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UP Election Results: उत्तर प्रदेश और मणिपुर के नतीजों पर JDU की नजर, परिणाम पर निर्भर है सियासी भविष्य

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Published : Mar 10, 2022, 6:05 AM IST

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम (Five States Election Results) के लिए इंतजार की घड़ी अब खत्म हो गई है. चुनाव आयोग ने आज होने वाली मतगणना को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर रखी है. यूपी और मणिपुर में वोटों की गिनती पर बिहार के सत्ताधारी दल जेडीयू की भी पैनी नजर रहेगी. जेडीयू ने बिहार में 28 सीटों पर चुनाव लड़ा है. वहीं, मणिपुर में 38 सीटों पर चुनाव लड़ा है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

यूपी और मणिपुर के नतीजों पर जेडीयू की नजर
यूपी और मणिपुर के नतीजों पर जेडीयू की नजर

पटना: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम (Assembly Election in Five States) की घड़ी अब आ गई है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में अगले पांच साल के लिए जनता ने किस दल को अपना आशीर्वाद दिया है, इसका फैसले कुछ ही समय में हो जाएगा. बिहार की सत्ताधारी पार्टी जेडीयू भी यूपी और मणिपुर में अपना भाग्य आजमा रही है. जेडीयू अपने गृह क्षेत्र के बाहर अपना आधार बढ़ाने और राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने की कवायद में जुटी हुई है. जो काफी हद तक इन चुनावी नतीजों पर निर्भर है.

ये भी पढ़ें- Pre-counting Analysis: अखिलेश की चुनौती, योगी की तैयारी, यूपी में अब किसकी बारी?

यूपी और मणिपुर के नतीजों पर जेडीयू की नजर: जेडीयू भले बिहार में बीजेपी के साथ सरकार चला रही हो, लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) में कांटे की टक्कर दे रही है. जेडीयू ने छठे और सातवें चरण में अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है. बिहार की सीमा से सटे यूपी के कई इलाकों में जेडीयू को कामयाबी मिलने की उम्मीद है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की जेडीयू ने 28 सीटों पर चुनाव लड़ा है. वहीं, जेडीयू ने मणिपुर विधानसभा चुनाव (Manipur Assembly Election) में कुल 60 सीटों में से 38 सीटों पर चुनाव लड़ा है. 38 सीटों में से 28 पर 28 फरवरी को मतदान हुआ था. वहीं, बाकी की 10 सीटों पर 5 मार्च को मतदान हुआ था. अब सभी की निगाहें चुनावी नतीजों पर टिकी हुई है.

यूपी में जातियों में उलझा पूर्वांचल: दरअसल, यूपी में जातियों में उलझा पूर्वांचल (Caste Equation in Purvanchal) हर सियासी दल के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. छोटे दलों की ताकत पूर्वांचल में 2017 के चुनावों में खूब उभरकर सामने आई थी. तब बीजेपी गठबंधन को तकरीबन 115 सीटें मिली थी, जिसकी दम पर वह सत्ता पर काबिज हुए थे. सपा को 17 सीटें हासिल हुई थी. बसपा के खाते में भी 14 सीटे आई थी. जबकि कांग्रेस को 2 और अन्य के खाते में 16 सीटें मिली थी. 2017 में अमित शाह ने पिछड़ों और अति पिछड़ों को अपने पाले में खड़ा कर एक नया राजनीतिक फार्मूला इजाद किया था. पटेल, मौर्य, चौहान, राजभर और निषाद जैसी जातियों के प्रमुख राजनीतिक चेहरों को अपने साथ लिया था. ऐसे में जेडीयू ने बीजेपी की चिंता जरूर बढ़ा दी है.

JDU अध्यक्ष का जीत का दावा: वहीं, जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह (JDU President Lalan Singh) ने यूपी विधानसभा चुनाव में कम से कम 5 सीटों पर जीत का दावा किया है. उन्होंने कहा कि यूपी विधानसभा चुनाव में हमारी पार्टी 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इसमें से पांच सीटों पर जनता दल यूनाइटेड को अपार समर्थन मिल रहा है. य​दि हम 2017 से ही प्रयास करते तो निश्चित रूप से 2022 का परिणाम और व्यापक होता.

नीतीश के बिहार मॉडल से JDU को उम्मीद: यूपी में कुर्मी समाज 6 फीसदी है, जो ओबीसी में 35 फीसद के करीब है. सूबे की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर कुर्मी समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यूपी में कुर्मी समाज का प्रभाव 25 जिलों में हैं, लेकिन 16 जिलों में 12 फीसदी से अधिक सियासी ताकत रखते हैं. पूर्वांचल से लेकर बुदंलेखंड और अवध और रुहेलखंड में किसी भी दल का सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की स्थिति में है. वैसे पूर्वांचल क्षेत्र में अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल कुर्मी समाज का चेहरा मानी जाती हैं, जो बीजेपी के साथ हैं. इसके बावजूद जेडीयू को लगता है कि 'नीतीश कुमार के बिहार मॉडल' का उन्हें वहां फायदा मिल सकता है.

राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे पर JDU की नजर: बता दें कि चुनाव आयोग से राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए तीन शर्तों में से एक के अनुसार एक पंजीकृत पार्टी को चार लोकसभा सीटों को जीतने के अलावा, किसी भी चार या अधिक राज्यों में कम से कम 6% वोटों की आवश्यकता होती है. पिछले विधानसभा चुनावों में जेडीयू ने पहले ही बिहार और अरुणाचल प्रदेश में 6% से अधिक वोट हासिल कर लिया है और बिहार से लोकसभा में उसके 16 सदस्य हैं. अगर पार्टी अगले कुछ सालों में मणिपुर और एक और राज्य में 6% वोट हासिल करने में सफल हो जाती है, तो वह 'राष्ट्रीय पार्टी' के रूप में मान्यता पाने के योग्य होगी.

