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हर साल बिहार में बाढ़ क्यों आती है और क्यों इतनी तबाही मचाती है?

हर साल बिहार में बाढ़ आती है. हर साल तबाही मचाती है. हर साल लोग मारे जाते हैं और हर साल हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति पानी में बह जाती है. लेकिन ये बाढ़ क्यों आती है और कौन इसके लिए जिम्मेदार है, आइये इसे आसान भाषा में समझने की कोशिश करते हैं.

patna flood
बिहार में बाढ़
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Published : Jun 15, 2020, 7:03 AM IST

पटना: पिछले चार दशकों से बिहार हर साल बाढ़ की त्रासदी झेल रहा है. इससे हर साल करोड़ों का नुकसान होता है, लाखों बेघर होते हैं, हजारों की जान जाती है. बाढ़ उत्तर बिहार के लिए एक ऐसा अभिशाप बन गया है ​जो हर साल बिहार के दरख्त पर दर्द की कई कहानी लिख जाती है. हर साल यहां बाढ़ आती है और राज्य के दो तिहाई से ज्यादा इलाके को डुबो देती है.

बिहार में बाढ़ से जिंदगी जीने की जंग साल 1979 में शुरू हुई. 4 दशक से हर साल आई बाढ़ ने यहां के लोगों को अपनी विनाशलीला से बेघर किया और काल के गाल में समाने का काम किया. बिहार देश में सबसे ज्यादा बाढ़ की त्रासदी झेलने वाला राज्य है.

देखें विशेष रिपोर्ट

28 जिले बाढ़ प्रभावित
आंकड़ों की बात करें तो बिहार के 94.16 लाख हेक्टेयर भू-भाग में से 68.80 लाख हेक्टेयर इलाका बाढ़ की चपेट में रहता है. उत्तर बिहार की 80 फीसदी आबादी बाढ़ की चपेट में ही रहती है और अब दक्षिण बिहार का बड़ा इलाका बाढ़ से डूबने लगा है. खुद सरकार के अभिलेख में यह दर्ज है कि राज्य के 38 में से 28 जिले बाढ़ झेलते हैं.

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बाढ़ प्रभावित इलाके

पूरा उत्तर बिहार है प्रभावित
बिहार के बाढ़ प्रभावित जिलों की बात करें तो मुख्य रूप से 19 से 20 जिले ऐसे हैं, जहां हर साल बाढ़ आती है. इनमें पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, मधेपुरा, सहरसा, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, सिवान, सारण, समस्तीपुर, खगड़िया, कटिहार शामिल हैं.

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बाढ़ में खड़े लोग

खूब हुई सियासत
बिहार में बाढ़ पर सियासत खूब होती है और ​बाढ़ राजनीति को मुददा भी देती है. बाढ़ की सियासत बिहार में सरकार बना देती है और गिरा भी देती है. बाढ़ को लेकर चिंता तो खूब की गयी लेकिन बिहार को बाढ़ से निजात कैसे मिले उसके लिए जो सरकारी काम होने चाहिए थे नहीं हुए.

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बिहार में बाढ़

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की​ शिकायत
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की​ शिकायत भी इसी बात को लेकर है कि हम नदियों में पानी डालते हैं और खुद ही डूब जाते हैं. सीएम ने कहा कि कई गतिविधियों के कारण अविरल हुई गंगा नदी की धारा बिहार को बाढ़ के रूप में प्रलय दिखाती है. इससे निपटने के लिये काफी काम करने की जरूरत है.

नदियों के रखरखाव के लिये नहीं हुए काम
बिहार में किसी भी प्रदेश से ज्यादा नदियां हैं. नदियों के रख रखाव के लिए जो काम होना चाहिए था वह नहीं हो सका. अविरलता को लेकर हाल कि दिनों में बात तो जरूर उठी लेकिन जब काम करने की जरूरत थी तब काम नहीं किया गया. पानी के प्रबंधन के ठीक ढंग से इंतजाम नहीं होने और सरकारी उदासीनता के कारण ही वर्ष 2008 में कोसी त्रासदी हुई जिसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया.

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बाढ़ में जिंदगानी

इस साल भी बाढ़ के आसार
हर साल मॉनसून की दस्तक से ही बिहार के लोगों के माथे पर बल पड़ जाता है. जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीनों में ही ज्यादातर मॉनसूनी बारिश होती है. भारतीय मौसम विभाग के पटना स्थित केंद्र के वैज्ञानिक आनंद शंकर ने बताया कि इस बार बिहार में 895 मिलीमीटर से लेकर 1050 मिलीमीटर तक बारिश होने की संभावना है. यानी इस बार भी बिहार के लोगों को बाढ़ की विभीषिका झेलने को पूरी तरह तैयार रहना होगा.

बिहार में बाढ़ के जो बड़े कारण हैं उनपर एक नजर डाल लेते हैं:

⦁ मिट्टी लाने वाली धारा का मुड़ना.

⦁ कोसी का सामान्य प्रवाह की धारा 14 फीट ऊंची हुई.

⦁ पश्चिमी तटबंध की तरफ गाद भर जाने के कारण नदियों की धाराएं पूरब के तटबंध की तरफ बढ़ रहीं.

⦁ ​हवा और प्राकृतिक परिर्वतन ने नदियों की दिशा और धारा बदली.

⦁ उत्तर बिहार में बड़ी नदियों में बाढ़ नहीं आ रही. हिमालय के कैचमेंट एरिया में बारिश नहीं होने के कारण बाढ़ नहीं आई.

⦁ छोटी नदियों में ज्यादा पानी आने के कारण बाढ़ ने ज्यादा नुकसान किया.

⦁ गंगा में 35 बड़ी नदियां मिलती हैं. इन 35 ​नदियों के क्षेत्र में जहां ज्यादा बारिश होती है वहां से ज्यादा पानी आता है.

⦁ गंगा की धारा में लगातार बदलाव.

⦁ गाद भर जाने के कारण पानी का प्रवाह मैदानी भागों को बाढ़ का क्षेत्र बना देता है.

⦁ फरक्का डैम में सिल्टेशन होने के कारण पानी निकल नहीं पाना.

लोगों को इंतजार
बिहार के लिए बाढ़ एक नियती है जो अब बड़ी नीतियों के आने के बाद ही बदलेगी. इस बीच, बिहार के कई बाढ़ प्रभावित गांवों के लोगों में इस बात की चिंता है कि जलप्रलय आया तो तटबंध टूटने की स्थिति में कहीं उनका गांव ही आफत की धार में आकर ना बह जाए. बिहार इस पीड़ा से निजात का इंतजार कर रहा है. अब देखने वाली बात यही है कि डुबाने वाली बाढ़ से बिहार उबरता ​कब है और इससे उबारता कौन है.

पटना: पिछले चार दशकों से बिहार हर साल बाढ़ की त्रासदी झेल रहा है. इससे हर साल करोड़ों का नुकसान होता है, लाखों बेघर होते हैं, हजारों की जान जाती है. बाढ़ उत्तर बिहार के लिए एक ऐसा अभिशाप बन गया है ​जो हर साल बिहार के दरख्त पर दर्द की कई कहानी लिख जाती है. हर साल यहां बाढ़ आती है और राज्य के दो तिहाई से ज्यादा इलाके को डुबो देती है.

बिहार में बाढ़ से जिंदगी जीने की जंग साल 1979 में शुरू हुई. 4 दशक से हर साल आई बाढ़ ने यहां के लोगों को अपनी विनाशलीला से बेघर किया और काल के गाल में समाने का काम किया. बिहार देश में सबसे ज्यादा बाढ़ की त्रासदी झेलने वाला राज्य है.

देखें विशेष रिपोर्ट

28 जिले बाढ़ प्रभावित
आंकड़ों की बात करें तो बिहार के 94.16 लाख हेक्टेयर भू-भाग में से 68.80 लाख हेक्टेयर इलाका बाढ़ की चपेट में रहता है. उत्तर बिहार की 80 फीसदी आबादी बाढ़ की चपेट में ही रहती है और अब दक्षिण बिहार का बड़ा इलाका बाढ़ से डूबने लगा है. खुद सरकार के अभिलेख में यह दर्ज है कि राज्य के 38 में से 28 जिले बाढ़ झेलते हैं.

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बाढ़ प्रभावित इलाके

पूरा उत्तर बिहार है प्रभावित
बिहार के बाढ़ प्रभावित जिलों की बात करें तो मुख्य रूप से 19 से 20 जिले ऐसे हैं, जहां हर साल बाढ़ आती है. इनमें पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, मधेपुरा, सहरसा, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, सिवान, सारण, समस्तीपुर, खगड़िया, कटिहार शामिल हैं.

