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Bihar Politics: JDU में ललन सिंह क्यों पड़े कमजोर.. क्या फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष को किनारे करने में लगे हैं नीतीश? - Bihar Politics

क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह के बीच दूरियां बढ़ रही हैं? क्या आने वाले समय में जेडीयू में दो फाड़ की नौबत आ सकती है? ये सवाल इसलिए क्योंकि पिछले कुछ दिनों से पार्टी में अतर्कलह और बगावत बढ़ गई है. इस बीच अशोक चौधरी और ललन सिंह प्रकरण ने इसे और हवा दे दी है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्यों अचानक मजबूत माने जाने वाले ललन सिंह पार्टी में कमजोर पड़ते जा रहे हैं? पढ़ें ये खास रिपोर्ट..

नीतीश कुमार और ललन सिंह में दूरी बढ़ी
नीतीश कुमार और ललन सिंह में दूरी बढ़ी
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 28, 2023, 7:57 PM IST

देखें रिपोर्ट

पटना: पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को जब जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने पार्टी से बाहर निकलने में बड़ी भूमिका निभाई थी, तब उस समय राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने कहा था कि पार्टी को मजबूत करेंगे और नीतीश कुमार ने जेडीयू को राष्ट्रीय पार्टी बनाने की जो जिम्मेदारी दी है, उसे पूरा करेंगे. हालांकि पिछले दो सालों में जनता दल यूनाइटेड राष्ट्रीय पार्टी तो नहीं बन सका लेकिन एक-एक कर कई नेता लगातार पार्टी छोड़ने लगे हैं. पार्टी के अंदर साफ दिख रहा है कि ललन सिंह कमजोर पड़ते जा रहे हैं. यही वजह है कि बीजेपी यहां तक कहने लगी है कि नीतीश कुमार के इशारे पर ही पार्टी के वरिष्ठ मंत्री ललन सिंह से भिड़ जाते हैं.

ये भी पढ़ें: Bihar Politics: JDU का विवादों से पुराना नाता, ललन सिंह और अशोक चौधरी के बीच बहस ने नीतीश की बढ़ाई चुनौती

कभी कांग्रेस में शामिल हो गए थे ललन सिंह: राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह 2009-10 में नीतीश कुमार से नाराज होकर पार्टी छोड़ चुके हैं और कांग्रेस के साथ 2010 का विधानसभा और 2014 का लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं. हालांकि चुनाव जीत नहीं पाए, उस समय ललन सिंह ने बड़ा बयान भी दिया था कि नीतीश कुमार के पेट में दांत है और उस दांत को हम ही तोड़ेंगे लेकिन बाद में फिर नीतीश कुमार के साथ समझौता हो गया. जिसके बाद बदलते वक्त के साथ नीतीश कुमार ने न केवल अपने नजदीकी आरसीपी सिंह को बाहर का रास्ता दिखाया बल्कि ललन सिंह को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी भी दे दी.

जेडीयू में ऑल इज नॉट वेल: पहली बार ललन सिंह जब नीतीश कुमार से अलग हुए तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे, अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं लेकिन अब पिछले दो सालों में ऐसा क्या हुआ कि ललन सिंह पार्टी में कमजोर पड़ते जा रहे हैं. पार्टी के मंत्री भी उनसे बहस करने लगे हैं. पार्टी के नेता ललन सिंह पर आरोप लगाकर पार्टी छोड़ रहे हैं. बीजेपी के नेता तो यहां तक बयान दे रहे हैं कि नीतीश कुमार के इशारे पर ही मंत्री ललन सिंह को औकात बता रहे हैं.

"जो अशोक चौधरी ने ललन सिंह का पानी उतार दिया, वह नीतीश कुमार के इशारे पर किया. मीडियो में जो खबरें आ रही है, उसके मुताबिक मंत्री ने कहा कि मैं मुख्यमंत्री को बता कर ही कहीं भी जाता हूं, आप कौन होते हैं"- राम सागर सिंह, प्रवक्ता, बीजेपी

जेडीयू प्रवक्ता की सफाई: वहीं, ललन सिंह के पार्टी में कमजोर होने और जेडीयू छोड़ रहे हैं तो नेताओं की ओर से यह आरोप लगाया कि ललन सिंह पार्टी को कमजोर कर रहे हैं. हालांकि जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ललन सिंह का बचाव करते हुए कह रहे हैं कि सभी छोड़ने वाले आरसीपी सिंह के आदमी हैं. आरसीपी सिंह ने पार्टी को कमजोर कर दिया था.

