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जिस बिहार रेजिमेंट के जांबाजों ने चीनी सैनिकों के दांत खट्टे किए, जानिए उसका पूरा गौरवशाली इतिहास

चीन के कायरता पूर्ण कार्रवाई के कारण हमने अपने चार वीर सपूत खोए हैं. अपने बेटों की सहादत पर बिहार रोया है. लेकिन उनकी वीरता पर खुद को गौरवान्वित भी मान रहा है. देश के पूर्व सैनिक भी इस घटना से आहत हैं. उन्होंने कहा कि चीन से बदला लेना जरूरी है.

soldiers martyred
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Published : Jun 19, 2020, 9:37 PM IST

पटना: पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीन की सेना के साथ झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए. पूरे देश में इस घटना को लेकर आक्रोश देखा जा रहा है. वहीं, पूर्व सैनिक का मानना है कि बोर्डर पर चीन ने चालबाजी किया है, जो गलत है. एक नजर डालते हैं बिहार के रेजिमेंट के योद्धाओं की वीर गाथा पर.

पूर्व सैनिक अरुण फौजी का कहना है कि भारत पूरी तरह से ऐसे देशों से निपटने में सक्षम है. उन्होंने कहा कि 1962 का भारत अब नहीं है. हमारे पास विकसित टेक्नोलॉजी है. वहीं, भारतीय पूर्व सैनिक संघ के उपाध्यक्ष एसडी शर्मा भी इस घटना से आहत हैं. उन्होंने कहा कि चीन से बदला लेना जरूरी है.

अरुण फौजी, पूर्व सैनिक
अरुण फौजी, पूर्व सैनिक

देश के लिए जान देना हमारी पहचान
‘बजरंग बली की जय’ यह उदघोष बिहार के रग-रग में वीरता के उस रंग के साथ भरा है, जो मेरा बिहार देश की आन बान शान के लिए हंसते-हंसते जान दे देना हमारी पहचान है. अपनी जिंदादिली से दुश्मन के दिल डर और खौफ भर देना हमारे दमखम का परचम.

चीन के कायरता पूर्ण कार्रवाई के कारण हमने अपने चार वीर सपूत खोए हैं. अपने बेटों की सहादत पर बिहार रोया है. लेकिन उनकी वीरता पर खुद को गौरवान्वित भी मान रहा है. बिहार के लोगोंं ने हमेशा अपनी जान देकर देश के मान पर विजय तिलक का टीका लगाया है.

पूर्व सैनिक
एसडी शर्मा, पूर्व सैनिक

लद्दाख में कर्नल संतोष बाबू और बिहार के जवानों के शहीद होने की खबर मिलते ही दानापुर छावनी में सन्नाटा पसर गया. दानापुर छावनी में पदस्थापित सेना के अधिकारी और जवानों की आंखों में अपने वीर साथियों को खो देने का गम तो था, पर उससे ज्यादा कहीं उनकी शाहदत पर गर्व था. हर कोई एक दूसरे को देखते हुए मानो यह कहा रहा था कि बिहार रेजिमेंट के वीर कभी अपने जान की परवाह नहीं करते. देश पर कुर्बान हो जाना. बिहार रेजिमेंट के जवानों की रग-रग में होता है. बिहार रेजिमेंट अपने दमखम से इतिहास पन्नों मेंं इतने अघ्याय जोडे हैं.

1758 में शुरू हुयी थी बिहार रेजिमेंट के योद्धाओं की वीर गाथा
2 मार्च 1949 को बिहार रेजिमेंट सेंटर और प्रशिक्षण केंद्र को दानापुर मे स्थानांतरित आदेश के तहत किया गया. लेकिन बिहार रेजिमेंट के योद्धाओं की वीरगाथा पहले ही शुरू हुई थी. 15 सितम्बर 1941 को 11 वीं और 19 वीं हैदराबाद रेजिमेंट को मिला कर जमशेदपुर में बिहार रेजिमेंट की पहली बटालियन बनी. बटालियन के युद्ध का नारा ‘बजरंग बली की जय’ आज भी रेजिमेंट की शान का प्रतीक है. आगरा में 1 दिसम्बर 1942 को बिहार रेजिमेंट की दूसरी बटालियन स्थापित की गई. 1945 मे आगरा में बिहार रेजिमेंट सेंटर स्थापित किया गया. अप्रैल 1758 में तीसरी बटालियन की पटना में हुई स्थापना के बाद से ही बिहार के जवानों ने अपनी वीरता की कहानी लिखनी शुरू कर दी थी.

