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गुरुवार को गुरु प्रदोष व्रत, मनोकामना पूर्ति के लिए इस मुहूर्त में करें भोलेनाथ की आराधना

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 14 अप्रैल यानी कि गुरुवार को है, इसलिए यह गुरु प्रदोष व्रत (Guru Pradosh Vrat 2022) है. गुरु प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूरे विधि विधान से पूजा की जाती है, जिससे उत्तम स्वास्थ्य, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है. तो आइए जानते हैं गुरु प्रदोष व्रत एवं पूजा विधि के बारे में.

Guru Pradosh Vrat 2022
Guru Pradosh Vrat 2022
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Published : Apr 13, 2022, 5:23 PM IST

Updated : Apr 13, 2022, 10:51 PM IST

पटना: हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह के शुक्ल व कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जाता है. प्रदोष व्रत भगवान शंकर को समर्पित माना गया है. चैत्र मास के शुक्ल पत्र की त्रयोदशी इस साल 14 अप्रैल 2022, गुरुवार को पड़ रही है. इस दिन गुरुवार होने के कारण इसे गुरु प्रदोष के नाम से जाना जाएगा. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर व माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा ( Guru Pradosh Vrat puja vidhi ) की जाती है. शिव भक्तों के लिए यह दिन खास होता है. इस दिन भक्त उपवास भी रखते हैं.

पढ़ें- भौम प्रदोष व्रत कल, शिव-पार्वती की अराधना से मिलेगी कर्ज से मुक्ति

गुरु प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त: प्रदोष-व्रत चन्द्रमौलेश्वर भगवान शिव की प्रसन्नता व आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए किया जाता है. भगवान शिव को आशुतोष भी कहा गया है. आचार्य मनोज कुमार मिश्रा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में प्रदोष व्रत के बारे में विस्तृत जानकारी दी है. उन्होंने कहा कि प्रदोष व्रत गुरुवार को है इसलिए इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जाता है. शाम 7:35 बजे से लेकर 8:50 बजे तक पूजा का शुभ मुहूर्त ( Guru Pradosh Vrat subh muhurat ) है. इस काल में जो लोग भी भगवान शिव की आराधना करेंगे, पूजा-अर्चना करेंगे, उनकी हर मनोकामना पूर्ण होगी.

प्रदोष व्रत पूजन विधि: प्रदोष व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कर लें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें और व्रत का संकल्प लें. भोलेनाथ को गंगाजल से अभिषेक कर पुष्प अर्पित करें. भगवान शिव के साथ माता पार्वती और गणेश जी का भी पूजन करें. भगवान भोलेनाथ की प्रिय वस्तुएं उन्हें अर्पित करें और आरती अवश्य करें. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का अभिषेक करने के साथ ही बेलपत्र भी अर्पित करें. इसके बाद भगवान शिव के मंत्रों का जप करें. जाप के बाद प्रदोष व्रत कथा सुनें. अंत में आरती करें और पूरे परिवार में प्रसाद बांटे. ध्यान रखें प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में ही की जाती है. सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक का समय प्रदोष काल माना जाता है.

गुरू प्रदोष व्रत का महत्व: धार्मिक मान्यताओं (Guru Pradosh Vrat importance) के अनुसार, इस दिन व्रत करने वाले भक्तों को संतान की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है. सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान शिव के मंत्रों का जाप करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है.

ऐसे करें भोले को प्रसन्न: प्रदोष-व्रत प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को होता है.सभी पंचागों में प्रदोष-व्रत की तिथि का विशेष उल्लेख दिया गया होता है. दिन के अनुसार प्रदोष-व्रत के महत्त्व में और भी अधिक वृद्धि हो जाती है. जैसे सोमवार दिन होने वाला प्रदोष-व्रत सोम प्रदोष, मंगलवार के दिन होने वाला प्रदोष-व्रत भौम-प्रदोष और गुरुवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत गुरु प्रदोष के नाम से जाना जाता है. इन दिनों में आने वाला प्रदोष विशेष लाभदायी होता है. प्रदोष वाले दिन प्रात:काल स्नान करने के पश्चात भगवान शिव का पूजन करनी चाहिए. दिन में केवल फलाहार ग्रहण कर प्रदोषकाल में भगवान शिव का अभिषेक पूजन कर व्रत का पारण करना चाहिए.