"वही सभी लोगों (आरसीपी सिंह) ने मिलकर जेडीयू को कमजोर किया है. पार्टी के विधायकों की संख्या 43 पहुंच गई. वो सभी लोग बीजेपी के एजेंट थे. नहीं तो क्या वजह है कि चुनाव हारते ही सभी लोगों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया"- नीरज कुमार, मुख्य प्रवक्ता, जेडीयू

क्यों कमजोर पड़ने लगे ललन सिंह?: माना जाता है कि नीतीश कुमार ने ललन सिंह को जेडीयू को राष्ट्रीय पार्टी बनाने की जिम्मेदारी थी लेकिन उसमें सफल नहीं हो सके, जबकि नागालैंड में जेडीयू का प्रदर्शन चिराग पासवान की पार्टी से भी खराब रहा. कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में भी पार्टी को जीत नहीं मिल पाई. यह भी कहा जाता है कि महागठबंधन की सरकार बनने के बाद से उनकी लालू यादव से नजदीकियां बढ़ गई है, जो नीतीश कुमार को पसंद नहीं है. वहीं ललन सिंह जिस तरह से बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख अपना रखा है, उस वजह से बीजेपी से नीतीश कुमार की दूरियां काफी अधिक बढ़ गई.

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ललन सिंह के रवैये पर सवाल: इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से ललन सिंह पार्टी नेताओं से सहज ढंग से नहीं मिल रहे हैं. ललन सिंह के रुखे स्वभाव से पार्टी नेताओं की नाराजगी साफ दिखती है. इसलिए पार्टी छोड़ने वाले उपेंद्र कुशवाहा हो, मोनाजिर हसन हो, सुहेली मेहता हो या रणवीर नंदन, इन सभी ने ललन सिंह पर ही आरोप लगाया है.

जेडीयू में पूर्व अध्यक्ष की विदाई की परंपरा: वैसे जेडीयू का इतिहास रहा है कि नीतीश कुमार अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाते रहे हैं. जॉर्ज फर्नांडीस, शरद यादव और आरसीपी सिंह इसके उदाहरण हैं. अब यदि ललन सिंह के साथ नीतीश कुमार कोई बड़ा फैसला लेते हैं तो आश्चर्य की बात नहीं होगी लेकिन इस बार पार्टी की स्थिति कुछ अलग है. पहले वाली स्थिति में ना तो नीतीश कुमार दिख रहे हैं और ना ही पार्टी पहले जैसी है.

क्या कहते हैं जानकार?: राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण पांडे का कहना है आरसीपी सिंह जब केंद्र में मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे तो उस समय नीतीश कुमार ने सांत्वना पुरस्कार के रूप में ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी थी लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद ललन सिंह हमेशा विवाद में ही रहे हैं. पार्टी में भी सब ठीक नहीं चल रहा है.

"कहा जा सकता है कि अभी जेडीयू में सब कुछ ठीक नहीं है. ललन सिंह हमेशा विवादों में ही रहते हैं. वैसे भी जिस मकसद से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए थे, उसमें भी बहुत अधिक सफलता उनको मिली नहीं"- अरुण पांडेय, राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ

तो क्या ललन सिंह बाहर हो जाएंगे?: राजनीतिक हलको में इस बात की भी चर्चा है कि ललन सिंह के रहते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी आसान नहीं है. अगर वापसी होती है तो ललन सिंह को साइड करना नीतीश कुमार के लिए मजबूरी हो जाएगी. ऐसे में देखना है कि जेडीयू में ललन सिंह को लेकर नीतीश कुमार की क्या रणनीति रहती है.

देखें रिपोर्ट

पटना: पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को जब जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह ने पार्टी से बाहर निकलने में बड़ी भूमिका निभाई थी, तब उस समय राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने कहा था कि पार्टी को मजबूत करेंगे और नीतीश कुमार ने जेडीयू को राष्ट्रीय पार्टी बनाने की जो जिम्मेदारी दी है, उसे पूरा करेंगे. हालांकि पिछले दो सालों में जनता दल यूनाइटेड राष्ट्रीय पार्टी तो नहीं बन सका लेकिन एक-एक कर कई नेता लगातार पार्टी छोड़ने लगे हैं. पार्टी के अंदर साफ दिख रहा है कि ललन सिंह कमजोर पड़ते जा रहे हैं. यही वजह है कि बीजेपी यहां तक कहने लगी है कि नीतीश कुमार के इशारे पर ही पार्टी के वरिष्ठ मंत्री ललन सिंह से भिड़ जाते हैं.

ये भी पढ़ें: Bihar Politics: JDU का विवादों से पुराना नाता, ललन सिंह और अशोक चौधरी के बीच बहस ने नीतीश की बढ़ाई चुनौती

कभी कांग्रेस में शामिल हो गए थे ललन सिंह: राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह 2009-10 में नीतीश कुमार से नाराज होकर पार्टी छोड़ चुके हैं और कांग्रेस के साथ 2010 का विधानसभा और 2014 का लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं. हालांकि चुनाव जीत नहीं पाए, उस समय ललन सिंह ने बड़ा बयान भी दिया था कि नीतीश कुमार के पेट में दांत है और उस दांत को हम ही तोड़ेंगे लेकिन बाद में फिर नीतीश कुमार के साथ समझौता हो गया. जिसके बाद बदलते वक्त के साथ नीतीश कुमार ने न केवल अपने नजदीकी आरसीपी सिंह को बाहर का रास्ता दिखाया बल्कि ललन सिंह को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी भी दे दी.

