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...तो क्या जारी रहेगा किसानों का आंदोलन?

दिल्ली के सिंधु बॉर्डर पर किसानों का जमावड़ा लगा हुआ है. देश के ज्यादातर राज्यों में कृषि कानूनों का विरोध हो रहा है. लेकिन सरकार कानून को वापस लेने के लिए तैयार नहीं है. अब सवाल उठ रहा है कि क्या किसानों का आंदोलन जारी रहेगा या फिर आंदोलनकारी किसान अपने-अपने घर लौट जाएंगे.

Farmers protest
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Published : Dec 9, 2020, 9:35 AM IST

दिल्ली: गृह मंत्री अमित शाह और किसानों के बीच मंगलवार को हुई बातचीत के बाद यह साफ हो गया है किसी भी हाल में सरकार कानून वापस नहीं लेगी. दो घंटों तक हुई इस बातचीत में कृषि कानून के जटिल मुद्दों पर चर्चा हुई, लेकिन इससे कोई खास फायदा नहीं हुआ. ऐसा इसलिए क्योंकि जो किसानों की मांग थी, उसे मानने से सरकार ने साफ इनकार कर दिया है. सरकार की तरफ से कहा गया है कि एक प्रस्ताव दिया जाएगा.

बैठक के बाद बाहर निकले अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हनन मुला ने कहा कि सरकार कृषि कानून वापस लेने को तैयार नहीं है. सिंधु बॉर्डर पर किसानों के साथ सरकार के प्रस्तावों पर बैठक की जाएगी. जो भी बैठक में निर्णय लिया जाएगा. उस पर सभी किसान काम करेंगे.

किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह

...तो अब आगे क्या?
फिलहाल जो स्थिति है. उसमें एक तरफ किसान कृषि कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकार जिद पर अड़ी हुई है. यानी मोदी सरकार तीनों कृषि कानून वापस लेने को तैयार नहीं है. सरकार के प्रस्ताव पर अगर किसानों में सहमति नहीं बनी तो क्या आंदोलनकारी किसान सिंधु बॉर्डर पर डटे रहेंगे, या फिर कड़कड़ाती ठंड में भी किसानों का आंदोलन जारी रहेगा. मीडिया में कई बार किसानों ने साफ कर दिया है कि जब तक मांगें सरकार मान नहीं लेती है तब तक आंदोलन जारी रहेगा. इससे पहले भी कई बार किसान आंदोलन हुए लेकिन आश्वासन के बाद खत्म हो गया. लेकिन इस बार का आंदोलन कुछ अलग दिख रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस बार मोदी विरोधी पार्टियां भी किसानों के साथ खड़ी हो गई है. जिससे किसानों का हौसला बुलंद है. शायद यही वजह है कि किसान पीछे हटने को तैयार नहीं है. एक वजह यह भी मानी जा रही है कि ज्यादातर राज्यों के किसान कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं. 8 दिसंबर को भारत बंद के दौरान यूपी से लेकर बिहार तक किसानों ने प्रदर्शन किया. उसके साथ ही राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने भी सड़क और रेलमार्ग बाधित कर कृषि कानून का विरोध कर जता दिया कि अगर किसान पीछे नहीं हटे तो उनके साथ राजनीतिक पार्टियां पूरी तरह से खड़ी है.

धरने पर बैठे हजारों किसान
धरने पर बैठे हजारों किसान

अब आश्वासन मंजूर नहीं!
ऐसा नहीं है कि कानून में सरकार संशोधन को तैयार नहीं है. लेकिन किसानों की जो मांग है उसपर बात नहीं बन रही है. अमित शाह के साथ हुई बैठक में कहा गया है कि सरकार जिन संशोधनों के पक्ष में है उसे लिखित में दिया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह , कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर समेत कई केंद्रीय मंत्री किसानों को इस बात का लगातार आश्वासन दे रहे हैं कि एमएसपी की व्यवस्था जैसे पहली थी, वैसे अब भी रहेगी, लेकिन किसान एमएसपी की गारंटी चाहते हैं. किसानों का कहना है कि कृषि कानून में एमएसपी का जिक्र होना चाहिए. जिसपर सरकार का तर्क है कि पहले के कानूनों में भी एमएसपी को कानूनी मान्यता देने की बात नहीं थी लिहाजा नये कृषि कानूनों में भी इसे शामिल नहीं किया गया है. किसान जिन मांगों को लेकर ठंठ में ठिठुर रहे हैं इसे विस्तार से जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि एमएसपी पर जोर किसान क्यों दे रहे हैं.?

