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बिहार स्थापना दिवस के अवसर पर ऐतिहासिक नाटक 'योगानंद' का किया गया मंचन

बिहार दिवस के अवसर पटना के गांधी मैदान स्थित बिहार आर्ट थियेटर रंगमंच का आयोजन किया गया. वहीं, डॉ. प्रमोद कुमार सिंह द्वारा लिखित एवं कुमार मानव द्वारा निर्देशित ऐतिहासिक नाटक 'योगानंद' का मंचन किया गया.

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Published : Mar 23, 2021, 6:45 AM IST

नाटक योगानंद मंचन
नाटक योगानंद मंचन

पटना: बिहार दिवस के अवसर पटना के गांधी मैदान स्थित बिहार आर्ट थियेटर रंगमंच का आयोजन किया गया. इस अवसर पर एहसास कलाकृति द्वारा सांस्कृतिक मंत्रालय (भारत सरकार) सौजन्य से हुआ. डॉ. प्रमोद कुमार सिंह द्वारा लिखित एवं कुमार मानव द्वारा निर्देशित ऐतिहासिक नाटक 'योगानंद' का मंचन किया गया.

नाटक योगानंद मंचन
नाटक योगानंद का मंचन

पढ़ें: प्रेम नाथ खन्ना स्मृति आदिशक्ति नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन नाटक 'कसाई' का किया गया मंचन

नाटक योगानंद का मंचन
नाटक योगानंद की कहानी तीन मित्रों से शुरू होती है. तीनों मित्रों के गुरु वाणी गुरु दक्षिणा में एक विशाल आश्रम एवं विद्यालय के निर्माण के लिए एक करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की मांग करते हैं. उन दिनों पाटलिपुत्र के राजा नंद के सिवा किसी अन्य के पास इतनी स्वर्ण मुद्राएं नहीं थी. तीनों दोस्त राजा के पास आते हैं, लेकिन उन्हें पता चलता है कि राजा नंद का आज ही निधन हो गया. इंद्र दत्त अपने मित्रों से परामर्श कर मित्र राज आनंद के शरीर में परकाया विधा द्वारा प्रवेश करता है.

ऐतिहासिक नाटक योगानंद का मंचन.

पढ़ें: बिहार आर्ट थियेटर में 9वां राष्ट्रीय प्रयास नाट्य मेला का शुभारंभ

इसके बाद राजा नंद के रूप में हुआ अपने दोस्तों को धन देने का आदेश महामंत्री को देता है. वा राज आनंद को मगध साम्राज्य की भलाई के लिए जीवित रखना चाहता था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है. अंत में उसे राजा के शरीर को छोड़कर जाना होता है और चाणक्य के अखंड भारत का सपना साकार होता है और नंद के बाद चंद्रगुप्त मगध समाज का नया अधिपति होता है.

पटना: बिहार दिवस के अवसर पटना के गांधी मैदान स्थित बिहार आर्ट थियेटर रंगमंच का आयोजन किया गया. इस अवसर पर एहसास कलाकृति द्वारा सांस्कृतिक मंत्रालय (भारत सरकार) सौजन्य से हुआ. डॉ. प्रमोद कुमार सिंह द्वारा लिखित एवं कुमार मानव द्वारा निर्देशित ऐतिहासिक नाटक 'योगानंद' का मंचन किया गया.

नाटक योगानंद मंचन
नाटक योगानंद का मंचन

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नाटक योगानंद का मंचन
नाटक योगानंद की कहानी तीन मित्रों से शुरू होती है. तीनों मित्रों के गुरु वाणी गुरु दक्षिणा में एक विशाल आश्रम एवं विद्यालय के निर्माण के लिए एक करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की मांग करते हैं. उन दिनों पाटलिपुत्र के राजा नंद के सिवा किसी अन्य के पास इतनी स्वर्ण मुद्राएं नहीं थी. तीनों दोस्त राजा के पास आते हैं, लेकिन उन्हें पता चलता है कि राजा नंद का आज ही निधन हो गया. इंद्र दत्त अपने मित्रों से परामर्श कर मित्र राज आनंद के शरीर में परकाया विधा द्वारा प्रवेश करता है.

ऐतिहासिक नाटक योगानंद का मंचन.

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इसके बाद राजा नंद के रूप में हुआ अपने दोस्तों को धन देने का आदेश महामंत्री को देता है. वा राज आनंद को मगध साम्राज्य की भलाई के लिए जीवित रखना चाहता था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाता है. अंत में उसे राजा के शरीर को छोड़कर जाना होता है और चाणक्य के अखंड भारत का सपना साकार होता है और नंद के बाद चंद्रगुप्त मगध समाज का नया अधिपति होता है.

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