जेडीयू में ऑल इज नॉट वेल: पहली बार ललन सिंह जब नीतीश कुमार से अलग हुए तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे, अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं लेकिन अब पिछले दो सालों में ऐसा क्या हुआ कि ललन सिंह पार्टी में कमजोर पड़ते जा रहे हैं. पार्टी के मंत्री भी उनसे बहस करने लगे हैं. पार्टी के नेता ललन सिंह पर आरोप लगाकर पार्टी छोड़ रहे हैं. बीजेपी के नेता तो यहां तक बयान दे रहे हैं कि नीतीश कुमार के इशारे पर ही मंत्री ललन सिंह को औकात बता रहे हैं.

"जो अशोक चौधरी ने ललन सिंह का पानी उतार दिया, वह नीतीश कुमार के इशारे पर किया. मीडियो में जो खबरें आ रही है, उसके मुताबिक मंत्री ने कहा कि मैं मुख्यमंत्री को बता कर ही कहीं भी जाता हूं, आप कौन होते हैं"- राम सागर सिंह, प्रवक्ता, बीजेपी

जेडीयू प्रवक्ता की सफाई: वहीं, ललन सिंह के पार्टी में कमजोर होने और जेडीयू छोड़ रहे हैं तो नेताओं की ओर से यह आरोप लगाया कि ललन सिंह पार्टी को कमजोर कर रहे हैं. हालांकि जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ललन सिंह का बचाव करते हुए कह रहे हैं कि सभी छोड़ने वाले आरसीपी सिंह के आदमी हैं. आरसीपी सिंह ने पार्टी को कमजोर कर दिया था.

"वही सभी लोगों (आरसीपी सिंह) ने मिलकर जेडीयू को कमजोर किया है. पार्टी के विधायकों की संख्या 43 पहुंच गई. वो सभी लोग बीजेपी के एजेंट थे. नहीं तो क्या वजह है कि चुनाव हारते ही सभी लोगों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया"- नीरज कुमार, मुख्य प्रवक्ता, जेडीयू

क्यों कमजोर पड़ने लगे ललन सिंह?: माना जाता है कि नीतीश कुमार ने ललन सिंह को जेडीयू को राष्ट्रीय पार्टी बनाने की जिम्मेदारी थी लेकिन उसमें सफल नहीं हो सके, जबकि नागालैंड में जेडीयू का प्रदर्शन चिराग पासवान की पार्टी से भी खराब रहा. कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में भी पार्टी को जीत नहीं मिल पाई. यह भी कहा जाता है कि महागठबंधन की सरकार बनने के बाद से उनकी लालू यादव से नजदीकियां बढ़ गई है, जो नीतीश कुमार को पसंद नहीं है. वहीं ललन सिंह जिस तरह से बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रुख अपना रखा है, उस वजह से बीजेपी से नीतीश कुमार की दूरियां काफी अधिक बढ़ गई.

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ललन सिंह के रवैये पर सवाल: इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से ललन सिंह पार्टी नेताओं से सहज ढंग से नहीं मिल रहे हैं. ललन सिंह के रुखे स्वभाव से पार्टी नेताओं की नाराजगी साफ दिखती है. इसलिए पार्टी छोड़ने वाले उपेंद्र कुशवाहा हो, मोनाजिर हसन हो, सुहेली मेहता हो या रणवीर नंदन, इन सभी ने ललन सिंह पर ही आरोप लगाया है.

जेडीयू में पूर्व अध्यक्ष की विदाई की परंपरा: वैसे जेडीयू का इतिहास रहा है कि नीतीश कुमार अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाते रहे हैं. जॉर्ज फर्नांडीस, शरद यादव और आरसीपी सिंह इसके उदाहरण हैं. अब यदि ललन सिंह के साथ नीतीश कुमार कोई बड़ा फैसला लेते हैं तो आश्चर्य की बात नहीं होगी लेकिन इस बार पार्टी की स्थिति कुछ अलग है. पहले वाली स्थिति में ना तो नीतीश कुमार दिख रहे हैं और ना ही पार्टी पहले जैसी है.

क्या कहते हैं जानकार?: राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण पांडे का कहना है आरसीपी सिंह जब केंद्र में मंत्रिमंडल में शामिल हुए थे तो उस समय नीतीश कुमार ने सांत्वना पुरस्कार के रूप में ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी थी लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद ललन सिंह हमेशा विवाद में ही रहे हैं. पार्टी में भी सब ठीक नहीं चल रहा है.

"कहा जा सकता है कि अभी जेडीयू में सब कुछ ठीक नहीं है. ललन सिंह हमेशा विवादों में ही रहते हैं. वैसे भी जिस मकसद से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए थे, उसमें भी बहुत अधिक सफलता उनको मिली नहीं"- अरुण पांडेय, राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ

तो क्या ललन सिंह बाहर हो जाएंगे?: राजनीतिक हलको में इस बात की भी चर्चा है कि ललन सिंह के रहते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी आसान नहीं है. अगर वापसी होती है तो ललन सिंह को साइड करना नीतीश कुमार के लिए मजबूरी हो जाएगी. ऐसे में देखना है कि जेडीयू में ललन सिंह को लेकर नीतीश कुमार की क्या रणनीति रहती है.

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