पटनाः दिल्ली में इंडिया गठबंधन की बैठक से बिहार में सीट शेयरिंग को लेकर बड़ी चुनौती है. अब तक 4 बैठकें हो चुकी है, लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर सहमति नहीं बनी. मंगलवार को हुई बैठक में तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन के प्रस्ताव से बिहार में दो पार्टी के बीच धर्मसंकट है. ऐसे में बिहार में सीट बंटवारा लेकर बड़ी चुनौती दिख रही है.
पार्टी के फैसले पर मर मिटेंगे नेताः तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सीट शेयरिंग का जो फॉर्मूला सुझाया है, उस पर बिहार में सियासत शुरू हो गई है. महागठबंधन के नेता को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि क्या जवाब दें. कई पार्टी अपने वरीष्ठ नेता के फैसले पर छोड़ दिया है. पार्टी का कहना है कि जो फैसला उनके नेता लेंगे, उसे स्वीकार किया जाएगा. जमा खान ने कहा कि वे नीतीश कुमार के फैसले पर मर मिटने के लिए तैयार हैं.
"हम लोग पार्टी के सच्चे सिपाही हैं. जो निर्णय हमारे नेता लेंगे, उसे हम लोग मानेंगे. स्टालिन या कोई दूसरा व्यक्ति क्या कहता है, इससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है. हमारे नेता जो फैसला लेंगे वही मान्य होगा." -जमा खान, मंत्री, बिहार सरकार
स्टालिन के प्रस्ताव से सियासतः बता दें कि सीएम नीतीश कुमार ने बिहार में इंडिया गठबंधन की नीव रखी. 23 जून 2023 को पटना में पहली बैठक हुई थी. इंडिया गठबंधन के लिए बैटल फिल्ड बिहार बना था. नीतीश कुमार ने तमाम दलों को एकजुट करने का बीड़ा उठाया था. बहुत हद तक सफलता भी मिली थी. चार बैठक हो चुकी है, लेकिन हो चुकी है लेकिन अब तक सीट शेयरिंग का फार्मूला तय नहीं हो सका है. इधर, मंगलवार को बैठक में स्टालिन के प्रस्ताव से अंदर की सियासत शुरू हो गई है.
"सीट बंटवारा का फॉर्मूला पहले ही तेजस्वी यादव ने बता रखा है. राज्य के अंदर जो पार्टी लीड कर रही है, वही ड्राइविंग सीट पर बैठेंगे और सभी दलों को लेकर साथ चलेंगे. कांग्रेस, राजद, सपा और जदयू जो पार्टी जिस राज्य में आगे है, वहां नेतृत्व करेगी. सभी प्रस्ताव पर चर्चा के बाद फैसला लिया जाएगा." -शक्ति यादव, प्रवक्ता, राजद
राज्य में जो बड़ी पार्टी करेगी फैसलाः दरअसल, मंगलवार को बैठक में एमके स्टालिन ने प्रस्ताव दिया कि जिस राज्य में जो बड़ी पार्टी है, वही सीट बंटवारा तय करेगी. यानि वही पायलट बनकर अन्य दल को लेकर साथ चलेगी. इससे बिहार में राजद और जदयू के बीच चुनौती बढ़ गई है. बिहार में महागठबंधन की सरकार है. महागठबंधन में 6 दल शामिल हैं. 6 दलों के बीच 40 लोकसभा सीटों का बंटवारा होना है. सवाल यह उठता है कि बिहार में बड़ी पार्टी कौन है?
क्या कहता है चुनावी आंकड़ाः चुनावी आंकड़ा देखें तो 2019 लोकसभा चुनाव में जदयू को 21.8 1% वोट मिले थे तो राजद को 15.36 प्रतिशत वोट हासिल हुआ था. विधानसभा 2015 में आरजेडी को 18.4 फीसदी वोट मिला था और 80 सीट पर जीत मिली थी, 2020 में 23.11% वोट मिले और 75 सीट पर जीत मिली थी. जदयू को 2015 में 16.8 फीसदी वोट मिले थे और 71 सीट पर जीत मिली थी. 2020 में 15.36 प्रतिशत वोट मिले थे और केवल 43 सीट पर जीत मिली थी.
ड्राइविंग सीट पर बैठेंगे लालू यादवः स्टालिन के फार्मूले के मुताबिक बड़ी पार्टी को बड़ी भूमिका देने की बात कही गई है. ऐसे में वोट शेयर और सीटों की संख्या के लिहाज से लालू प्रसाद यादव ड्राइविंग सीट पर नजर आते हैं. अगर 2020 लोकसभा चुनाव की बात कर ले तो जदयू के 16 एमपी जरूर हैं, लेकिन एनडीए के साथ रहते हुए जदयू को 15.39 प्रतिशत वोट ही मिले थे. ऐसे में राज्यस्तर पर राजद बड़ी पार्टी दिख रही है. राजनीतिक विश्लेषक भी यही मान रहे हैं.
"इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक के बाद नीतीश कुमार अलग-अलग पड़ गए हैं. एक और जहां संयोजक पद को लेकर नीतीश कुमार को निराशा हुई, वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री पद को लेकर भी दलित के चेहरे को आगे कर बड़ा खेल किया गया. रही सही कसर एमके स्टालिन ने निकाल दी. बड़ी पार्टी को निर्णायक भूमिका में रखने का सुझाव दे दिया. जातिगत जनगणना की रिपोर्ट सामने आने के बाद जाहिर तौर पर वोट शेयर और हिस्सेदारी दोनों में लालू प्रसाद यादव आगे हैं." -कौशलेंद्र प्रियदर्शी, राजनीतिक विश्लेषक