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अगेती धान से बदल रही किसानों की किस्मत, अप्रैल में रोपाई और अगस्त में फसल तैयार

मसौढ़ी में अगेती धान से किसान काफी आशान्वित हैं. इस फसल की कटाई तब होती है जब अगस्त का महीना आता है. अप्रैल में ही बीजों को बोया जाता है और धान की रोपाई की जाती है. खास किस्म का ये धान किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है. पढ़े रिपोर्ट-

गरमा धान
गरमा धान
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Published : Jul 3, 2021, 8:41 PM IST

पटना: राजधानी पटना के धनरुआ में गरमा धान की फसल चार महीने में फसल पक कर तैयार हो जाती है. अप्रैल महीने में आखिरी दिनों में किसान गरमा धान का बीज अपने खेतों में डालते हैं और अगस्त के शुरुआती दिनों में फसल काट ली जाती है. इस फसल से अब किसान अपनी किस्मत बदलने लगे हैं.

यह भी पढ़ें: रोहतासः गरमा धान की खेती से खिल उठे किसानों के चेहरे, कम समय में हो रहा अधिक मुनाफा

अगेती किस्म का धान है 'गरमा'
यह तस्वीर मसौढ़ी के धनरूआ की है. जहां कुछ किसान गरमा धान की फसल की बुआई अप्रैल माह में किये थे और इसकी कटाई अगस्त महीने में होनी है. हालांकि इस फसल को किसान बहुत कम लगाते है क्योंकि इस फसल को लगाना एक चुनौती भरा है.

देखें रिपोर्ट.

रोपाई और कटाई दोनों में आती है मुश्किलें
बुआई और कटाई दोनों के वक्त काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. अप्रैल में बीज की बुआई होती है. उस समय सुखाड़ का वक्त होता है, जिसमें पटवन की चिंता होती है. वहीं, अगस्त में कटाई का वक्त होता है उस वक्त बाढ़ का समय होता है. फसलें पानी में डूब जातीं हैं.

किसान धर्मवीर ने किया कमाल
ऐसे में 'गरमा धान' की उपज को लेकर किसान परेशान हो जाते हैं. हालांकि 'गरमा धान' की उपज में काफी अनाज का फायदा होता है. धनरूआ के किसान धर्मवीर ने दस एकड़ में खेती कर लोगों के बीच एक उदाहरण बने हैं. विकट स्थिति में भी हर परेशानियों को झेल कर धान की खेती कर रहे हैं.

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गरमा धान की रोपनी.

'गरमा धान अप्रैल महीने बोई जाती है. इस फसल को जुलाई-अगस्त में काट लिया जाता है. लेकिन सुखाड़ के समय गरमा धान की रोपनी होती है. जिस समय जलसंकट होता है और फसल काटने के समय बाढ़ की समस्या होती है. इन दोनों के वक्त के बीच गरमा धान तैयार होता है.'- धर्मवीर, किसान

धनरूआ में धान की लहलहा रही फसल को देख कर इन लोग देखर अचंभित हो रहे है, क्योंकि एक ही मानसून में कहीं रोपनी तो कहीं धान की फसल तैयार हो जाना अपने आप में अजूबा है. नयी पीढ़ी के लोगों के समझ के परे हो रहा है. हालांकि गरमा धान की उपज को लेकर सरकार किसानों को जागरूक भी कर रही है.

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रोपाई के सीजन में 'गरमा धान' तैयार.

यह भी पढ़ें: नवादा में किसान कर रहे हैं गरमा धान की खेती, दोगुने फायदे की उम्मीद

4 महीने में तैयार हो जाती है फसल
दरअसल गरमा धान की फसल 4 महीने के अंदर ही पूरी तरीके से पक कर तैयार हो जाती है. अप्रैल के आखिरी दिनों में किसान गरमा धान का बीज अपने खेतों में डालते हैं और अगस्त के शुरुआती दिनों में इसकी फसल पूरी तरह पक कर तैयार हो जाती है.

होती है अच्छी आमदनी
फसल कटने के बाद किसान अपने खेतों में आलू की पैदावार करना शुरू कर देते हैं. गरमा धान की मांग पश्चिम बंगाल में अधिक है क्योंकि इसका इस्तेमाल ज्यादातर चूड़ा बनाने के लिए किया जाता है. इससे किसानों को अच्छी खासी आमदनी भी हो जाती है.

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गरमा धान की फसल तैयार.