कैप्टन टर्नर इस बटालियन की कमान संभालने वाले पहले अधिकारी थे. अंग्रेजों के कब्जे के बाद जून 1763 में मीर कासिम ने पटना पर हमला बोला. बिहारी रेजिमेंट की तीसरी बटालियन के चंद सैनिकों ने वीरता और साहस का परिचय देते हुए मीर कासिम की विशाल सेना को पीछे धकेल दिया. लेकिम अंग्रेजी सेना द्वारा कोई मदद नहीं मिलने के चलते मीर कासिम की सेना विजयी रही. अंग्रेजों की तीन बटालियन समाप्त हो गई. बंगाल, बिहार और ओड़िसा पर पुनः राज्य स्थापित करने के लिए बिहारी सैनिकों को लेकर अंग्रेजों ने 6वीं, 8वीं और 9वीं बटालियन की स्थापना की.

देखें रिपोर्ट

कई लड़ाइयों में मनवाया लोहा
1857 के स्वतंत्रता संग्राम से पहले बिहार बिहार रेजिमेंट की सेनाओं ने कई लड़ाइयों में अपनी वीरता का लोहा मनवाया. जुलाई 1857 में दानापुर स्थित 7वीं और 8वीं रेजिमेंट के सैनिकों ने विद्रोह का बिगुल फूंकते हुए अंग्रेजों पर गोलियां चलाई. हथियार और ध्वज लेकर सैनिक जगदीशपुर चले आये और बाबु कुंवर सिंह के साथ शामिल हो गए. इन सैनिकों के साथ मिल कर बाबु कुंवर सिंह ने आरा पर आक्रमण कर दिया. अंग्रेजों की सेना को शिकस्त दे आरा पर कब्जा कर लिया. इस हार से अंग्रेजी हुकूमत में खलबली मच गई. हालांकि युद्ध के दौरान लगी गोलियों के घाव से बाबु कुंवर सिंह की मृत्यु हो गयी.

युद्धों में बिहार रेजिमेंट की रही है अहम भूमिका
बिहार रेजिमेंट की विभिन्न बटलियानों ने कई युद्धों में हिस्सा लिया. 1944 में जापानी सेना के भारत के पूर्वी तट पर आक्रमण का सामना करने के लिए 1 बिहार को लुशाई ब्रिगेड में शामिल कर इम्फाल भेजा गया. सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए हाका और गैंगा पहाड़ियो को जापानी सैनिकों के कब्जे से मुक्त कराया. जिसकी याद मे दानापुर स्थित बिहार रेजिमेंट सेंटर मे हाका और गैंगा द्वारा बनाए गए थे.

स्वतंत्रता के बाद हुये उपद्रव को रोकने में भी बिहार रेजिमेंट के सैनिकों ने सराहनीय भूमिका निभाई. 1965 और 1971 के भारत पाक युद्ध में भी रेजीमेंट के सैनिकों ने वीरता दिखाई. 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान बिहार रेजीमेंट की पहली बटालियन ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए बाटलीक सेक्टर में दुश्मनों के कब्जे से मुक्त कराया. साथ ही पॉइंट 4268 और जुबेर ओपी पर भी पुन कब्जा जमाया. युद्ध के दौरान प्रथम बिहार के एक अधिकारी और आठ जवान शहीद हो गए. प्रथम बिहार को बैटल ऑनर बाटलीक और थिएटर ऑनर कारगिल का सम्मान दिया गया.

बिहार रेजिमेंट को मिले पदक

मिलिट्री क्रॉस (स्वतंत्रता पूर्व)-6

अशोक चक्र-3

महावीर चक्र-2

कीर्ति चक्र–13

वीर चक्र–15

शौर्य चक्र–45

गंगा का किनारा, मिलल्ते मोहब्बत का सहारा
बिहार रेजिमेंट सेंटर अपने स्थापना काल से आज तक देश के लिए मिशल बना है. दानापुर छावनी में ट्रेनिंग सेंटर और वहां आने वाले नए रिक्यूरूट गंगा के किनारे से उस विशाल हृदय के साथ देश की सेवा में जाते हैं, जो बिहार की मूल आत्मा हैं. लोकतंत्र को पैदा करने वाली इस मिट्टी से देश की सेवा का जज्बा लेकर जाने वाले लोग अपने वीरता के पराक्रम से लोहा मनवाते रहे हैं.

