पटना: आज भले ही राजनीतिक फायदे के लिए रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) के परिवार में तलवारें खिंच गई हैं. लेकिन बिहार में एलजेपी अकेली पार्टी नहीं है, जहां परिवार का दबदबा है. क्षेत्रीय दल मसलन आरजेडी, एलजेपी और हम पर तो मानों परिवार विशेष का ही कब्जा है. जबकि जेडीयू, बीजेपी और कांग्रेस में भी नेताओं के बच्चों और रिश्तेदारों की भरमार है.
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राजनीति में परिवार का दखल
दरअसल बिहार में परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती राजनीति का चलन पुराना है. ज्यादातर क्षेत्रीय दलों की स्थिति कमोबेश एक जैसी ही है. पिछले तीन दशक से लालू और रामविलास की फैमिली इस मामले में सबसे अधिक चर्चा में रही है. वहीं, जीतन राम मांझी की राजनीति भी पिछले कुछ समय से पारिवारिक हित को ही साधती हुई दिख रही है.
लालू एंड फैमिली की धमक
बिहार की राजनीति में जब भी परिवारवाद की बात होती है, सबसे पहला नाम लोगों के जेहन में लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav)का आता है. पहले दोनों सालों (साधु और सुभाष) को लेकर उन पर तमाम आरोप लगे, फिर 1997 में चारा घोटाले में जेल जाने की नौबत आई तो लालू ने पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी.
बेटा-बेटी राजनीति में स्थापित
लालू ने परिवारवाद को आगे बढ़ाते हुए बड़ी बेटी मीसा भारती (Misa Bharti) को राज्यसभा में सांसद बनाया. वहीं, 2015 के चुनाव में दोनों बेटों तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव को विधायक बनवाया. नीतीश की सरकार बनने पर तेजस्वी सूबे के उप-मुख्यमंत्री और तेजप्रताप स्वास्थ्य मंत्री बने. फिलहाल तेजस्वी नेता प्रतिपक्ष हैं, जबकि तेजप्रताप हसनपुर से विधायक हैं.
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चर्चा में पासवान परिवार
वैसे तो लालू परिवार का सूबे की सियासत में सबसे अधिक दखल है, लेकिन रामविलास पासवान के परिवार भी कहीं से पीछे नहीं है. पासवान ने तमाम आरोपों के बावजूद हमेशा अपने परिवार के लोगों को आगे बढ़ाया. दोनों भाई पशुपति कुमार पारस और रामचंद्र पासवान को विधायक और सांसद बनाया. पशुपति बिहार सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं.
नई पीढ़ी को भी आगे बढ़ाया
रामविलास पासवान ने परिवार की नई पीढ़ी को भी राजनीति में पूरा अवसर दिया. पहले बेटे चिराग पासवान को जमुई से सांसद बनवाया, फिर भतीजे प्रिंस राज (रामचंद्र पासवान के बेटे) को समस्तीपुर से लोकसभा भेजा. पासवान के निधन के बाद चिराग ने भी परिवार के सदस्यों को आगे बढ़ाने की कोशिश की. 2020 के विधानसभा चुनाव में प्रिंस राज के छोटे भाई कृष्ण राज को रोसड़ा से टिकट दिया, हालांकि वे चुनाव हार गए.
अहम पदों पर परिवार विराजमान
एलजेपी में न केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रामविलास पासवान और चिराग पासवान का कब्जा रहा, बल्कि तमाम अहम पदों पर भी परिवार के सदस्यों का ही दबदबा रहा. एलजेपी में संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष, संसदीय दल का नेता, प्रदेश अध्यक्ष, दलित सेना का राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी परिवार के पास ही रही. केंद्र और राज्य में मंत्री भी क्रमश: रामविलास और पशुपति पारस ही बने.
मांझी भी पीछे नहीं
विरासत की सियासत को आगे बढ़ाने में पूर्व सीएम जीतनराम मांझी भी पीछे नहीं हैं. नीतीश से अलग होने के बाद हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा का गठन किया. बेटे संतोष सुमन को विधान पार्षद बनाने के लिए 2018 में आरजेडी से हाथ मिलाया. 2020 चुनाव के बाद बाकी विधायकों पर बेटे को तरजीह देते हुए नीतीश सरकार में मंत्री बनवा दिया. समधन ज्योति देवी भी बाराचट्टी से विधाक हैं. खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बेटे संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.
पीढ़ी-दर-पीढ़ी फैमिली पॉलिटिक्स
लालू-रामविलास और मांझी के अलावे भी कई सारी पॉलिटिकल फैमिली है, जिसके कई सारे सदस्य राजनीति में सक्रिय हैं. इनमें से कुछ काफी हिट हैं, तो कुछ आज भी संघर्ष कर रहे हैं.
- बिहार पीपुल्स पार्टी के संस्थापक और पूर्व सांसद आनंद मोहन का नब्बे के दशक में जलवा था. उनकी पत्नी लवली आनंद भी सांसद और विधायक बनीं. फिलहाल उनके बेटे चेतन आनंद शिवहर से आरजेडी के विधायक हैं.
- जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष पप्पू यादव पहले पूर्णिया और बाद में मधेपुरा से सांसद बने. उनकी पत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस के टिकट पर सहरसा और सुपौल की सांसद रह चुकी हैं. पप्पू ने अपनी मां शांति प्रिया को 2009 में पूर्णिया लोकसभा सीट से चुनाव लड़वाया था, लेकिन उन्हें शिकस्त मिली.
