पटना: पटना में दिवाली को लेकर तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं. त्योहोरों को लेकर बाजारों में रौनक बढ़ी हुई हैं, वहीं ग्रामीण इलाकों में आज भी दिवाली को पुरानी परंपरा के साथ मनाया जा रहा है. पटना जिले के मसौढ़ी प्रखंड में उन्हीं परंपरा का नजारा आज भी देखने को मिल रहा है. जहां घरों में मिट्टी का घरौंदा (importance of gharaunda) बनाकर दिवाली का त्योहार मनाया जाता है.
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हर घर में बनता है मिट्टी का घरौंदा: दिवाली में गांव में आज भी पुरानी परंपरा जीवित है. यही कारण है कि दिवाली आते ही गांव में हर घर में मिट्टी का घरौंदा (gharaunda built by girls on diwali festival) बनाया जाता है. इसकी कई पौराणिक मान्यताएं भी है कहा जाता है कि मिट्टी के घरौंदे से घर में सुख-समृद्धि और संपदा आती है और मां लक्ष्मी की कृपा (Maa Lakshmis grace) बरसती है. मिट्टी के घरौंदे घर की महिलाएं और बच्चियां बनाती हैं.
पौराणिक परंपरा आज भी है जीवित: मिट्टी का घरौेदा बनाने के पीछे कई पौराणिक मान्यताएं ( mythological beliefs behind making earthen house) है. जिनमें एक मान्यता यह भी है कि भगवान श्री राम जब 14 वर्षों का वनवास करके अयोध्या लौटे थें. तब पूरे अयोध्यावासी उनके स्वागत के लिए घरों का रंगारोहन और उसे दीपों से सजा कर उनका आवभगत किया था. इसी दौरान छोटी छोटी बच्चियां अपने घर में मिट्टी का घर बनाती थीं, जिसे घरौंदा कहते हैं.
भारतीय संस्कृति में हर पर्व का है विशेष महत्व: भारतीय संस्कृति में हर त्योहार बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है. वहीं इन त्योहारों का विशेण महत्व भी होता है. बात रौशनी के पर्व दीपावली की हो तो यह और भी खास हो जाता है. दीपावली पर घरौंदा बनाए जाने की परंपरा सदियों पुरानी है. कार्तिक महीने में घर की साफ सफाई में लोग जुट जाते हैं और दीपावली आगमन पर घरों में घरौंदा का निर्माण करते हैं. घरौंदा घर शब्द से बना है और सामान्य तौर पर दीपावली के अवसर पर अविवाहित लड़कियां घरौंदा का निर्माण करती है, ताकि उनका घर भरा भरा रहे.
"हमलोग पहले से मिट्टी का घरौंदा बनाते आ रहे हैं. यह सदियों से चलता आ रहा है. घर की लड़किया घरौंदा बनाती है. जिसमें दीए जलाकर, पटाखे फोड़कर खुशियां मनाते हैं. इससे घर में लक्ष्मी आती है. सुख-समृद्धि और संपदा आती है".- सुषमा देवी, स्थानीय
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