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फंड मिलने के बाद भी पटना IGIMS में नहीं शुरू हुई जिनोम सीक्वेंसिंग, जानें वजह

Genome Sequencing Not Start In bihar : सरकार की तरफ कोरोना के नये वैरिएंट ओमीक्रॉन की पहचान में की जाने वाली जिनोम सिक्वेंसिंग के लिए पटना IGIMS को फंड उपलब्ध करा दी गई है. बावजूद अभी तक जिनोम सीक्वेंसिंग की सुविधा शुरू नहीं हो पायी है. जानिए क्या है पूरा मामला...

फंड मिलने के बाद भी पटना IGIMS में नहीं शुरू हुई जिनोम सीक्वेंसिंग
फंड मिलने के बाद भी पटना IGIMS में नहीं शुरू हुई जिनोम सीक्वेंसिंग
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Published : Dec 11, 2021, 10:23 PM IST

पटना : कोरोना के नए वैरिएंट ओमीक्रॉन की (Corona New Variant Omicron ) पहचान में की जाने वाली जिनोम सिक्वेंसिंग नहीं हो पा रही है. दरअसल बीते दिनों स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने निर्देश दिया था कि प्रदेश में फॉरेन ट्रैवल हिस्ट्री वाले जो भी संक्रमित मिलेंगे उनका सैंपल जिनोम सीक्वेंसिंग के लिए पटना आईजीआईएमएस (Genome Sequencing In IGIMS ) भेजा जाएगा. बीते 10 दिनों में प्रदेश में फॉरेन ट्रैवल हिस्ट्री वाले लगभग 10 लोगों की पॉजिटिव रिपोर्ट सामने आई है. लेकिन इनका सैंपल जिनोम सीक्वेंसिंग के लिए आईआईएमएस के बजाय उड़ीसा के भुनेश्वर के लैब में भेजा गया है.

इसे भी पढ़ें : अब बिहार में होगा जीनोम सीक्वेंसिंग टेस्ट, सरकार ने दिया IGIMS जीनोमिक्स लैब को फंड

बताते चलें कि आईजीआईएमएस में जिनोम सीक्वेंसिंग के लिए माइक्रोबायोलॉजी विभाग में नेक्स्ट जेनरेशन एडवांस मशीन है. जिनोम सीक्वेंसिंग के एक साइकिल रन में करीब 15 लाख का खर्च आता है. आईजीआईएमएस के पास अभी फंड का अभाव था ऐसे में आईजीआईएमएस प्रबंधन द्वारा सरकार से फंड की मांग को लेकर अनुरोध किया गया था जिसके बाद सरकार ने हाल ही में आईजीआईएमएस को फंड मुहैया कराया है. सरकार की तरफ से आईजीआईएमएस को जिनोम सीक्वेंसिंग के दो साइकिल रन के लिए ₹30 लाख एलॉट किए गए हैं.

देखें वीडियो

आईएमएस के माइक्रोबायोलॉजी की विभागाध्यक्ष डॉ. नम्रता कुमारी ने जानकारी दी कि जिनोम सीक्वेंसिंग के एक साइकिल रन में करीब 15 लाख रुपए की लागत आती है. एक बार में अधिकतम 96 सैंपल की जिनोम सीक्वेंसिंग जांच की जा सकती है. उन्होंने बताया कि 96 सैंपल स्टोर करने का कॉर्टेज होता है. मशीन में एक सैंपल की जिनोम सीक्वेंसिंग की जाए या 96 सैंपल की जिनोम सीक्वेंसिंग की जाए लागत इतनी ही रहती है.

'प्रदेश में अभी पॉजिटिव मामले कम मिल रहे हैं. खासकर फॉरेन ट्रैवल हिस्ट्री वाले पॉजिटिव मरीज काफी कम मिल रहे हैं. ऐसे में दो या तीन सैंपल के लिए जिनोम सीक्वेंसिंग की मशीन को रन कराना आर्थिक दृष्टिकोण से न्यायोचित नहीं है. ऐसे में अभी के समय अगर 1-2 सैंपल का सीक्वेंसिंग कराना रह रहा है तो पुणे के या भुनेश्वर के वायरोलॉजी लैब में भेज दिया जा रहा है. जहां जिनोम सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया के लिए कॉर्टेज में सैंपल का जगह खाली रह रहा है.' :- डॉ. नम्रता कुमारी, माइक्रोबायोलॉजी की विभागाध्यक्ष