पश्चिम बंगाल में होती है काफी डिमांड
बहरहाल गरमा धान की खेती जिले सहित अन्य राज्यों में भी काफी चर्चित है. पश्चिम बंगाल के व्यापारी इसकी खरीदारी ज्यादा करते हैं. इससे बने चूड़े की वहां काफी डिमांड है. साथ ही किसानों को इससे कम समय में अच्छी खासी आमदनी हो जाती है.

पटना: राजधानी पटना के धनरुआ में गरमा धान की फसल चार महीने में फसल पक कर तैयार हो जाती है. अप्रैल महीने में आखिरी दिनों में किसान गरमा धान का बीज अपने खेतों में डालते हैं और अगस्त के शुरुआती दिनों में फसल काट ली जाती है. इस फसल से अब किसान अपनी किस्मत बदलने लगे हैं.

यह भी पढ़ें: रोहतासः गरमा धान की खेती से खिल उठे किसानों के चेहरे, कम समय में हो रहा अधिक मुनाफा

अगेती किस्म का धान है 'गरमा'
यह तस्वीर मसौढ़ी के धनरूआ की है. जहां कुछ किसान गरमा धान की फसल की बुआई अप्रैल माह में किये थे और इसकी कटाई अगस्त महीने में होनी है. हालांकि इस फसल को किसान बहुत कम लगाते है क्योंकि इस फसल को लगाना एक चुनौती भरा है.

देखें रिपोर्ट.

रोपाई और कटाई दोनों में आती है मुश्किलें
बुआई और कटाई दोनों के वक्त काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. अप्रैल में बीज की बुआई होती है. उस समय सुखाड़ का वक्त होता है, जिसमें पटवन की चिंता होती है. वहीं, अगस्त में कटाई का वक्त होता है उस वक्त बाढ़ का समय होता है. फसलें पानी में डूब जातीं हैं.

किसान धर्मवीर ने किया कमाल
ऐसे में 'गरमा धान' की उपज को लेकर किसान परेशान हो जाते हैं. हालांकि 'गरमा धान' की उपज में काफी अनाज का फायदा होता है. धनरूआ के किसान धर्मवीर ने दस एकड़ में खेती कर लोगों के बीच एक उदाहरण बने हैं. विकट स्थिति में भी हर परेशानियों को झेल कर धान की खेती कर रहे हैं.

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गरमा धान की रोपनी.

'गरमा धान अप्रैल महीने बोई जाती है. इस फसल को जुलाई-अगस्त में काट लिया जाता है. लेकिन सुखाड़ के समय गरमा धान की रोपनी होती है. जिस समय जलसंकट होता है और फसल काटने के समय बाढ़ की समस्या होती है. इन दोनों के वक्त के बीच गरमा धान तैयार होता है.'- धर्मवीर, किसान

धनरूआ में धान की लहलहा रही फसल को देख कर इन लोग देखर अचंभित हो रहे है, क्योंकि एक ही मानसून में कहीं रोपनी तो कहीं धान की फसल तैयार हो जाना अपने आप में अजूबा है. नयी पीढ़ी के लोगों के समझ के परे हो रहा है. हालांकि गरमा धान की उपज को लेकर सरकार किसानों को जागरूक भी कर रही है.

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रोपाई के सीजन में 'गरमा धान' तैयार.

यह भी पढ़ें: नवादा में किसान कर रहे हैं गरमा धान की खेती, दोगुने फायदे की उम्मीद

4 महीने में तैयार हो जाती है फसल
दरअसल गरमा धान की फसल 4 महीने के अंदर ही पूरी तरीके से पक कर तैयार हो जाती है. अप्रैल के आखिरी दिनों में किसान गरमा धान का बीज अपने खेतों में डालते हैं और अगस्त के शुरुआती दिनों में इसकी फसल पूरी तरह पक कर तैयार हो जाती है.

होती है अच्छी आमदनी
फसल कटने के बाद किसान अपने खेतों में आलू की पैदावार करना शुरू कर देते हैं. गरमा धान की मांग पश्चिम बंगाल में अधिक है क्योंकि इसका इस्तेमाल ज्यादातर चूड़ा बनाने के लिए किया जाता है. इससे किसानों को अच्छी खासी आमदनी भी हो जाती है.

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गरमा धान की फसल तैयार.

पश्चिम बंगाल में होती है काफी डिमांड
बहरहाल गरमा धान की खेती जिले सहित अन्य राज्यों में भी काफी चर्चित है. पश्चिम बंगाल के व्यापारी इसकी खरीदारी ज्यादा करते हैं. इससे बने चूड़े की वहां काफी डिमांड है. साथ ही किसानों को इससे कम समय में अच्छी खासी आमदनी हो जाती है.

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