पटना: पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीन की सेना के साथ झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए. पूरे देश में इस घटना को लेकर आक्रोश देखा जा रहा है. वहीं, पूर्व सैनिक का मानना है कि बोर्डर पर चीन ने चालबाजी किया है, जो गलत है. एक नजर डालते हैं बिहार के रेजिमेंट के योद्धाओं की वीर गाथा पर.

पूर्व सैनिक अरुण फौजी का कहना है कि भारत पूरी तरह से ऐसे देशों से निपटने में सक्षम है. उन्होंने कहा कि 1962 का भारत अब नहीं है. हमारे पास विकसित टेक्नोलॉजी है. वहीं, भारतीय पूर्व सैनिक संघ के उपाध्यक्ष एसडी शर्मा भी इस घटना से आहत हैं. उन्होंने कहा कि चीन से बदला लेना जरूरी है.

अरुण फौजी, पूर्व सैनिक
अरुण फौजी, पूर्व सैनिक

देश के लिए जान देना हमारी पहचान
‘बजरंग बली की जय’ यह उदघोष बिहार के रग-रग में वीरता के उस रंग के साथ भरा है, जो मेरा बिहार देश की आन बान शान के लिए हंसते-हंसते जान दे देना हमारी पहचान है. अपनी जिंदादिली से दुश्मन के दिल डर और खौफ भर देना हमारे दमखम का परचम.

चीन के कायरता पूर्ण कार्रवाई के कारण हमने अपने चार वीर सपूत खोए हैं. अपने बेटों की सहादत पर बिहार रोया है. लेकिन उनकी वीरता पर खुद को गौरवान्वित भी मान रहा है. बिहार के लोगोंं ने हमेशा अपनी जान देकर देश के मान पर विजय तिलक का टीका लगाया है.

पूर्व सैनिक
एसडी शर्मा, पूर्व सैनिक

लद्दाख में कर्नल संतोष बाबू और बिहार के जवानों के शहीद होने की खबर मिलते ही दानापुर छावनी में सन्नाटा पसर गया. दानापुर छावनी में पदस्थापित सेना के अधिकारी और जवानों की आंखों में अपने वीर साथियों को खो देने का गम तो था, पर उससे ज्यादा कहीं उनकी शाहदत पर गर्व था. हर कोई एक दूसरे को देखते हुए मानो यह कहा रहा था कि बिहार रेजिमेंट के वीर कभी अपने जान की परवाह नहीं करते. देश पर कुर्बान हो जाना. बिहार रेजिमेंट के जवानों की रग-रग में होता है. बिहार रेजिमेंट अपने दमखम से इतिहास पन्नों मेंं इतने अघ्याय जोडे हैं.

1758 में शुरू हुयी थी बिहार रेजिमेंट के योद्धाओं की वीर गाथा
2 मार्च 1949 को बिहार रेजिमेंट सेंटर और प्रशिक्षण केंद्र को दानापुर मे स्थानांतरित आदेश के तहत किया गया. लेकिन बिहार रेजिमेंट के योद्धाओं की वीरगाथा पहले ही शुरू हुई थी. 15 सितम्बर 1941 को 11 वीं और 19 वीं हैदराबाद रेजिमेंट को मिला कर जमशेदपुर में बिहार रेजिमेंट की पहली बटालियन बनी. बटालियन के युद्ध का नारा ‘बजरंग बली की जय’ आज भी रेजिमेंट की शान का प्रतीक है. आगरा में 1 दिसम्बर 1942 को बिहार रेजिमेंट की दूसरी बटालियन स्थापित की गई. 1945 मे आगरा में बिहार रेजिमेंट सेंटर स्थापित किया गया. अप्रैल 1758 में तीसरी बटालियन की पटना में हुई स्थापना के बाद से ही बिहार के जवानों ने अपनी वीरता की कहानी लिखनी शुरू कर दी थी.

