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बिहार की जेलों में क्षमता से अधिक कैदी, तीसरी लहर में कैसे होगा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन?

विशेषज्ञों के मुताबिक भारत में कोविड-19 की तीसरी लहर (Third Wave of Corona) अक्टूबर और नवंबर के बीच चरम पर हो सकती है. ऐसे में जेलों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, क्योंकि जेलो में क्षमता से कई हजार ज्यादा कैदी बंद हैं.

सोशल डिस्टेंसिंग
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Published : Aug 31, 2021, 6:16 PM IST

पटना: बिहार की 59 जेलों में क्षमता से काफी अधिक कैदी (Prisoners Exceeding Capacity in Jails) बंद हैं. ऐसे में अब जब विशेषज्ञों ने कोरोना की तीसरी लहर (Third Wave of Corona) की आशंका जताई है, कैदियों को सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) के तहत कैसे रखा जा सकता है. पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ दास (Former IPS Officer Amitabh Das) कहते हैं कि बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की अवहेलना कर रही है. अब तक एक भी कैदी को पैरोल पर नहीं छोड़ा गया है.

ये भी पढ़ें: स्वास्थ्य मंत्री बोले- तीसरी लहर से पहले बड़ी आबादी हो जाएगी वैक्सीनेट

बिहार की 59 जेलो में लगभग 46000 कैदी रखने की क्षमता है, लेकिन मौजूदा वक्त में इन जेलों में लगभग 60000 कैदी बंद हैं. जोकि क्षमता से 14000 अधिक कैदी हैं. कोरोना काल के मद्देनजर जेलों की क्षमता कम करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि पैरोल पर अंडर ट्रायल कैदियों को छोड़ा जाए, उसके बावजूद भी बिहार में अब तक एक भी कैदी को पैरोल पर नहीं छोड़ा गया है.

अमिताभ दास से बातचीत

जेल प्रशासन के मुताबिक करोना के मद्देनजर परिजनों से सीधी मुलाकात पर बंदिश लगाई गई है. इसके अलावे जेल में बंद है 99% कैदियों का कोरोना टीकाकरण हो चुका है. हालांकि जेल प्रशासन के मुताबिक जिनकी सजा लगभग पूरा हो चुकी है, वैसे 100 कैदियों को छोड़ा गया है. इसके अलावे जेल प्रशासन के द्वारा न्यायालय से गुहार कर अंडर ट्रायल कैदियों को बेल देने का आग्रह किया जा रहा है. कोर्ट के द्वारा कुछ कैदियों को बेल भी दी जा रही है. जेल प्रशासन के मुताबिक जेलों में 90% कैदी अंडर ट्रायल हैं. जेलों में सबसे अधिक कैदी शराबबंदी कानून से जुड़े हैं.

वहीं, बिहार के पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी राज्य सरकार उनके निर्देशों की अवहेलना कर रही है. महज कुछ सजायाफ्ता कैदी, जिनकी सजा लगभग पूरी हो गई है वैसे ही कैदियों को छोड़ा गया है. इसे राज्य सरकार का खानापूर्ति समझा जा सकता है.

उन्होंने बताया कि कई जेलों में मैं कार्यरत रहा हूं और विचाराधीन कैदी जो कि छोटे-मोटे मामले में बंद होते हैं, वैसे कैदियों को लेकर समीक्षा कर उन्हें कोरोना काल के दौरान छोड़ने की कवायद जेल प्रशासन को करनी चाहिए. बिहार में मौजूदा वक्त में भेड़-बकरियों के जैसे कैदियों को जेल में रखा गया है.

ये भी पढ़ें: बिहार की 59 जेल फुल: बंदियों की सोशल डिस्टेंसिंग के लिए बनाने पड़ेंगे 9 कारागार, इतनी रहेगी क्षमता

आपको बताते चलें कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर ने राजधानी पटना सहित बिहार की अन्य जेलों में बंद कुछ कैदियों और जिलों में तैनात कुछ पुलिसकर्मी कोरोना संक्रमित हुए थे, लेकिन किसी अनहोनी जैसी घटना नहीं घटित हुई थी.

