पटना: बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है. जहां 75% से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है. राज्य में 59.37 प्रतिशत भूमि पर कृषि कार्य होता है. बिहार के आर्थिक विकास में कृषि क्षेत्र का योगदान सबसे ज्यादा है. साल 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद में कृषि सेक्टर की हिस्सेदारी 18.7% रही.
कृषि पर निर्भर लोगों का रोजगार: बिहार का कृषि क्षेत्र 60% से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराता है. सकल घरेलू उत्पाद में भी कृषि क्षेत्र की भूमिका अहम है. नाबार्ड द्वारा जारी आंकड़े के मुताबिक बिहार में कृषक परिवार की आवश्यकता है. 2015-16 में 7175 रुपए प्रतिमाह थी लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 8931 रुपया प्रतिमाह था. छोटे और सीमांत किसानों के पास बिहार की 96.9% भूमि और 75.9% खेती योग्य क्षेत्र है.
राज्य का 27.5% क्षेत्र बाढ़ प्रभावित: बिहार का भौगोलिक क्षेत्रफल 93.6 लाख हेक्टेयर है. जिसमें 64 लाख हेक्टेयर बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है कुल भौगोलिक क्षेत्र का 60% क्षेत्र में ही बुवाई हो पाती है और 40% क्षेत्र अनुपयोगी रह जाता है. राज्य का 27.5% ऐसा बाढ़ प्रभावित है. दरभंगा समस्तीपुर पूर्वी चंपारण मुजफ्फरपुर और खगड़िया जिले सबसे ज्यादा बढ़ का प्रकोप झेलते हैं.
बिहार के दर्जनों जिले सुखाड़ से प्रभावित: बिहार के दर्जन भर जिले सूखे के प्रभाव में रहते हैं जिन जिले में सूखा रहता है. वहां धान की बुआई भी बहुत कम हो पाती है. जहानाबाद, गया, औरंगाबाद, शेखपुरा, नवादा, मुंगेर, लखीसराय, भागलपुर, बांका, जमुई और नालंदा जिले सूखे के प्रभाव में रहते हैं. सरकार सूखा क्षेत्र तो घोषित करती है. लेकिन किसानों के लिए सरकारी घोषणाएं नाकाफी साबित होती हैं. सरकार की ओर से राहत के तौर पर डीजल अनुदान की घोषणा की जाती है.
चौथा कृषि रोड मैप की शुरुआत: कृषि में व्यापक सुधार के लिए बिहार सरकार ने कृषि रोड मैप की शुरुआत की और साल 2008 में पहला कृषि रोड मेप आया. फिलहाल चौथ कृषि रोड मैप के जरिए सरकार ने बिहार की जनता को सब्जबाग दिखाएं हैं. चौथे कृषि रोड मैप में 1.162 लाख करोड रुपए खर्च किए जाने हैं. यह अप्रैल 2023 से शुरू होकर 31 मार्च 2028 तक चलेगा, इसके जरिए सरकार ने किसानों को सबल बनाने की योजना है.
चौथा कृषि रोड मैप का लक्ष्य: चौथे कृषि रोड मैप के जरिए अधिक से अधिक वृक्षारोपण का लक्ष्य रखा गया है. चौथे कृषि रोड मैप के जरिए जैविक कृषि को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया है, तो जल संरक्षण पर भी ध्यान देने की बात कही गई है. इसके अलावा आधुनिक तकनीक के जरिए किसानों को सशक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है. इस साल कृषि विभाग विवादों में भी रहा. पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने विभाग के अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और मंडी व्यवस्था को लागू करने की बात कही थी. लेकिन न तो भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही हुई, न ही मंडी व्यवस्था लागू हो सकी. नतीजतन सुधाकर सिंह ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया.
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