पटनाः बिहार के पटना हाईकोर्ट ने पिछले दो दशकों से राज्य के विभिन्न निचली अदालतों में बड़ी संख्या में लंबित आपराधिक मुकदमों के मामले पर सुनवाई की. इस दौरान एसीजे जस्टिस सीएस सिंह की खंडपीठ ने बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार(बालसा) के सचिव को नेशनल जुडिशल ग्रिड और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के उपलब्ध आंकड़े को मूल रिकॉर्ड से जांच करने का निर्देश दिया. इस मामले पर अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद की जाएगी.
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लगभग 67 हजार मामलें लंबितः इस मामले में याचिकाकर्ता कौशिक रंजन की अधिवक्ता शमा सिन्हा ने कोर्ट को बताया कि बड़ी तादाद में आपराधिक मामलें लंबित पड़े हैं. उन्होंने बताया कि लगभग 67 हजार मामले ऐसे है, जिनमें पार्टियां कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं. जिसके बाद कोर्ट ने बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार व विभिन्न ज़िला विधिक सेवा प्राधिकार को ऐसे मामलों को चिन्हित कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया.
बहुत सारे मामलें काफी पुरानेः अधिवक्ता शमा सिन्हा ने कोर्ट को बताया कि वकीलों सहायता के अभाव में लगभग सात लाख आपराधिक मामलें लंबित हैं. कोर्ट ने इस सम्बन्ध में बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकार को आंकड़े की जांच कर कार्रवाई करने का निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि इन मामलों में वकीलों की सहायता दिए जाने को गम्भीरता से लिया जाना चाहिए. वहीं, अधिवक्ता शमा सिन्हा ने कोर्ट को बताया कि बहुत सारे मामलें काफी पुराने है, जिनमें अधिकांश सन्दर्भहीन हो चुके है. तीस चालीस साल पुराने मामलों का कोई अर्थ नहीं रह जाता है.
आंकड़े नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हैंः महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार की ओर से ऐसे कार्रवाई की जाएगी. साथ ही इस मामले में हाईकोर्ट प्रशासन को भी जवाब देने का आदेश दिया गया था. कल की सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील शमा सिन्हा ने कोर्ट को बताया था कि ये आंकड़े नेशनल जुडिशल ग्रिड और नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो से मिले हैं. इन्ही आंकड़ों को कोर्ट के सामने पेश किया गया.
एक अदालत में 1965 अपराधिक मामला लंबितः जनहित याचिका दंड प्रक्रिया कानून के तहत प्ली- बारगेनिंग के कानून को लागू करने के लिए की गई है. रिपोर्ट में बताया गया कि बिहार की एक अदालत में 1965 का एक अपराधिक मामला लंबित है, जो कि नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड में साफ दिखता है. कोर्ट को यह भी बताया गया इतने पुराने लंबित मामले में आरोपी और परिवादी दोनों के जीवित रहने पर संदेह है, ऐसी स्थिति में बेकार और कानूनी तौर पर औचित्य पड़े अपराधिक मामले को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए. इस मामले पर अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद की जाएगी.