डॉ. नम्रता कुमारी ने बताया कि मीडिया में बेवजह अभी के समय हर पॉजिटिव मामले के लिए जिनोम सीक्वेंसिंग करने की बात कह कर तूल दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जिनोम सीक्वेंसिंग के लिए जरूरी होता है कि कम सिटी वैल्यू का सैंपल मिले. उन्होंने बताया कि अभी जो भी पॉजिटिव मामले आ रहे हैं. वह माइल्ड और मॉडरेट मरीज की मिल रहे हैं. उनकी RT-PCR जांच में प्रीति वैल्यू काउंट अधिक रह रही है. उन्होंने कहा कि जिनोम सीक्वेंसिंग कर वायरस के नेचर के बारे में अच्छी तरह से तब पता लगाया जा सकता है. जब सैंपल के आरटी पीसीआर जांच में सिटी वैल्यू काउंट कम हो. सामान्य तौर पर अगर सैंपल का सिटी वैल्यू काउंटर 16 या 16 से कम रहता है तो उस सैंपल का जिनोम सीक्वेंसिंग कर म्यूटेशन के बारे में अच्छी तरह से पता लगाया जा सकता है.

यह भी पढ़ें- आजकल 'जीनोम सीक्वेंसिंग' की खूब चर्चा हो रही है, ये क्या होता है आप जानते हैं, पढ़ें...

डॉ. नम्रता कुमारी ने कहा कि अगर प्रदेश में पॉजिटिव मरीजों की संख्या बढ़ती है. खासकर गंभीर मरीजों की संख्या बढ़ती है तो ऐसे कंडीशन में 20-25 सैंपल कलेक्ट होने पर भी जिनोम सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया लैब में शुरू कर दी जाएगी. उन्होंने साफ कहा कि अभी के समय सभी पॉजिटिव केस के लिए सैंपल का जिनोम सीक्वेंसिंग कराना सही नहीं है, क्योंकि सीटी वैल्यू अधिक रहेगा तो कोई रिजल्ट ही नहीं आएगा और सिर्फ पैसे की बर्बादी ही होगी.

बता दें कि जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए आईजीआईएमएस में लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व माइसेक इल्यूमिना कंपनी की मशीन इंस्टॉल हुई थी. यह मशीन नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग का एडवांस्ड प्लेटफॉर्म है. सीक्वेंसिंग का मतलब होता है, वायरस या बैक्टीरिया का जो भी जेनेटिक मैटेरियल है उसके पूरे सीक्वेंस को रीड करना. जहां तक मशीन के काम करने के प्रोसेस की बात है तो, जीनोम सीक्वेंसिंग के प्रोसेस को 3 स्टेप में डिवाइड किया जाता है. पहला स्टेप होता है लाइब्रेरी प्रिपरेशन. यानी कि इस प्रोसेस में पॉजिटिव सैंपल को कई छोटे-छोटे पीसेस में अलग किया जाता है. जहां सीक्वेंसिंग होती है वहां नैनो चिप लगा होता है और उससे वह बाइंड करता है. क्योंकि वायरस का जीनोम बड़ा होता है और यह 30 KB का होता है. इतनी बड़ी क्षमता का जीनोम मशीन एक बार में रीड नहीं कर सकता.

ये भी पढ़ें- बिहार में ओमीक्रॉन की आहट! विदेश से आये 3 लोगों में कोरोना की पुष्टि, OMICRON जांच रिपोर्ट का इंतजार

दूसरा स्टेप होता है एनजीएस रन, इस प्रक्रिया में एक कॉर्टेज 96 सैंपल की क्षमतावाली होती है. इसमें सैंपल लोड किए जाते हैं और इसके बाद मशीन के बाई तरफ जहां नैनो चिप लगा होता है वहीं, पर सीक्वेंसिंग रिएक्शन होता है. इसके बाद बड़ी मात्रा में डाटा प्रोड्यूस होता है. डाटा काफी बड़ी साइज में होता है और गीगाबाइट की साइज में होता है. ऐसे में इस डाटा के स्टोरेज के लिए पास में ही एक बड़ा सर्वर लगा हुआ रहता है. आईजीआईएमएस की लैब में 13 टेराबाइट का सर्वर लगा हुआ है और यह काफी बड़ा है. यहां डाटा स्टोर होता है.