प्रदोष व्रत का ज्योतिष महत्त्व: भगवान भोलेनाथ नवग्रहों के राजा हैं. भगवान भोलेनाथ के ही आशीर्वाद से विरोधी तत्व भी एक होकर आपको जीवन में शुभता देते हैं जैसे शिव परिवार में भगवान भोलेनाथ की साली माता गंगा जी हैं, उन्हें वह अपने सिर पर धारण करते हैं और माता पार्वती के साथ विराजमान होते हैं. भगवान भोलेनाथ के गले में सर्पराज विराजमान हैं और उनके पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर साथ में ही रहता है और गणेश भगवान का वाहन मूषक राज भी साथ में ही रहता है. यह सब एक दूसरे के विरोधी होते हुए भी एक दूसरे के साथ प्रेम से रहते हैं. ऐसी महिमा भगवान भोलेनाथ की ही है, जीवन में कितना भी विरोधाभास क्यों ना हो भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद से व्यक्ति विरोधाभास में भी प्रेम पूर्वक अपने जीवन का निर्वहन करता है.

ऐसे हुई प्रदोष व्रत की शुरुआत: आचार्य मनोज कुमार मिश्रा ने कहा कि प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है जिस तरह से लोग एकादशी व्रत विष्णु भगवान के लिए करते हैं ठीक उसी प्रकार प्रदोष व्रत भगवान शिव के लिए किया जाता है. जब समुंद्र मंथन के दौरान विष निकला तो महादेव ने सृष्टि कोन बचाने के लिए विषपान किया था. विष पीते ही महादेव का कंठ और शरीर नीला पड़ गया. उन्हें असहनीय जलन होने लगी. उस समय देवताओं ने जल बेलपत्र आदि से महादेव की जलन को कम किया. विष पीकर महादेव ने संसार की रक्षा की. ऐसे में पूरा विश्व भगवान का ऋणी हो गया. उस समय देवताओं ने महादेव की स्तुति की, जिससे महादेव बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने तांडव किया. इस घटना के वक्त त्रयोदशी तिथि और प्रदोष काल था. उस समय से महादेव को ये तिथि और प्रदोष काल सबसे प्रिय हो गया. इसके साथ ही महादेव को प्रसन्न करने को लेकर भक्तों ने त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में पूजन की परंपरा शुरू कर दी और इस व्रत को प्रदोष व्रत का नाम दिया जाने लगा.

पढ़ें- प्रदोष व्रत से दूर होगा कुंडली में मंगल दोष, आज शाम को करें भोलेनाथ की पूजा

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पटना: हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह के शुक्ल व कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जाता है. प्रदोष व्रत भगवान शंकर को समर्पित माना गया है. चैत्र मास के शुक्ल पत्र की त्रयोदशी इस साल 14 अप्रैल 2022, गुरुवार को पड़ रही है. इस दिन गुरुवार होने के कारण इसे गुरु प्रदोष के नाम से जाना जाएगा. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शंकर व माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा ( Guru Pradosh Vrat puja vidhi ) की जाती है. शिव भक्तों के लिए यह दिन खास होता है. इस दिन भक्त उपवास भी रखते हैं.

पढ़ें- भौम प्रदोष व्रत कल, शिव-पार्वती की अराधना से मिलेगी कर्ज से मुक्ति

गुरु प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त: प्रदोष-व्रत चन्द्रमौलेश्वर भगवान शिव की प्रसन्नता व आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए किया जाता है. भगवान शिव को आशुतोष भी कहा गया है. आचार्य मनोज कुमार मिश्रा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में प्रदोष व्रत के बारे में विस्तृत जानकारी दी है. उन्होंने कहा कि प्रदोष व्रत गुरुवार को है इसलिए इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जाता है. शाम 7:35 बजे से लेकर 8:50 बजे तक पूजा का शुभ मुहूर्त ( Guru Pradosh Vrat subh muhurat ) है. इस काल में जो लोग भी भगवान शिव की आराधना करेंगे, पूजा-अर्चना करेंगे, उनकी हर मनोकामना पूर्ण होगी.