ये भी पढ़ें- शाहनवाज हुसैन का दावा- 'यूपी के पूर्वांचल में बीजेपी के पक्ष में लहर, विपक्ष का नहीं खुलेगा खाता'

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पटना: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के परिणाम (Assembly Election in Five States) की घड़ी अब आ गई है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में अगले पांच साल के लिए जनता ने किस दल को अपना आशीर्वाद दिया है, इसका फैसले कुछ ही समय में हो जाएगा. बिहार की सत्ताधारी पार्टी जेडीयू भी यूपी और मणिपुर में अपना भाग्य आजमा रही है. जेडीयू अपने गृह क्षेत्र के बाहर अपना आधार बढ़ाने और राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने की कवायद में जुटी हुई है. जो काफी हद तक इन चुनावी नतीजों पर निर्भर है.

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यूपी और मणिपुर के नतीजों पर जेडीयू की नजर: जेडीयू भले बिहार में बीजेपी के साथ सरकार चला रही हो, लेकिन यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) में कांटे की टक्कर दे रही है. जेडीयू ने छठे और सातवें चरण में अपने उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा है. बिहार की सीमा से सटे यूपी के कई इलाकों में जेडीयू को कामयाबी मिलने की उम्मीद है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की जेडीयू ने 28 सीटों पर चुनाव लड़ा है. वहीं, जेडीयू ने मणिपुर विधानसभा चुनाव (Manipur Assembly Election) में कुल 60 सीटों में से 38 सीटों पर चुनाव लड़ा है. 38 सीटों में से 28 पर 28 फरवरी को मतदान हुआ था. वहीं, बाकी की 10 सीटों पर 5 मार्च को मतदान हुआ था. अब सभी की निगाहें चुनावी नतीजों पर टिकी हुई है.

यूपी में जातियों में उलझा पूर्वांचल: दरअसल, यूपी में जातियों में उलझा पूर्वांचल (Caste Equation in Purvanchal) हर सियासी दल के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. छोटे दलों की ताकत पूर्वांचल में 2017 के चुनावों में खूब उभरकर सामने आई थी. तब बीजेपी गठबंधन को तकरीबन 115 सीटें मिली थी, जिसकी दम पर वह सत्ता पर काबिज हुए थे. सपा को 17 सीटें हासिल हुई थी. बसपा के खाते में भी 14 सीटे आई थी. जबकि कांग्रेस को 2 और अन्य के खाते में 16 सीटें मिली थी. 2017 में अमित शाह ने पिछड़ों और अति पिछड़ों को अपने पाले में खड़ा कर एक नया राजनीतिक फार्मूला इजाद किया था. पटेल, मौर्य, चौहान, राजभर और निषाद जैसी जातियों के प्रमुख राजनीतिक चेहरों को अपने साथ लिया था. ऐसे में जेडीयू ने बीजेपी की चिंता जरूर बढ़ा दी है.

JDU अध्यक्ष का जीत का दावा: वहीं, जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह (JDU President Lalan Singh) ने यूपी विधानसभा चुनाव में कम से कम 5 सीटों पर जीत का दावा किया है. उन्होंने कहा कि यूपी विधानसभा चुनाव में हमारी पार्टी 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इसमें से पांच सीटों पर जनता दल यूनाइटेड को अपार समर्थन मिल रहा है. य​दि हम 2017 से ही प्रयास करते तो निश्चित रूप से 2022 का परिणाम और व्यापक होता.

नीतीश के बिहार मॉडल से JDU को उम्मीद: यूपी में कुर्मी समाज 6 फीसदी है, जो ओबीसी में 35 फीसद के करीब है. सूबे की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर कुर्मी समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यूपी में कुर्मी समाज का प्रभाव 25 जिलों में हैं, लेकिन 16 जिलों में 12 फीसदी से अधिक सियासी ताकत रखते हैं. पूर्वांचल से लेकर बुदंलेखंड और अवध और रुहेलखंड में किसी भी दल का सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की स्थिति में है. वैसे पूर्वांचल क्षेत्र में अपना दल की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल कुर्मी समाज का चेहरा मानी जाती हैं, जो बीजेपी के साथ हैं. इसके बावजूद जेडीयू को लगता है कि 'नीतीश कुमार के बिहार मॉडल' का उन्हें वहां फायदा मिल सकता है.

राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे पर JDU की नजर: बता दें कि चुनाव आयोग से राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए तीन शर्तों में से एक के अनुसार एक पंजीकृत पार्टी को चार लोकसभा सीटों को जीतने के अलावा, किसी भी चार या अधिक राज्यों में कम से कम 6% वोटों की आवश्यकता होती है. पिछले विधानसभा चुनावों में जेडीयू ने पहले ही बिहार और अरुणाचल प्रदेश में 6% से अधिक वोट हासिल कर लिया है और बिहार से लोकसभा में उसके 16 सदस्य हैं. अगर पार्टी अगले कुछ सालों में मणिपुर और एक और राज्य में 6% वोट हासिल करने में सफल हो जाती है, तो वह 'राष्ट्रीय पार्टी' के रूप में मान्यता पाने के योग्य होगी.

ये भी पढ़ें- शाहनवाज हुसैन का दावा- 'यूपी के पूर्वांचल में बीजेपी के पक्ष में लहर, विपक्ष का नहीं खुलेगा खाता'

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