जिस तरह से कोरोना की दूसरे लहर के दौरान कई आला अधिकारी कोरोना संक्रमित हुए थे और कुछ की मौत भी हुई थी और अस्पतालों में जिस तरह से स्वास्थ्य विभाग की कमी के वजह से लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी थी, ऐसे में अगर जेलों तक कोरोना की दस्तक होती है तो जेल प्रशासन के लिए इससे निपटना काफी मुश्किल होगा.

पटना: बिहार की 59 जेलों में क्षमता से काफी अधिक कैदी (Prisoners Exceeding Capacity in Jails) बंद हैं. ऐसे में अब जब विशेषज्ञों ने कोरोना की तीसरी लहर (Third Wave of Corona) की आशंका जताई है, कैदियों को सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) के तहत कैसे रखा जा सकता है. पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ दास (Former IPS Officer Amitabh Das) कहते हैं कि बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की अवहेलना कर रही है. अब तक एक भी कैदी को पैरोल पर नहीं छोड़ा गया है.

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बिहार की 59 जेलो में लगभग 46000 कैदी रखने की क्षमता है, लेकिन मौजूदा वक्त में इन जेलों में लगभग 60000 कैदी बंद हैं. जोकि क्षमता से 14000 अधिक कैदी हैं. कोरोना काल के मद्देनजर जेलों की क्षमता कम करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को निर्देश दिया था कि पैरोल पर अंडर ट्रायल कैदियों को छोड़ा जाए, उसके बावजूद भी बिहार में अब तक एक भी कैदी को पैरोल पर नहीं छोड़ा गया है.

अमिताभ दास से बातचीत

जेल प्रशासन के मुताबिक करोना के मद्देनजर परिजनों से सीधी मुलाकात पर बंदिश लगाई गई है. इसके अलावे जेल में बंद है 99% कैदियों का कोरोना टीकाकरण हो चुका है. हालांकि जेल प्रशासन के मुताबिक जिनकी सजा लगभग पूरा हो चुकी है, वैसे 100 कैदियों को छोड़ा गया है. इसके अलावे जेल प्रशासन के द्वारा न्यायालय से गुहार कर अंडर ट्रायल कैदियों को बेल देने का आग्रह किया जा रहा है. कोर्ट के द्वारा कुछ कैदियों को बेल भी दी जा रही है. जेल प्रशासन के मुताबिक जेलों में 90% कैदी अंडर ट्रायल हैं. जेलों में सबसे अधिक कैदी शराबबंदी कानून से जुड़े हैं.

वहीं, बिहार के पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भी राज्य सरकार उनके निर्देशों की अवहेलना कर रही है. महज कुछ सजायाफ्ता कैदी, जिनकी सजा लगभग पूरी हो गई है वैसे ही कैदियों को छोड़ा गया है. इसे राज्य सरकार का खानापूर्ति समझा जा सकता है.

उन्होंने बताया कि कई जेलों में मैं कार्यरत रहा हूं और विचाराधीन कैदी जो कि छोटे-मोटे मामले में बंद होते हैं, वैसे कैदियों को लेकर समीक्षा कर उन्हें कोरोना काल के दौरान छोड़ने की कवायद जेल प्रशासन को करनी चाहिए. बिहार में मौजूदा वक्त में भेड़-बकरियों के जैसे कैदियों को जेल में रखा गया है.

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आपको बताते चलें कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर ने राजधानी पटना सहित बिहार की अन्य जेलों में बंद कुछ कैदियों और जिलों में तैनात कुछ पुलिसकर्मी कोरोना संक्रमित हुए थे, लेकिन किसी अनहोनी जैसी घटना नहीं घटित हुई थी.

जिस तरह से कोरोना की दूसरे लहर के दौरान कई आला अधिकारी कोरोना संक्रमित हुए थे और कुछ की मौत भी हुई थी और अस्पतालों में जिस तरह से स्वास्थ्य विभाग की कमी के वजह से लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी थी, ऐसे में अगर जेलों तक कोरोना की दस्तक होती है तो जेल प्रशासन के लिए इससे निपटना काफी मुश्किल होगा.

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