पटनाः केंद्र सरकार ने किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करने का लक्ष्य रखा है. राज्य सरकारें भी किसानों की बेहतरी के लिए प्रतिबद्ध हैं. लेकिन विडंबना यह है कि किसानों को ना तो न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल पाता है और ना ही उनके अनाज की खरीद हो पाती है. किसान औने-पौने दाम पर फसल बेचने को मजबूर होते हैं.
नहीं मिल रहे न्यूनतम समर्थन मूल्य
राज्य सरकार हर साल किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है. खासतौर पर धान क्रय के लिए लक्ष्य भी निर्धारित किए जाते हैं. लालफीताशाही के चलते धान क्रय के लक्ष्य को कभी भी पूरा नहीं किया जा सका है. साल 2017 में सरकार ने धान क्रय के लिए कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किए थे. किसान जितना चाहे धान बेच सकता था. लेकिन सरकार ने साल 2018 में 30 लाख मैट्रिक टन धान क्रय का लक्ष्य रखा और 2019 के लिए भी लक्ष्य वही रखा गया.
धान क्रय की रफ्तार बेहद धीमी
30 लाख मैट्रिक टन धान क्रय का लक्ष्य है, लेकिन सहकारिता विभाग अब तक दो लाख मैट्रिक टन धान ही खरीद सकी है. सरकार का मानना है कि किसानों से हम अधिक से अधिक धान क्रय करना चाहते हैं. लक्ष्य सांकेतिक होता है, पिछले कुछ वर्षों में धान क्रय लक्ष्य से कोसों दूर रहा है. इस साल भी ऐसा नहीं लगता कि 30 लाख मैट्रिक टन का लक्ष्य पूरा हो पाएगा. इस संबंध में बिहार सरकार के सहकारिता मंत्री राणा रणधीर सिंह का कहना है कि सरकार किसानों की आय को 2022 तक दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध है, इसके लिए कोशिशें भी जारी हैं.
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बिचौलियों को धान बेचने पर मजबूर किसान
वहीं, विपक्ष सरकार के इस रवैय्ये पर सवाल खड़े कर रहा है. हम प्रवक्ता विजय यादव ने कहा है कि बिहार में किसानों की स्थिति बहुत बुरी है. किसान 800 से 1200 रुपये के बीच धान बिचौलियों को बेचने के लिए मजबूर हैं और आत्महत्या कर रहे हैं.