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EBC आरक्षण पर हाईकोर्ट का फैसला बीजेपी और केंद्र सरकार की साजिश- उपेंद्र कुशवाहा

पटना हाईकोर्ट द्वारा बिहार के नगर निकायों में आरक्षित सीटों के चुनाव (Bihar Municipal Election 2022) पर रोक को लेकर सयासी बयानबाजी शुरू हो गई है. जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने इसे केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी की गहरी साजिश का परिणाम बताया है.

जेदयू नेता उपेंद्र कुशवाहा
जेदयू नेता उपेंद्र कुशवाहा
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Published : Oct 4, 2022, 2:53 PM IST

पटनाः बिहार में इस महीने होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर पटना हाईकोर्ट (Patna high court decision Over EBC Reservation) ने बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव कराने से फिलहाल रोक लगा दी है. पटना हाईकोर्ट के इस निर्णय को जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha on Patna high court decision) ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी की गहरी साजिश का यह परिणाम है.

ये भी पढ़ेंः बिहार के नगर निकायों में आरक्षित सीटों पर नहीं होंगे चुनाव, पटना हाईकोर्ट की रोक

'जाति की गिनती का आंकड़ा तत्काल अनिवार्य' : जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि आरक्षण जो मिला हुआ है या विभिन्न राज्यों में देने की बात चल रही है, पंचायती राज संस्थाओं में नगर निकायों में उसके लिए कोर्ट ने कहा है 3 टेस्ट से जांचने की जरूरत है, तब आरक्षण देना चाहिए. 3 टेस्ट से जांचने का मतलब है कि जाति की गिनती का आंकड़ा तत्काल अनिवार्य है. केंद्र सरकार जाति की गिनती नहीं करवा रही है.

ये भी पढ़ें- बिहार नगर निकाय चुनाव: सुप्रीम कोर्ट ने दिया हाईकोर्ट को निर्देश, चुनाव में OBC Reservation पर करे सुनवाई

"अगर समय पर जाति की गिनती हो गई रहती तो आज यह स्थिति नहीं आती. 3 टेस्ट से जांच हो गई रहती जो आरक्षण अति पिछड़ा समाज को मिला हुआ है वह मिलता रहता और चुनाव हो जाता, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार चाह रही है पिछड़ों के आरक्षण को समाप्त करें. दलितों के आरक्षण को समाप्त करें. ये उसी साजिश के तहत हो रहा है"- उपेंद्र कुशवाहा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, जदयू संसदीय बोर्ड


कोर्ट ने ईबीसी आरक्षण पर रखा निर्णय सुरक्षित : आपको बता दें कि स्थानीय निकायों के चुनाव 10 अक्टूबर, 2022 से शुरू होने वाले हैं और कोर्ट ने ईबीसी आरक्षण पर सुनवाई पूरी कर निर्णय सुरक्षित रख लिया. कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा था कि इन मामलों पर निर्णय पूजा अवकाश में सुना दिया जाएगा. कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव के कार्यक्रम में परिवर्तन करने की जरूरत समझे, तो कर सकता है.

तीन जांच की अर्हता पूरी होने के बाद फैसला: दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि स्थानीय निकायों में ईबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती. तीन जांच के प्रावधानों के तहत ईबीसी के पिछड़ापन पर आंकड़ें जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग के सिफरिशों के मद्देनजर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत है. साथ ही ये भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि एससी/एसटी/ईबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल उपलब्ध सीटों का पचास प्रतिशत की सीमा को नहीं पार करे.

पटनाः बिहार में इस महीने होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर पटना हाईकोर्ट (Patna high court decision Over EBC Reservation) ने बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव कराने से फिलहाल रोक लगा दी है. पटना हाईकोर्ट के इस निर्णय को जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha on Patna high court decision) ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है. अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी की गहरी साजिश का यह परिणाम है.

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'जाति की गिनती का आंकड़ा तत्काल अनिवार्य' : जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि आरक्षण जो मिला हुआ है या विभिन्न राज्यों में देने की बात चल रही है, पंचायती राज संस्थाओं में नगर निकायों में उसके लिए कोर्ट ने कहा है 3 टेस्ट से जांचने की जरूरत है, तब आरक्षण देना चाहिए. 3 टेस्ट से जांचने का मतलब है कि जाति की गिनती का आंकड़ा तत्काल अनिवार्य है. केंद्र सरकार जाति की गिनती नहीं करवा रही है.

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"अगर समय पर जाति की गिनती हो गई रहती तो आज यह स्थिति नहीं आती. 3 टेस्ट से जांच हो गई रहती जो आरक्षण अति पिछड़ा समाज को मिला हुआ है वह मिलता रहता और चुनाव हो जाता, लेकिन भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार चाह रही है पिछड़ों के आरक्षण को समाप्त करें. दलितों के आरक्षण को समाप्त करें. ये उसी साजिश के तहत हो रहा है"- उपेंद्र कुशवाहा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, जदयू संसदीय बोर्ड


कोर्ट ने ईबीसी आरक्षण पर रखा निर्णय सुरक्षित : आपको बता दें कि स्थानीय निकायों के चुनाव 10 अक्टूबर, 2022 से शुरू होने वाले हैं और कोर्ट ने ईबीसी आरक्षण पर सुनवाई पूरी कर निर्णय सुरक्षित रख लिया. कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा था कि इन मामलों पर निर्णय पूजा अवकाश में सुना दिया जाएगा. कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव के कार्यक्रम में परिवर्तन करने की जरूरत समझे, तो कर सकता है.

तीन जांच की अर्हता पूरी होने के बाद फैसला: दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि स्थानीय निकायों में ईबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती. तीन जांच के प्रावधानों के तहत ईबीसी के पिछड़ापन पर आंकड़ें जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग के सिफरिशों के मद्देनजर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत है. साथ ही ये भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि एससी/एसटी/ईबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल उपलब्ध सीटों का पचास प्रतिशत की सीमा को नहीं पार करे.

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