पटना: कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा हो चुकी है. 10 मई को कर्नाटक में वोटिंग होगी और 13 मई को काउंटिंग की जाएगी. वहीं चुनाव से पहले ही तमाम पार्टियां अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही है. लेकिन जनता दल यूनाइटेड अभी तक कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर कोई फैसला नहीं ले पाई है. कर्नाटक जेडीयू की तरफ से चुनाव लड़ने से संबंधित कोई प्रस्ताव भी नहीं भेजा गया है. कर्नाटक जदयू प्रभारी सह मंत्री संजय झा के अनुसार इस बार पार्टी के चुनाव लड़ने की संभावना काफी कम ही है.
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कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर संशय में JDU: असल में जदयू को दूसरे राज्यों में उम्मीद के अनुरूप रिजल्ट नहीं मिल रहा है. झारखंड विधानसभा चुनाव हो या दिल्ली, बंगाल, असम और उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव हो या इस साल नागालैंड विधानसभा का चुनाव, नागालैंड को छोड़कर पार्टी का कहीं खाता तक नहीं खुला. उम्मीदवारों की जमानत तक नहीं बची. नागालैंड में किसी तरह एक उम्मीदवार चुनाव जीत पाया. पिछले साल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 20 से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारा था लेकिन कहीं जमानत नहीं बच पायी. पार्टी के तरफ से दावा किया गया था कि नागालैंड में जो रिजल्ट आएगा उससे पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त हो जाएगा लेकिन सफलता नहीं मिली.
चुनाव की रणनीति नहीं हुई तय: अब कर्नाटक विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है लेकिन पार्टी चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है. कर्नाटक में चुनाव आयोग ने 10 मई को चुनाव कराने की तिथि घोषित की है. ऐसे में 1 महीने से कुछ अधिक समय रह गया है लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आफाक खान का कहना है अभी कुछ भी तय नहीं किया गया है.
"कर्नाटक जदयू के तरफ से अभी तक किसी तरह का प्रस्ताव भी नहीं आया है. पार्टी के कर्नाटक के प्रभारी संजय झा ही कुछ बता पाएंगे."- आफाक खान,राष्ट्रीय महासचिव,जेडीयू
"कर्नाटक चुनाव लड़ने की संभावना काफी कम है. अभी पार्टी ने चुनाव लड़ने को लेकर कोई फैसला नहीं लिया है और इस बार चुनाव लड़ने की उम्मीद कम है."- संजय झा, कर्नाटक जदयू प्रभारी
पिछले चुनाव में नहीं खुला था खाता: ऐसे पिछले कर्नाटक विधानसभा चुनाव की बात करें तो कर्नाटक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी प्रचार किया था और पार्टी के कई मंत्री कई दिनों तक कर्नाटक में कैंप किए थे. हालांकि उसके बाद भी कोई सफलता नहीं मिली. अभी तक जितने चुनाव हुए हैं उसमें बिहार के बाहर पूर्वोत्तर राज्यों अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो पार्टी किसी राज्य में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई है. इन्हीं दोनों राज्यों में जदयू को राज्यस्तरी पार्टी का दर्जा भी मिला हुआ है, लेकिन पार्टी दोनों राज्यों में जीते विधायकों को अपने साथ बहुत दिनों तक रख नहीं पाई.
दूसरे राज्यों में पार्टी का प्रदर्शन नहीं रहा बेहतर: अरुणाचल प्रदेश में जीते 7 विधायकों में से सभी विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. पहले छह विधायक बीजेपी में गए उस समम बिहार में जदयू का बीजेपी के साथ गठबंधन था. शेष एक विधायक भी बाद में बीजेपी में शामिल हो गया. वहीं मणिपुर में जीते 6 विधायकों में से 5 विधायक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं, लेकिन इन दोनों राज्यों के अलावा पार्टी ने कहीं भी बेहतर प्रदर्शन नहीं किया है. दिल्ली में तो बीजेपी के साथ गठबंधन के तहत जदयू ने चुनाव भी लड़ा लेकिन उसके बाद भी खाता नहीं खुला. यही हाल बंगाल विधानसभा चुनाव, असम विधानसभा चुनाव में भी हो चुका है. दूसरे राज्यों में अधिकांश जगह जदयू उम्मीदवार की जमानत तक नहीं बची है. बिहार से बाहर लगातार मिली हार से जदयू को बड़ा झटका लगा है और इसलिए इस बार कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी के शीर्ष नेता चुनाव लड़ने को लेकर साहस नहीं जुटा पा रहे हैं. ऐसे अंतिम फैसला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही करना है.
ऐसे तो जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक में फैसला लिया गया था कि पार्टी दूसरे राज्यों में मजबूती से चुनाव लड़ेगी. जदयू को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाएंगे. ललन सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने के बाद नागालैंड में चुनाव लड़े भी लेकिन सफलता नहीं मिली. जदयू से ज्यादा बेहतर प्रदर्शन चिराग पासवान की पार्टी का रहा. जदयू पिछले दो दशक से भी अधिक समय से राष्ट्रीय पार्टी बनने का सपना देख रही है लेकिन अब तक पार्टी के लिए और नीतीश कुमार के लिए बस यह सपना ही बना हुआ है. अब पार्टी दूसरे राज्यों में चुनाव लड़ने को लेकर फैसला भी नहीं कर पा रही है.