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CM नीतीश पर फिर बरसे जगदानंद सिंह, कहा- FCI और SFC को भी मिले धान खरीद की इजाजत

राजद नेता ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2006 में मंडी की व्यवस्था खत्म कर दी और जिस तरह से एसएफसी और एफसीआई को धान खरीद से वंचित किया है. इसका व्यापक असर बिहार के किसानों पर पड़ा है.

जगदानंद सिंह का बयान
जगदानंद सिंह का बयान
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Published : Dec 11, 2020, 2:41 PM IST

पटनाः कृषि कानून को लेकर राजधानी दिल्ली में किसानों का आंदोलन लगातार जारी है. केंद्र सरकार और किसानों के संगठन के बीच बातचीत भी चल रही है. इधर बिहार में भी विपक्ष ने किसानों की स्थिति पर सरकार पर निशाना साधा है.

राष्ट्रीय जनता दल ने एक बार फिर मुख्यमंत्री से सवाल किया है कि आखिर क्यों बिहार के किसानों की स्थिति दयनीय है. क्यों नहीं सरकार पैक्स के साथ-साथ एसएफसी और एफसीआई को धान खरीद की इजाजत देती है.

'बिहार में क्या है किसानों की परेशानी'
राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत में कहा कि बिहार में जितनी मात्रा में धान की उपज होती है उसको सिर्फ पैक्स के जरिए खरीद पाना कतई संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि पैक्स के जरिए धान खरीद में भी सरकार ने इतना पेंच लगा रखा है कि किसान उस में उलझ कर रह जाते हैं.

'सरकार को पैक्स के साथ-साथ एसएफसी और एफसीआई को भी धान खरीद की इजाजत देनी चाहिए. सरकार ने किसानों को मजबूर कर दिया है. जिसके कारण पंजाब और हरियाणा के व्यापारी सस्ते दर में बिहार से धान खरीद कर ले जाते हैं और वही चावल बिहार में आकर बिकता है. जिसके कारण बिहार में लोकल मार्केट खत्म हो गया'- जगदानंद सिंह ,प्रदेश अध्यक्ष राजद

राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह से बातचीत करते संवाददाता

ये भी पढ़ेंः किसान प्रदर्शन का 16वां दिन, दिल्ली बॉर्डर पर डटे हैं नाराज अन्नदाता

बिहार में किसानों को परेशानी नहीं है तो विपक्ष इसके लिए बेचैन क्यों है. इसके जवाब में जगदानंद सिंह ने कहा कि बिहार में सरकार ने किसानों की रीढ़ तोड़ रखी है. उन्हें मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर कभी भी धान खरीद का फायदा नहीं मिला. जिसकी वजह से बिहार का किसान हमेशा परेशान रहता है और बिहार में पलायन की समस्या भी बढ़ी है.

'बिहार के किसानों से क्यों नहीं होती धान खरीद'
वरिष्ठ राजद नेता ने कहा कि विभिन्न सामाजिक योजनाओं के लिए बिहार को 30 लाख टन से ज्यादा चावल की खरीद करनी होती है जो बिहार सरकार दूसरे राज्यों से करती है. आखिर यही चावल अगर बिहार के किसानों से खरीदा जाता तो यहां के किसानों का फायदा होता, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2006 में मंडी की व्यवस्था खत्म कर दी और जिस तरह से एसएफसी और एफसीआई को धान खरीद से वंचित किया इसका व्यापक असर बिहार के किसानों पर पड़ा है.

पटनाः कृषि कानून को लेकर राजधानी दिल्ली में किसानों का आंदोलन लगातार जारी है. केंद्र सरकार और किसानों के संगठन के बीच बातचीत भी चल रही है. इधर बिहार में भी विपक्ष ने किसानों की स्थिति पर सरकार पर निशाना साधा है.

राष्ट्रीय जनता दल ने एक बार फिर मुख्यमंत्री से सवाल किया है कि आखिर क्यों बिहार के किसानों की स्थिति दयनीय है. क्यों नहीं सरकार पैक्स के साथ-साथ एसएफसी और एफसीआई को धान खरीद की इजाजत देती है.

'बिहार में क्या है किसानों की परेशानी'
राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता जगदानंद सिंह ने ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत में कहा कि बिहार में जितनी मात्रा में धान की उपज होती है उसको सिर्फ पैक्स के जरिए खरीद पाना कतई संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि पैक्स के जरिए धान खरीद में भी सरकार ने इतना पेंच लगा रखा है कि किसान उस में उलझ कर रह जाते हैं.

'सरकार को पैक्स के साथ-साथ एसएफसी और एफसीआई को भी धान खरीद की इजाजत देनी चाहिए. सरकार ने किसानों को मजबूर कर दिया है. जिसके कारण पंजाब और हरियाणा के व्यापारी सस्ते दर में बिहार से धान खरीद कर ले जाते हैं और वही चावल बिहार में आकर बिकता है. जिसके कारण बिहार में लोकल मार्केट खत्म हो गया'- जगदानंद सिंह ,प्रदेश अध्यक्ष राजद

राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह से बातचीत करते संवाददाता

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बिहार में किसानों को परेशानी नहीं है तो विपक्ष इसके लिए बेचैन क्यों है. इसके जवाब में जगदानंद सिंह ने कहा कि बिहार में सरकार ने किसानों की रीढ़ तोड़ रखी है. उन्हें मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर कभी भी धान खरीद का फायदा नहीं मिला. जिसकी वजह से बिहार का किसान हमेशा परेशान रहता है और बिहार में पलायन की समस्या भी बढ़ी है.

'बिहार के किसानों से क्यों नहीं होती धान खरीद'
वरिष्ठ राजद नेता ने कहा कि विभिन्न सामाजिक योजनाओं के लिए बिहार को 30 लाख टन से ज्यादा चावल की खरीद करनी होती है जो बिहार सरकार दूसरे राज्यों से करती है. आखिर यही चावल अगर बिहार के किसानों से खरीदा जाता तो यहां के किसानों का फायदा होता, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2006 में मंडी की व्यवस्था खत्म कर दी और जिस तरह से एसएफसी और एफसीआई को धान खरीद से वंचित किया इसका व्यापक असर बिहार के किसानों पर पड़ा है.

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