पटना: जितने भी दान होते हैं उनमें नेत्रदान (Eye Donation) को सबसे बड़ा दान माना जाता है. इसे महादान भी कहा गया है. नेत्रदान के बारे में कहा जाता है कि इंसानों में दान किए जाने वाले अंगों में सबसे ऊपर आता है नेत्रदान. यह सबसे ज्यादा की जाने वाली प्रक्रिया है. ऐसे में पटना सिटी के पटना साहिब रेलवे स्टेशन (Patna Sahib railway station) के पास रहने वाला जैन परिवार (Jain family of Patna donated eyes) समाज के सामने मिसाल पेश कर रहा है. अबतक इस परिवार को चार लोगों ने आई डोनेट किया है.
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जैन परिवार के 4 लोगों ने किया आई डोनेट: परिवार के मुखिया पारस जैन बताते हैं कि 2018 में पहला मौका आया था जब मेरे परिवार से पहली बार नेत्रदान किया गया था. मेरी भाभी की कैंसर के कारण मौत हो गई थी, जिसके बाद हम लोगों ने नेत्रदान करने के लिए सोचा. हमने परिवार में इस बात की चर्चा की लेकिन हमारे मन में भी कई तरह की भ्रांतियां और रूढ़िवादी विचार भी थे. यह भी भ्रांति थी कि इसके बाद परिवार में जो बच्चे होंगे उनकी आंखें नहीं होंगी लेकिन तमाम दुविधाओं को दरकिनार कर हमने नेत्रदान का फैसला लिया.
"आईजीआईएमएस में हमारी बात हुई. जब डॉक्टरों की टीम आई और उन्हें यह पता चला कि भाभी की कैंसर के कारण मौत हुई है तो उन्होंने नेत्रदान के लिए मना कर दिया. हालांकि फिर हमने उनको समझाने की पहल की और उनसे यह कहा कि आप इस आंख को रिसर्च के लिए तो रख सकते हैं. इस बात पर वह टीम सहमत हो गई और फिर हमें यह बताया गया कि यह नेत्र रिसर्च के काम आएगा. ऐसे तो 1 या 2 लोगों के जीवन में ही रोशनी आती लेकिन रिसर्च होगा तो न जाने कितने लोगों के जीवन में रोशनी आ सकती है."- पारस जैन, आई डोनर
4 और लोग करेंगे आई डोनेट: पारस बताते हैं कि इसके अगले साल यानी जनवरी 2019 में पिताजी का देहांत हो गया. बहुत तरह की दुविधाएं थी लेकिन मेरी मां और बड़े भाई ने पूरा सहयोग किया. पिताजी की नेत्रदान की इच्छा थी. फिर हमने आईजीआईएमएस की टीम से संपर्क किया. टीम आई और पिताजी की नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी हुई. पारस कहते हैं अप्रैल 2019 में ही मेरी मामी का देहांत हुआ. उसके बाद फिर हमने आईजीआईएमएस की टीम से संपर्क किया. वहां टीम पहुंची, और मामी का नेत्रदान करवाया गया.
'मां की मौत के बाद गुवाहाटी में आई थी टीम': पारस आगे बताते हैं कि इसी साल फरवरी माह में मेरी मां अपने मायके गुवाहाटी गई हुई थी जहां दुर्भाग्य से उनका देहांत हो गया. वो शहर हमारे लिए अनजान था लेकिन फिर भी हमने कोशिश की. फिर हमने वहीं से पटना आईजीआईएमएस की टीम से बात की. फिर इस टीम ने गुवाहाटी में सारी व्यवस्थाएं कराई. इसके बाद मेरी मां के नेत्रदान की पूरी प्रक्रिया हो सकी. पारस यह भी बताते हैं कि मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मेरा परिवार इतनी विस्तृत सोच रखता है. अभी मेरे परिवार में भाई भाभी और भतीजे को मिलाकर 8 लोग हैं और हम सब ने यह तय कर लिया है कि हम भी नेत्रदान करेंगे.
"मेरे पति ने जब पापा का नेत्रदान कराया था तो एक अजीब सा माहौल था कि आखिर यह क्यों हो रहा है? क्या काम आएगा, लेकिन जब नेत्रदान हुआ तू सब ने कहा कि इससे किसी न किसी को रोशनी मिलेगी. फिर हम लोग अंतर ज्योति बालिका विद्यालय से जुड़े और जब वहां नेत्रहीन बच्चियों को देखा कि किसी की रोशनी नहीं है और बच्चे बहुत एक्टिव हैं. तब हमें लगा कि नेत्रदान होना चाहिए."- ऋतु जैन,आई डोनर
"मेरे परिवार में मेरे सास-ससुर ने नेत्रदान किया. मेरे देवर भी इससे जुड़े हुए हैं. मैं चाहती हूं कि हम लोग भी नेत्रदान करें ताकि यह जो खूबसूरत दुनिया है उसे सब देखें."- राखी जैन,आई डोनर
कागजी कार्रवाई में जुटा परिवार: बता दें कि दुनिया भर में दृष्टिहीन लोगों की जनसंख्या का एक चौथाई हिस्सा हमारे देश में है. ऐसे लोगों को रोशनी मिल सके इसके लिए नेत्रदान की जरूरत होती है पर जानकारी के अभाव में लोग नेत्रदान नहीं करते और जरूरतमंद इंतजार में ही अपनी पूरी जिंदगी काट देते हैं. नेत्रदान को लेकर कई तरह की भ्रांतियां भी हैं. लोग उन भ्रांतियों को लेकर भी नेत्रदान नहीं करते हैं लेकिन राजधानी का जैन परिवार लोगों के सामने मिसाल पेश कर रहा है. परिवार के 4 लोग अपना नेत्रदान कर चुके हैं और चार अपने नेत्र को दान करने की कागजी कार्रवाई में लगे हुए हैं.