पटनाः 1999 में जदयू का गठन हुआ था. शरद यादव, जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार ने नींव रखी थी. ऐसे वर्ष 2000 में ही नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बन गए थे लेकिन बहुमत नहीं होने के कारण केवल 7 दिन में इस्तीफा देना पड़ा था. फिर 2005 नवंबर में जब चुनाव हुआ तो जदयू सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री भी बने. लेकिन 2020 में पहली बार जदयू को बीजेपी से कम वोट मिले.
जदयू से बड़ी पार्टी बनी बीजेपी
2005 से लेकर 2015 तक जदयू का कमोबेश प्रदर्शन ठीक-ठाक रहा. 2014 लोकसभा चुनाव में जदयू को अलग लड़ने का नुकसान भी उठाना पड़ा था. उन्हें केवल 2 सीट पर संतोष करना पड़ा लेकिन फिर 2019 में बीजेपी के साथ गठबंधन होने के कारण 16 सीट जीतने में कामयाब रही. लेकिन 2020 का विधानसभा चुनाव पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है. पहली बार जदयू बिहार में बीजेपी के सामने बड़े भाई की भूमिका में नजर नहीं आ रही है. बीजेपी को विधानसभा चुनाव में 74 सीटें मिली है और जदयू को केवल 43 सीटें. यानी 31 सीट का दोनों पार्टियों के बीच अंतर है. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन जदयू का वोट प्रतिशत भी इस बार काफी घट गया.
जदयू को इस बार मात्र 43 सीटें
बिहार में जदयू का 2005 से लेकर 2015 तक कमोबेश प्रदर्शन ठीक-ठाक रहा. जब भी बीजेपी के साथ जदयू ने चुनाव लड़ा, हमेशा अधिक सीट उसे मिली. 2005 में जदयू को 88 सीटें मिली थी, जबकि बीजेपी को 55. 2010 में जदयू को 115 सीटें मिली तो बीजेपी को 91. 2015 में जदयू को 68 सीट मिली तो भाजपा को 53. हालांकि तब जदयू महागठबंधन के साथ था और आरजेडी को सबसे अधिक 80 सीटें मिली थी. लेकिन 2020 की बात करें तो जदयू को इस बार केवल 43 सीटें मिली और बीजेपी को 74 सीट.
पहली बार बीजेपी से जदयू को कम सीटें
साफ है कि 2005 से लेकर 2020 तक की बात करें तो जदयू पहली बार बीजेपी से कम सीट पर चुनाव जीती है. जदयू के लिए यह एक बड़ा झटका रहा है. जदयू को इस साल 16 प्रतिशत से भी कम वोट मिली तो वहीं प्रमुख विपक्षी दल राजद को 23.1% वोट मिली और सहयोगी बीजेपी को 19.46%. जदयू के पूर्व मंत्री जय कुमार सिंह का कहना है पार्टी भीतरघात का शिकार हुई और उसका खामियाजा उठाना पड़ा.
वर्चुअल माध्यम से प्रचार करने में थे सबसे आगे
विधानसभा चुनाव से पहले जदयू कार्यालय का चेहरा बदल दिया गया. कर्पूरी ठाकुर के नाम पर पार्टी को नया सभागार मिला. इसमें नीतीश कुमार ने जदयू का अपना ऑनलाइन प्लेटफॉर्म शुरू करके वर्चुअल माध्यम से चुनाव प्रचार करने में अन्य पार्टियों से आगे रहने का रिकॉर्ड बनाया. नीतीश कुमार के चेहरे वाले पोस्टर के साथ कई स्लोगन भी पार्टी ने जारी किया. कई वीडियो और ऑडियो सांग्स भी जारी किए गए. लेकिन पूरे चुनाव के दौरान पार्टी बिखरी-बिखरी सी लगी. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह कई महीनों के बाद दिल्ली से पटना पहुंचे और कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेवारी अशोक चौधरी को मिली. आरसीपी सिंह जो संगठन में प्रमुख भूमिका निभा रहे थे अलग-थलग दिखे. कुल मिलाकर पार्टी संगठन के स्तर पर तालमेल कहीं दिख नहीं रहा था. और इसका खामियाजा भी पार्टी को उठाना पड़ा. ऐसे पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि आने वाला साल बेहतर होगा.
विस 2020 में मुस्लिम वोटर्स ने काट ली कन्नी
विधानसभा चुनाव 2020 में जदयू ने महिला को 22, अति पिछड़ा को 19, यादव को 18, कुशवाहा को 15, भूमिहार को 10, राजपूत को 7, ब्राह्मण को 2, कुर्मी को 12,
अनुसूचित जाति को 17, अनुसूचित जनजाति को 1, मुस्लिम को 11 और वैश्य को 3 टिकट दिया था. पहली बार ऐसा हुआ कि एक भी मुस्लिम उम्मीदवार जदयू का नहीं जीत पाया. कभी मुस्लिमों के लिए कई काम करने और बीजेपी नेताओं से भी दो-चार हाथ करने वाले नीतीश कुमार को उनके चाहनेवाले मौलाना नीतीश तक कहने लगे थे. लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटर्स ने जदयू को वोट नहीं किया. यह जदयू के लिए एक बड़ा झटका था. जदयू के कई मंत्री चुनाव हार गए.
लोजपा से भी लड़ती दिखी जदयू
विधानसभा चुनाव जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुखिया नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा गया. विधानसभा चुनाव में जदयू न केवल विपक्षी दल आरजेडी कांग्रेस वामदलों से लड़ती दिखी बल्कि एनडीए में शामिल लोजपा से भी लड़ी. तेजस्वी के साथ चिराग पासवान ने सबसे ज्यादा नुकसान जदयू को पहुंचाया. कुल मिलाकर जदयू के लिए 2020 बड़ा झटका देने वाला ही रहा.