ये भी पढ़ें- ऐसे तो जीत जाएगा ओमीक्रॉन वैरिएंट! विदेशों से आए लोगों की कोरोना जांच में सुस्ती बढ़ा सकती है खतरा

जीनोम सीक्वेंसिंग का आखिरी स्टेप एनालिसिस होता है. इस प्रक्रिया में जीनोम सीक्वेंसिंग के प्रोसेस के दौरान जो डाटा निकलता है उसे अन्य डाटा से कंपेयर किया जाता है. जैसे कि वायरस के जीनोम में सबसे पुराने वेरिएंट जोकि बुहान वायरस है, उससे कहां-कहां म्यूटेशन है और अन्य वेरिएंट से कहां अलग हो जाता है और कितना अलग है.

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पटना : कोरोना के नए वैरिएंट ओमीक्रॉन की (Corona New Variant Omicron ) पहचान में की जाने वाली जिनोम सिक्वेंसिंग नहीं हो पा रही है. दरअसल बीते दिनों स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने निर्देश दिया था कि प्रदेश में फॉरेन ट्रैवल हिस्ट्री वाले जो भी संक्रमित मिलेंगे उनका सैंपल जिनोम सीक्वेंसिंग के लिए पटना आईजीआईएमएस (Genome Sequencing In IGIMS ) भेजा जाएगा. बीते 10 दिनों में प्रदेश में फॉरेन ट्रैवल हिस्ट्री वाले लगभग 10 लोगों की पॉजिटिव रिपोर्ट सामने आई है. लेकिन इनका सैंपल जिनोम सीक्वेंसिंग के लिए आईआईएमएस के बजाय उड़ीसा के भुनेश्वर के लैब में भेजा गया है.

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बताते चलें कि आईजीआईएमएस में जिनोम सीक्वेंसिंग के लिए माइक्रोबायोलॉजी विभाग में नेक्स्ट जेनरेशन एडवांस मशीन है. जिनोम सीक्वेंसिंग के एक साइकिल रन में करीब 15 लाख का खर्च आता है. आईजीआईएमएस के पास अभी फंड का अभाव था ऐसे में आईजीआईएमएस प्रबंधन द्वारा सरकार से फंड की मांग को लेकर अनुरोध किया गया था जिसके बाद सरकार ने हाल ही में आईजीआईएमएस को फंड मुहैया कराया है. सरकार की तरफ से आईजीआईएमएस को जिनोम सीक्वेंसिंग के दो साइकिल रन के लिए ₹30 लाख एलॉट किए गए हैं.

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आईएमएस के माइक्रोबायोलॉजी की विभागाध्यक्ष डॉ. नम्रता कुमारी ने जानकारी दी कि जिनोम सीक्वेंसिंग के एक साइकिल रन में करीब 15 लाख रुपए की लागत आती है. एक बार में अधिकतम 96 सैंपल की जिनोम सीक्वेंसिंग जांच की जा सकती है. उन्होंने बताया कि 96 सैंपल स्टोर करने का कॉर्टेज होता है. मशीन में एक सैंपल की जिनोम सीक्वेंसिंग की जाए या 96 सैंपल की जिनोम सीक्वेंसिंग की जाए लागत इतनी ही रहती है.

'प्रदेश में अभी पॉजिटिव मामले कम मिल रहे हैं. खासकर फॉरेन ट्रैवल हिस्ट्री वाले पॉजिटिव मरीज काफी कम मिल रहे हैं. ऐसे में दो या तीन सैंपल के लिए जिनोम सीक्वेंसिंग की मशीन को रन कराना आर्थिक दृष्टिकोण से न्यायोचित नहीं है. ऐसे में अभी के समय अगर 1-2 सैंपल का सीक्वेंसिंग कराना रह रहा है तो पुणे के या भुनेश्वर के वायरोलॉजी लैब में भेज दिया जा रहा है. जहां जिनोम सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया के लिए कॉर्टेज में सैंपल का जगह खाली रह रहा है.' :- डॉ. नम्रता कुमारी, माइक्रोबायोलॉजी की विभागाध्यक्ष