कैप्टन टर्नर इस बटालियन की कमान संभालने वाले पहले अधिकारी थे. अंग्रेजों के कब्जे के बाद जून 1763 में मीर कासिम ने पटना पर हमला बोला. बिहारी रेजिमेंट की तीसरी बटालियन के चंद सैनिकों ने वीरता और साहस का परिचय देते हुए मीर कासिम की विशाल सेना को पीछे धकेल दिया. लेकिम अंग्रेजी सेना द्वारा कोई मदद नहीं मिलने के चलते मीर कासिम की सेना विजयी रही. अंग्रेजों की तीन बटालियन समाप्त हो गई. बंगाल, बिहार और ओड़िसा पर पुनः राज्य स्थापित करने के लिए बिहारी सैनिकों को लेकर अंग्रेजों ने 6वीं, 8वीं और 9वीं बटालियन की स्थापना की.

देखें रिपोर्ट

कई लड़ाइयों में मनवाया लोहा
1857 के स्वतंत्रता संग्राम से पहले बिहार बिहार रेजिमेंट की सेनाओं ने कई लड़ाइयों में अपनी वीरता का लोहा मनवाया. जुलाई 1857 में दानापुर स्थित 7वीं और 8वीं रेजिमेंट के सैनिकों ने विद्रोह का बिगुल फूंकते हुए अंग्रेजों पर गोलियां चलाई. हथियार और ध्वज लेकर सैनिक जगदीशपुर चले आये और बाबु कुंवर सिंह के साथ शामिल हो गए. इन सैनिकों के साथ मिल कर बाबु कुंवर सिंह ने आरा पर आक्रमण कर दिया. अंग्रेजों की सेना को शिकस्त दे आरा पर कब्जा कर लिया. इस हार से अंग्रेजी हुकूमत में खलबली मच गई. हालांकि युद्ध के दौरान लगी गोलियों के घाव से बाबु कुंवर सिंह की मृत्यु हो गयी.

युद्धों में बिहार रेजिमेंट की रही है अहम भूमिका
बिहार रेजिमेंट की विभिन्न बटलियानों ने कई युद्धों में हिस्सा लिया. 1944 में जापानी सेना के भारत के पूर्वी तट पर आक्रमण का सामना करने के लिए 1 बिहार को लुशाई ब्रिगेड में शामिल कर इम्फाल भेजा गया. सैनिकों ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए हाका और गैंगा पहाड़ियो को जापानी सैनिकों के कब्जे से मुक्त कराया. जिसकी याद मे दानापुर स्थित बिहार रेजिमेंट सेंटर मे हाका और गैंगा द्वारा बनाए गए थे.

स्वतंत्रता के बाद हुये उपद्रव को रोकने में भी बिहार रेजिमेंट के सैनिकों ने सराहनीय भूमिका निभाई. 1965 और 1971 के भारत पाक युद्ध में भी रेजीमेंट के सैनिकों ने वीरता दिखाई. 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान बिहार रेजीमेंट की पहली बटालियन ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय देते हुए बाटलीक सेक्टर में दुश्मनों के कब्जे से मुक्त कराया. साथ ही पॉइंट 4268 और जुबेर ओपी पर भी पुन कब्जा जमाया. युद्ध के दौरान प्रथम बिहार के एक अधिकारी और आठ जवान शहीद हो गए. प्रथम बिहार को बैटल ऑनर बाटलीक और थिएटर ऑनर कारगिल का सम्मान दिया गया.

बिहार रेजिमेंट को मिले पदक

मिलिट्री क्रॉस (स्वतंत्रता पूर्व)-6

अशोक चक्र-3

महावीर चक्र-2

कीर्ति चक्र–13

वीर चक्र–15

शौर्य चक्र–45

गंगा का किनारा, मिलल्ते मोहब्बत का सहारा
बिहार रेजिमेंट सेंटर अपने स्थापना काल से आज तक देश के लिए मिशल बना है. दानापुर छावनी में ट्रेनिंग सेंटर और वहां आने वाले नए रिक्यूरूट गंगा के किनारे से उस विशाल हृदय के साथ देश की सेवा में जाते हैं, जो बिहार की मूल आत्मा हैं. लोकतंत्र को पैदा करने वाली इस मिट्टी से देश की सेवा का जज्बा लेकर जाने वाले लोग अपने वीरता के पराक्रम से लोहा मनवाते रहे हैं.

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