- खगड़िया से सांसद रहे शकुनी चौधरी ने भी अपने बेटे सम्राट चौधरी को राजनीति में आगे बढ़ाया. फिलहाल वो बीजेपी में हैं और बिहार सरकार में मंत्री हैं.
- कभी नीतीश कुमार के करीबी रहे पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के परिवार का राजनीति में अच्छा-खासा प्रभाव है. उनके बेटे अजय प्रताप सिंह विधायक रह चुके हैं. वहीं दूसरे बेटे सुमित सिंह फिलहाल बिहार सरकार में मंत्री हैं.
- पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की पत्नी पुतुल देवी जहां बांका से सांसद रही हैं, वहीं उनकी बेटी श्रेयसी सिंह फिलहाल जमुई से बीजेपी की विधायक हैं.
- कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र के बेटे नीतीश मिश्र भी लंबे समय से राजनीति में हैं. वे अभी झंझारपुर से बीजेपी के विधायक हैं.
दूसरों को सलाह देने में सभी आगे
राजनीतिक दलों के नेता ये तो मानते हैं कि परिवारवाद की राजनीति अच्छी नहीं होती, लेकिन खुद ही अमल नहीं करते. हम के प्रवक्ता विजय यादव कहते हैं कि परिवारवाद के कारण ही पार्टियों की आज टूट की स्थिति बन रही है, एलजेपी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. वहीं, एलजेपी प्रवक्ता चंदन सिंह का अपना तर्क है.
कांग्रेस-बीजेपी में भी कई नाम
बिहार में कांग्रेस पर भी परिवारवाद के खूब आरोप लगते हैं. कई नेताओं के बेटे-बेटियों को लोकसभा और विधानभा के चुनाव में टिकट मिलते हैं. वैसे अब बीजेपी भी इसमें पीछे नहीं है, सम्राट चौधरी, नीतीश मिश्र और श्रेयसी सिंह उनमें से कुछ चर्चित नाम हैं. बीजेपी प्रवक्ता विनोद शर्मा परिवारवाद के आरोपों को नकारते हुए कहते हैं कि हमारे उसी को टिकट मिलता है, जो जमीन से जुड़ा
नीतीश को परहेज, जेडीयू में अनेक
हालांकि नीतीश कुमार खुद तो इससे बचे हुए हैं, लेकिन उनकी पार्टी जेडीयू इससे पूरी तरह अछूती नहीं है. हालिया विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने कई बड़े नेताओं के परिवार के सदस्यों को टिकट दिया.
- परिवारवाद का विरोध करने वाले कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद उनके बेटे रामनाथ ठाकुर को जेडीयू ने ही राज्यसभा सांसद बनाया.
- मंडल कमीशन के सूत्रधार बीपी मंडल के पौत्र निखिल मंडल जेडीयू के प्रवक्ता हैं. 2020 विधानसभा चुनाव में मधेपुरा से चुनाव लड़े, लेकिन हार गए.
- जेडीयू ने पूर्व सांसद रामलखन यादव के पौत्र जयवर्धन यादव को पटना की पालीगंज सीट से उम्मीदवार बनाया, लेकिन वो चुनाव हार गए. हालांकि जयवर्धन इससे पहले आरजेडी के टिकट पर 2015 में विधायक बने थे.
- कभी शकुनी चौधरी के बेटे सम्राट चौधरी और जगन्नाथ मिश्र के बेटे नीतीश मिश्र को भी नीतीश कुमार ने ही राजनीति में आगे बढ़ने का मौका दिया था. अब दोनों बीजेपी में हैं.
परिवारवाद के लिए जिम्मेदार कौन?
राजनीतिक विशेषज्ञ प्रो. अजय झा कहते हैं कि परिवारवाद दरअसल लोकतंत्र में विरोधाभास पैदा करता है, लेकिन इसके लिए तो जनता को ही सतर्क रहने की जरूरत है. वे चाहें तो उन्हें स्वीकार कर सकते हैं, नहीं तो खारिज भी कर सकते हैं. प्रो. अजय की मानें तो वजह चाहे जो भी हों, लेकिन परिवारवाद के आरोपों के बाद भी कई नेताओं को जनता पसंद भी करने लगती है. तेजस्वी यादव इसके उदाहरण हैं, जो हाल में ही पुन: नेता प्रतिपक्ष बने.
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आंदोलन की उपज, फैमिली को बढ़ावा
लालू यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान सरीखे नेता वास्तव में सामाजिक आंदोलन से निकले हैं. बाद के दिनों में भी जेपी, लोहिया और कर्पूरी ठाकुर के सिद्धांतों की बात करते रहते हैं, लेकिन जिन लोहिया और कर्पूरी ने हमेशा परिवारवाद और भाई-भतीजावाद का विरोध किया, आज उन्हीं के शिष्यों पर इसे बढ़ाने का आरोप लगता है. फिलहाल सियासत का जो चरित्र है, उसमें लगता नहीं कि परिवारवाद पर विराम लगेगा. जाहिर है इससे भले ही जनता का भला हो न हो, लेकिन परिवारवाद के कारण नेताओं के परिवार का तो भला हो ही रहा है.