डॉ. नम्रता कुमारी ने बताया कि मीडिया में बेवजह अभी के समय हर पॉजिटिव मामले के लिए जिनोम सीक्वेंसिंग करने की बात कह कर तूल दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जिनोम सीक्वेंसिंग के लिए जरूरी होता है कि कम सिटी वैल्यू का सैंपल मिले. उन्होंने बताया कि अभी जो भी पॉजिटिव मामले आ रहे हैं. वह माइल्ड और मॉडरेट मरीज की मिल रहे हैं. उनकी RT-PCR जांच में प्रीति वैल्यू काउंट अधिक रह रही है. उन्होंने कहा कि जिनोम सीक्वेंसिंग कर वायरस के नेचर के बारे में अच्छी तरह से तब पता लगाया जा सकता है. जब सैंपल के आरटी पीसीआर जांच में सिटी वैल्यू काउंट कम हो. सामान्य तौर पर अगर सैंपल का सिटी वैल्यू काउंटर 16 या 16 से कम रहता है तो उस सैंपल का जिनोम सीक्वेंसिंग कर म्यूटेशन के बारे में अच्छी तरह से पता लगाया जा सकता है.

यह भी पढ़ें- आजकल 'जीनोम सीक्वेंसिंग' की खूब चर्चा हो रही है, ये क्या होता है आप जानते हैं, पढ़ें...

डॉ. नम्रता कुमारी ने कहा कि अगर प्रदेश में पॉजिटिव मरीजों की संख्या बढ़ती है. खासकर गंभीर मरीजों की संख्या बढ़ती है तो ऐसे कंडीशन में 20-25 सैंपल कलेक्ट होने पर भी जिनोम सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया लैब में शुरू कर दी जाएगी. उन्होंने साफ कहा कि अभी के समय सभी पॉजिटिव केस के लिए सैंपल का जिनोम सीक्वेंसिंग कराना सही नहीं है, क्योंकि सीटी वैल्यू अधिक रहेगा तो कोई रिजल्ट ही नहीं आएगा और सिर्फ पैसे की बर्बादी ही होगी.

बता दें कि जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए आईजीआईएमएस में लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व माइसेक इल्यूमिना कंपनी की मशीन इंस्टॉल हुई थी. यह मशीन नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग का एडवांस्ड प्लेटफॉर्म है. सीक्वेंसिंग का मतलब होता है, वायरस या बैक्टीरिया का जो भी जेनेटिक मैटेरियल है उसके पूरे सीक्वेंस को रीड करना. जहां तक मशीन के काम करने के प्रोसेस की बात है तो, जीनोम सीक्वेंसिंग के प्रोसेस को 3 स्टेप में डिवाइड किया जाता है. पहला स्टेप होता है लाइब्रेरी प्रिपरेशन. यानी कि इस प्रोसेस में पॉजिटिव सैंपल को कई छोटे-छोटे पीसेस में अलग किया जाता है. जहां सीक्वेंसिंग होती है वहां नैनो चिप लगा होता है और उससे वह बाइंड करता है. क्योंकि वायरस का जीनोम बड़ा होता है और यह 30 KB का होता है. इतनी बड़ी क्षमता का जीनोम मशीन एक बार में रीड नहीं कर सकता.

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दूसरा स्टेप होता है एनजीएस रन, इस प्रक्रिया में एक कॉर्टेज 96 सैंपल की क्षमतावाली होती है. इसमें सैंपल लोड किए जाते हैं और इसके बाद मशीन के बाई तरफ जहां नैनो चिप लगा होता है वहीं, पर सीक्वेंसिंग रिएक्शन होता है. इसके बाद बड़ी मात्रा में डाटा प्रोड्यूस होता है. डाटा काफी बड़ी साइज में होता है और गीगाबाइट की साइज में होता है. ऐसे में इस डाटा के स्टोरेज के लिए पास में ही एक बड़ा सर्वर लगा हुआ रहता है. आईजीआईएमएस की लैब में 13 टेराबाइट का सर्वर लगा हुआ है और यह काफी बड़ा है. यहां डाटा स्टोर होता है.

ये भी पढ़ें- ऐसे तो जीत जाएगा ओमीक्रॉन वैरिएंट! विदेशों से आए लोगों की कोरोना जांच में सुस्ती बढ़ा सकती है खतरा

जीनोम सीक्वेंसिंग का आखिरी स्टेप एनालिसिस होता है. इस प्रक्रिया में जीनोम सीक्वेंसिंग के प्रोसेस के दौरान जो डाटा निकलता है उसे अन्य डाटा से कंपेयर किया जाता है. जैसे कि वायरस के जीनोम में सबसे पुराने वेरिएंट जोकि बुहान वायरस है, उससे कहां-कहां म्यूटेशन है और अन्य वेरिएंट से कहां अलग हो जाता है और कितना अलग है.

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