पटना: अरुणाचल प्रदेश में जदयू के 6 विधायक भाजपा में शामिल हो गए. इससे जदयू के थिंक टैंक में बेचैनी है. पार्टी के राष्ट्रव्यापी विस्तार को गहरा झटका लगा है. इसके चलते भाजपा और जदयू के रिश्तों में खटास आ गई है. राज्यपाल कोटे से होने वाले एमएलसी के मनोनयन को लेकर अभी संशय की स्थिति है. भाजपा और जदयू के बीच सिर्फ बिहार में गठबंधन है. दूसरे राज्यों में दोनों दल एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं.
ठंडे बस्ते में चला गया एमएलसी का मनोनयन
अरुणाचल के 6 विधायकों का भाजपा में शामिल होना जदयू के लिए परेशानी का सबब है. हालांकि दोनों दलों के नेता यह जरूर कहते हैं कि बिहार से बाहर हमारा कोई गठबंधन नहीं है. बिहार में मंत्रिमंडल का दूसरा विस्तार होना है और कैबिनेट में दो मंत्री ऐसे हैं जो किसी सदन के सदस्य नहीं हैं. अशोक चौधरी और मुकेश सहनी को विधान परिषद का सदस्य बनाया जाना है. ऐसे में राज्यपाल कोटे से होने वाले मनोनयन पर सबकी निगाहें थी. मनोनयन को लेकर तीसरे कैबिनेट में भी प्रस्ताव नहीं आ सका. अरुणाचल प्रदेश की घटना के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया है.
जदयू में टूट के बाद पार्टी नेता हुए मुखर
अरुणाचल प्रदेश में जदयू विधायकों ने पाला बदला तो उसकी राजनीतिक तपिश बिहार में भी महसूस की गई. जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने भाजपा को खरी-खोटी सुनाई. उन्होंने कहा "भाजपा ने गठबंधन धर्म का पालन नहीं किया. इससे हम व्यथित हैं."
राजद प्रवक्ता भाई वीरेंद्र ने कहा "दोनों दलों में विवाद है. विवादों के चलते न राज्यपाल कोटे से होने वाले मनोनयन पर मोहर लगी है और न मंत्रिमंडल विस्तार पर सहमति बन पाई है."
भाजपा प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा "भाजपा और जदयू दोनों का गठबंधन सिर्फ बिहार में है. बिहार से बाहर दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं. ऐसे में विवाद का सवाल नहीं उठता है. हम लोग बेहतर सामंजस्य से सरकार चला रहे हैं. विपक्ष अपने मंसूबे में कामयाब होने वाली नहीं है."
"भाजपा और जदयू में रिश्ते सहज नहीं हैं. कई मुद्दों को लेकर दोनों दल आमने-सामने हैं. अरुणाचल प्रदेश की घटना का साइड इफेक्ट बिहार में भी पड़ा है. राज्यपाल कोटे से होने वाला मनोनयन और मंत्रिमंडल विस्तार फिलहाल होने की संभावना नहीं है."- डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक