधिक स्पष्टता के लिए 24 फरवरी से सुनवाई शुरू होगी. सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए पदोन्नति में आरक्षण की शर्तों को कम करने से इंकार कर दिया. आवधिक समीक्षा के बाद प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता के आंकलन के अलावा मात्रात्मक डेटा का संग्रह अनिवार्य है.
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र और राज्य इस बात का आंकलन करें कि उनके पास कितने रिक्त पद हैं जिन पर अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को आरक्षण दिया जा सकता है. दरअसल, साल 2018 में जो फैसला आया था, उससे राज्यों को कुछ आवश्यक शर्तों को पूरा करने के बाद SC/ST को पदोन्नति में आरक्षण देने की अनुमति मिली थी, लेकिन उसके बाद भी राज्य फैसले में स्पष्टता के अभाव में आरक्षण लागू नहीं कर पा रहे हैं. केंद्र ने कोर्ट से स्पष्टता और थोड़ी रियायत की प्रार्थना की थी.
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