प्रदोष व्रत पूजन विधि: प्रदोष व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि कर लें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें और व्रत का संकल्प लें. भोलेनाथ को गंगाजल से अभिषेक कर पुष्प अर्पित करें. भगवान शिव के साथ माता पार्वती और गणेश जी का भी पूजन करें. भगवान भोलेनाथ की प्रिय वस्तुएं उन्हें अर्पित करें और आरती अवश्य करें. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का अभिषेक करने के साथ ही बेलपत्र भी अर्पित करें. इसके बाद भगवान शिव के मंत्रों का जप करें. जाप के बाद प्रदोष व्रत कथा सुनें. अंत में आरती करें और पूरे परिवार में प्रसाद बांटे. ध्यान रखें प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में ही की जाती है. सूर्यास्त से 45 मिनट पूर्व और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक का समय प्रदोष काल माना जाता है.

गुरू प्रदोष व्रत का महत्व: धार्मिक मान्यताओं (Guru Pradosh Vrat importance) के अनुसार, इस दिन व्रत करने वाले भक्तों को संतान की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है. सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान शिव के मंत्रों का जाप करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है.

ऐसे करें भोले को प्रसन्न: प्रदोष-व्रत प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को होता है.सभी पंचागों में प्रदोष-व्रत की तिथि का विशेष उल्लेख दिया गया होता है. दिन के अनुसार प्रदोष-व्रत के महत्त्व में और भी अधिक वृद्धि हो जाती है. जैसे सोमवार दिन होने वाला प्रदोष-व्रत सोम प्रदोष, मंगलवार के दिन होने वाला प्रदोष-व्रत भौम-प्रदोष और गुरुवार के दिन होने वाला प्रदोष व्रत गुरु प्रदोष के नाम से जाना जाता है. इन दिनों में आने वाला प्रदोष विशेष लाभदायी होता है. प्रदोष वाले दिन प्रात:काल स्नान करने के पश्चात भगवान शिव का पूजन करनी चाहिए. दिन में केवल फलाहार ग्रहण कर प्रदोषकाल में भगवान शिव का अभिषेक पूजन कर व्रत का पारण करना चाहिए.

प्रदोष व्रत का ज्योतिष महत्त्व: भगवान भोलेनाथ नवग्रहों के राजा हैं. भगवान भोलेनाथ के ही आशीर्वाद से विरोधी तत्व भी एक होकर आपको जीवन में शुभता देते हैं जैसे शिव परिवार में भगवान भोलेनाथ की साली माता गंगा जी हैं, उन्हें वह अपने सिर पर धारण करते हैं और माता पार्वती के साथ विराजमान होते हैं. भगवान भोलेनाथ के गले में सर्पराज विराजमान हैं और उनके पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर साथ में ही रहता है और गणेश भगवान का वाहन मूषक राज भी साथ में ही रहता है. यह सब एक दूसरे के विरोधी होते हुए भी एक दूसरे के साथ प्रेम से रहते हैं. ऐसी महिमा भगवान भोलेनाथ की ही है, जीवन में कितना भी विरोधाभास क्यों ना हो भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद से व्यक्ति विरोधाभास में भी प्रेम पूर्वक अपने जीवन का निर्वहन करता है.

ऐसे हुई प्रदोष व्रत की शुरुआत: आचार्य मनोज कुमार मिश्रा ने कहा कि प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है जिस तरह से लोग एकादशी व्रत विष्णु भगवान के लिए करते हैं ठीक उसी प्रकार प्रदोष व्रत भगवान शिव के लिए किया जाता है. जब समुंद्र मंथन के दौरान विष निकला तो महादेव ने सृष्टि कोन बचाने के लिए विषपान किया था. विष पीते ही महादेव का कंठ और शरीर नीला पड़ गया. उन्हें असहनीय जलन होने लगी. उस समय देवताओं ने जल बेलपत्र आदि से महादेव की जलन को कम किया. विष पीकर महादेव ने संसार की रक्षा की. ऐसे में पूरा विश्व भगवान का ऋणी हो गया. उस समय देवताओं ने महादेव की स्तुति की, जिससे महादेव बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने तांडव किया. इस घटना के वक्त त्रयोदशी तिथि और प्रदोष काल था. उस समय से महादेव को ये तिथि और प्रदोष काल सबसे प्रिय हो गया. इसके साथ ही महादेव को प्रसन्न करने को लेकर भक्तों ने त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में पूजन की परंपरा शुरू कर दी और इस व्रत को प्रदोष व्रत का नाम दिया जाने लगा.

पढ़ें- प्रदोष व्रत से दूर होगा कुंडली में मंगल दोष, आज शाम को करें भोलेनाथ की पूजा

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Last Updated : Apr 13, 2022, 10:51 PM IST
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