पटना: प्रदेश भर में चुनावी माहौल है. हर तरफ सियासत एवं राजनीति में शह-मात कि बातें चल रही है. इन दिनों स्कूल-कॉलेज या फिर चाय कि दुकान सभी जगह लोग बेबाकी से अपनी बातों को रखकर मजबूत सरकार चुनने में अपनी भुमिका निभा रहे हैं. कहते हैं चाय कि दुकान ही ऐसी जगह होती है. जहां चुनावी मुद्दों पर गूढ़ जानकारी मिलती है. इसी को देखते हुए बुधवार को ईटीवी भारत की टीम ने चाय की दुकान पर पहुंचकर क्षेत्र की समस्याओं को जानने की कोशिश की.
वर्ष 2015 में परिसीमन के बदलाव के अनुसार मसौढी में अब कुल दो प्रखंड है. इसमें 350 मतदान केंद्र और साढ़े तीन लाख की आबादी है. बता दें कि मसौढी विधानसभा क्षेत्र में कई तरह की समस्याएं हैं, जो इस बार चुनावी मुद्दे बनेंगे. वहीं स्थानीय मतदाताओं का विचार है कि जो नेता जनता के हित की बात करेंगे. उन्हें ही वोट मिलेगा.
वोटरों ने बताईं क्षेत्र की समस्याएं
मसौढ़ी अनुमंडल का गठन वर्ष 1981 में हुआ था. इसके बावजूद यहां के निवासियों ने बताया कि आज तक क्षेत्र में कोई भी सरकारी डिग्री कॉलेज या महिला कॉलेज का निर्माण नहीं हो सका है. करोड़ों की लागत से अनुमंडल रेफरल अस्पताल बना लेकिन यहां चिकित्सकों की कमी और इलाज की समुचित व्यवस्था नहीं है. किसानों के पटवन का कोई साधन नहीं है. वहीं सभी सरकारी नलकूप जर्जर हो चुके हैं. आलम ये है कि मसौढी में बस स्टैड, ऑटो स्टैंड और महिला-पुरुष सुलभ शौचालय तक नहीं है.
राजनीतिक रिकॉर्ड
मसौढ़ी विधानसभा क्षेत्र शुरू से ही पिछड़ा क्षेत्र रहा है. वहीं इस क्षेत्र में हमेशा से राजद का झंडा बुलंद रहा है. लेकिन वर्ष 1985 से पूरा एक दशक यहां कांग्रेस का राज रहा. इसके बाद मसौढ़ी महागठबंधन और फिर राजद की सीट बनी. वहीं इस बार देखना है कि मसौढ़ी का किला कौन सी पार्टी भेदती है.