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बाढ़ में खड़े लोग

खूब हुई सियासत
बिहार में बाढ़ पर सियासत खूब होती है और ​बाढ़ राजनीति को मुददा भी देती है. बाढ़ की सियासत बिहार में सरकार बना देती है और गिरा भी देती है. बाढ़ को लेकर चिंता तो खूब की गयी लेकिन बिहार को बाढ़ से निजात कैसे मिले उसके लिए जो सरकारी काम होने चाहिए थे नहीं हुए.

patna
बिहार में बाढ़

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की​ शिकायत
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की​ शिकायत भी इसी बात को लेकर है कि हम नदियों में पानी डालते हैं और खुद ही डूब जाते हैं. सीएम ने कहा कि कई गतिविधियों के कारण अविरल हुई गंगा नदी की धारा बिहार को बाढ़ के रूप में प्रलय दिखाती है. इससे निपटने के लिये काफी काम करने की जरूरत है.

नदियों के रखरखाव के लिये नहीं हुए काम
बिहार में किसी भी प्रदेश से ज्यादा नदियां हैं. नदियों के रख रखाव के लिए जो काम होना चाहिए था वह नहीं हो सका. अविरलता को लेकर हाल कि दिनों में बात तो जरूर उठी लेकिन जब काम करने की जरूरत थी तब काम नहीं किया गया. पानी के प्रबंधन के ठीक ढंग से इंतजाम नहीं होने और सरकारी उदासीनता के कारण ही वर्ष 2008 में कोसी त्रासदी हुई जिसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया.

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बाढ़ में जिंदगानी

इस साल भी बाढ़ के आसार
हर साल मॉनसून की दस्तक से ही बिहार के लोगों के माथे पर बल पड़ जाता है. जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर के महीनों में ही ज्यादातर मॉनसूनी बारिश होती है. भारतीय मौसम विभाग के पटना स्थित केंद्र के वैज्ञानिक आनंद शंकर ने बताया कि इस बार बिहार में 895 मिलीमीटर से लेकर 1050 मिलीमीटर तक बारिश होने की संभावना है. यानी इस बार भी बिहार के लोगों को बाढ़ की विभीषिका झेलने को पूरी तरह तैयार रहना होगा.

बिहार में बाढ़ के जो बड़े कारण हैं उनपर एक नजर डाल लेते हैं:

⦁ मिट्टी लाने वाली धारा का मुड़ना.

⦁ कोसी का सामान्य प्रवाह की धारा 14 फीट ऊंची हुई.

⦁ पश्चिमी तटबंध की तरफ गाद भर जाने के कारण नदियों की धाराएं पूरब के तटबंध की तरफ बढ़ रहीं.

⦁ ​हवा और प्राकृतिक परिर्वतन ने नदियों की दिशा और धारा बदली.

⦁ उत्तर बिहार में बड़ी नदियों में बाढ़ नहीं आ रही. हिमालय के कैचमेंट एरिया में बारिश नहीं होने के कारण बाढ़ नहीं आई.

⦁ छोटी नदियों में ज्यादा पानी आने के कारण बाढ़ ने ज्यादा नुकसान किया.

⦁ गंगा में 35 बड़ी नदियां मिलती हैं. इन 35 ​नदियों के क्षेत्र में जहां ज्यादा बारिश होती है वहां से ज्यादा पानी आता है.

⦁ गंगा की धारा में लगातार बदलाव.

⦁ गाद भर जाने के कारण पानी का प्रवाह मैदानी भागों को बाढ़ का क्षेत्र बना देता है.

⦁ फरक्का डैम में सिल्टेशन होने के कारण पानी निकल नहीं पाना.

लोगों को इंतजार
बिहार के लिए बाढ़ एक नियती है जो अब बड़ी नीतियों के आने के बाद ही बदलेगी. इस बीच, बिहार के कई बाढ़ प्रभावित गांवों के लोगों में इस बात की चिंता है कि जलप्रलय आया तो तटबंध टूटने की स्थिति में कहीं उनका गांव ही आफत की धार में आकर ना बह जाए. बिहार इस पीड़ा से निजात का इंतजार कर रहा है. अब देखने वाली बात यही है कि डुबाने वाली बाढ़ से बिहार उबरता ​कब है और इससे उबारता कौन है.

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