किसानों का जमावड़ा
किसानों का जमावड़ा

MSP पर अड़े किसान
MSP या फिर न्यूनतम सर्मथन मूल्य सरकार की तरफ से किसानों की अनाज वाली कुछ फसलों के दाम की एक प्रकार की गारंटी होती है. राशन सिस्टम के तहत एमएसपी पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है. अगर कभी फसलों की कीमत बाजार के हिसाब से गिर भी जाती है तब भी सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल खरीदती है. एमएसपी किसी भी फसल की पूरे देश में एक ही होती है. जानकारी के मुताबिक अभी केंद्र सरकार 23 फसलों की खरीद एमएसपी पर करती है. कृषि मंत्रालय कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस की अनुशंसा के आधार पर एमएसपी तय करती है. एक रिपोर्ट के एमएसपी का लाभ सिर्फ 6 प्रतिशत किसानों को ही मिल पाता है. जिसका सीधा मतलब है कि देश के 94 फीसदी किसान एमएसपी के फायदे से दूर रहते हैं. एनएसएसओ के अनुसार देश में सरकार की नजर में 9.2 मिलियन किसान थे. वर्तमान में सरकार के अनुसार देश में किसानों की संख्या 14.5 करोड़ है, इस लिहाज से 6 फीसदी किसान मतलब कुल संख्या 87 लाख किसान ही एमएसपी के तहत फसल बेच पाते हैं. ऐसे में बाकी बचे किसान फायदे से दूर रहते हैं जिसका लगातार विरोध हो रहा है.

धरने पर बैठे हजारों किसान
धरने पर बैठे हजारों किसान
  • किसानों की 15 मांगें जिसपर है विवाद
    MSP को वैधानिक दर्जा देते हुए किसानों की सभी फसलों जिसमें फल, सब्जियां, दूध को भी उचित और लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य डॉ स्वामीनाथन द्वारा सुझाए गए ब2 फार्मूले के अनुसार तय किया जाए, कम से कम 50% लाभ जोड़कर समर्थन मूल्य घोषित किया जाए. यह भी सुनिश्चित किया जाए कि मंडी में गुणवत्ता मापदंड के उत्पादन का भाव किसी भी कीमत पर समर्थन मूल्य से कम न हो. ऐसा न होने पर दंड का प्रावधान किया जाए. सभी फसलों की शत-प्रतिशत सरकारी खरीद की गारंटी दी जाए.
  • किसानों के सभी तरह के कर्ज माफ किए जाएं. देश के किसानों पर लगभग 80 प्रतिशत कर्ज राष्ट्रीयकृत बैंकों का है. किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अन्तर्गत आने वाले बजट सत्र में चार वर्ष तक केवल ब्याज जमा करने व पांचवें वर्ष में नवीनीकरण के समय मूलधन ब्याज सहित जमा कराने का प्रावधान किया जाए.
  • राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी NGT की तरफ से 10 वर्ष से अधिक डीजल वाहनों के संचालन पर लगाई गई रोक से कई शहरों में किसानों के ट्रैक्टर, पम्पिंग सैट, कृषि कार्य में प्रयोग होने वाले डीजल इंजन को मुक्त किया जाए.
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा में बदलाव करते हुए प्रत्येक किसान को इकाई मानकर सभी फसलों में स्वैच्छिक रूप से लागू किया जाए. योजना में बदलाव करते हुए चोरी, आगजनी आदि को शामिल किया जाए. प्रीमियम का पूर्ण भुगतान सरकारों द्वारा किया जाए.
  • किसानों की न्यूनतम आमदनी सुनिश्चित की जाए. लघु एवं सीमान्त किसानों को 60 वर्ष की आयु के बाद कम से कम 5000 रुपये मासिक पेंशन दी जाए.
  • आवारा पशुओं जैसे-नीलघोड़ा, जंगली सुअर से फसलों की बर्बादी होती है. जंगली जानवरों से सुरक्षा के लिए क्षेत्रीय आधार पर वृहद कार्य योजना बनाई जाए. देश के कुछ राज्यों में प्रचलित अन्ना प्रथा पर रोक लगाई जाए.
  • किसानों का बकाया गन्ना भुगतान ब्याज सहित और चीनी का न्यूनतम मूल्य 40 रुपये प्रति किलो तय किया जाए.
  • सिंचाई के लिए नलकूप की बिजली निःशुल्क उपलब्ध कराई जाए.
  • 10 वर्षों में खेती में हो रहे नुकसान के कारण सरकारी रिकार्ड के अनुसार तीन लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है. आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों का पुनर्वास करते हुए परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए.
  • मनरेगा को खेती से लिंक किया जाए.
  • खेती में काम आने वाली सभी वस्तुओं को जीएसटी से मुक्त किया जाए.
  • कृषि को विश्व व्यापार संगठन से बाहर रखा जाए. मुक्त व्यापार समझौतों में कृषि पर चर्चा न की जाए.
  • देश में पर्याप्त मात्रा में पैदावार वाली फसलों का आयात बंद किया जाए. आसियान मुक्त व्यापार समझौते की आड़ में कई देशों द्वारा ऐसी वस्तुओं का निर्यात किया जा रहा है जिसका वह उत्पादक नहीं है. ऐसे मामलों में प्रतिबंध लगाया जाए.
  • देश में सभी मामलों में भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास अधिनियम 2013 से ही किया जाए. भूमि अधिग्रहण को केन्द्रीय सूची में रखते हुए राज्यों को किसान विरोधी कानून बनाने से रोका जाए.
  • किसानों की समस्याओं पर संसद का विशेष संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाए. इसमें एक माह तक किसानों की समस्याओं पर चर्चा कर समाधान किया जाए.
    किसानों पर वाटर कैनन (कुछ दिन पहले की तस्वीर)
    किसानों पर वाटर कैनन (कुछ दिन पहले की तस्वीर)

गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुई बैठक के बाद सरकार ने कई मांगों पर लिखित देने की बात कही है, यानी सरकार 15 में से कई मांगों पर संशोधन करने को तैयार है, लेकिन मुख्य मुद्दा जो है उस पर बात नहीं बन रही है. ज्यादातर लोगों का कहना है कि एमएसपी पर बात नहीं बन रही है. किसानों के जरिए विपक्ष को भी सरकार को घेरने का मौका मिला है. लिहाजा विपक्ष भी पूरी तरह से ना सही लेकिन मीडिया में बयानबाजी और आरोपों की राजनीति कर रहा है. जिससे सरकार पर मौजूदा समय में भारी दबाव है. यह अलग बात है कि सरकार भी किसानों की तरह पीछे हटने को तैयार नहीं है. लेकिन जिस तरह से किसानों ने मन बनाया है उससे साफ जाहिर होता है कि ये आंदोलन लंबा चलेगा.

दिल्ली: गृह मंत्री अमित शाह और किसानों के बीच मंगलवार को हुई बातचीत के बाद यह साफ हो गया है किसी भी हाल में सरकार कानून वापस नहीं लेगी. दो घंटों तक हुई इस बातचीत में कृषि कानून के जटिल मुद्दों पर चर्चा हुई, लेकिन इससे कोई खास फायदा नहीं हुआ. ऐसा इसलिए क्योंकि जो किसानों की मांग थी, उसे मानने से सरकार ने साफ इनकार कर दिया है. सरकार की तरफ से कहा गया है कि एक प्रस्ताव दिया जाएगा.

बैठक के बाद बाहर निकले अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हनन मुला ने कहा कि सरकार कृषि कानून वापस लेने को तैयार नहीं है. सिंधु बॉर्डर पर किसानों के साथ सरकार के प्रस्तावों पर बैठक की जाएगी. जो भी बैठक में निर्णय लिया जाएगा. उस पर सभी किसान काम करेंगे.

किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह

...तो अब आगे क्या?
फिलहाल जो स्थिति है. उसमें एक तरफ किसान कृषि कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकार जिद पर अड़ी हुई है. यानी मोदी सरकार तीनों कृषि कानून वापस लेने को तैयार नहीं है. सरकार के प्रस्ताव पर अगर किसानों में सहमति नहीं बनी तो क्या आंदोलनकारी किसान सिंधु बॉर्डर पर डटे रहेंगे, या फिर कड़कड़ाती ठंड में भी किसानों का आंदोलन जारी रहेगा. मीडिया में कई बार किसानों ने साफ कर दिया है कि जब तक मांगें सरकार मान नहीं लेती है तब तक आंदोलन जारी रहेगा. इससे पहले भी कई बार किसान आंदोलन हुए लेकिन आश्वासन के बाद खत्म हो गया. लेकिन इस बार का आंदोलन कुछ अलग दिख रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस बार मोदी विरोधी पार्टियां भी किसानों के साथ खड़ी हो गई है. जिससे किसानों का हौसला बुलंद है. शायद यही वजह है कि किसान पीछे हटने को तैयार नहीं है. एक वजह यह भी मानी जा रही है कि ज्यादातर राज्यों के किसान कृषि कानून का विरोध कर रहे हैं. 8 दिसंबर को भारत बंद के दौरान यूपी से लेकर बिहार तक किसानों ने प्रदर्शन किया. उसके साथ ही राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने भी सड़क और रेलमार्ग बाधित कर कृषि कानून का विरोध कर जता दिया कि अगर किसान पीछे नहीं हटे तो उनके साथ राजनीतिक पार्टियां पूरी तरह से खड़ी है.

धरने पर बैठे हजारों किसान
धरने पर बैठे हजारों किसान

अब आश्वासन मंजूर नहीं!
ऐसा नहीं है कि कानून में सरकार संशोधन को तैयार नहीं है. लेकिन किसानों की जो मांग है उसपर बात नहीं बन रही है. अमित शाह के साथ हुई बैठक में कहा गया है कि सरकार जिन संशोधनों के पक्ष में है उसे लिखित में दिया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह , कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर समेत कई केंद्रीय मंत्री किसानों को इस बात का लगातार आश्वासन दे रहे हैं कि एमएसपी की व्यवस्था जैसे पहली थी, वैसे अब भी रहेगी, लेकिन किसान एमएसपी की गारंटी चाहते हैं. किसानों का कहना है कि कृषि कानून में एमएसपी का जिक्र होना चाहिए. जिसपर सरकार का तर्क है कि पहले के कानूनों में भी एमएसपी को कानूनी मान्यता देने की बात नहीं थी लिहाजा नये कृषि कानूनों में भी इसे शामिल नहीं किया गया है. किसान जिन मांगों को लेकर ठंठ में ठिठुर रहे हैं इसे विस्तार से जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि एमएसपी पर जोर किसान क्यों दे रहे हैं.?

किसानों का जमावड़ा
किसानों का जमावड़ा

MSP पर अड़े किसान
MSP या फिर न्यूनतम सर्मथन मूल्य सरकार की तरफ से किसानों की अनाज वाली कुछ फसलों के दाम की एक प्रकार की गारंटी होती है. राशन सिस्टम के तहत एमएसपी पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है. अगर कभी फसलों की कीमत बाजार के हिसाब से गिर भी जाती है तब भी सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल खरीदती है. एमएसपी किसी भी फसल की पूरे देश में एक ही होती है. जानकारी के मुताबिक अभी केंद्र सरकार 23 फसलों की खरीद एमएसपी पर करती है. कृषि मंत्रालय कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस की अनुशंसा के आधार पर एमएसपी तय करती है. एक रिपोर्ट के एमएसपी का लाभ सिर्फ 6 प्रतिशत किसानों को ही मिल पाता है. जिसका सीधा मतलब है कि देश के 94 फीसदी किसान एमएसपी के फायदे से दूर रहते हैं. एनएसएसओ के अनुसार देश में सरकार की नजर में 9.2 मिलियन किसान थे. वर्तमान में सरकार के अनुसार देश में किसानों की संख्या 14.5 करोड़ है, इस लिहाज से 6 फीसदी किसान मतलब कुल संख्या 87 लाख किसान ही एमएसपी के तहत फसल बेच पाते हैं. ऐसे में बाकी बचे किसान फायदे से दूर रहते हैं जिसका लगातार विरोध हो रहा है.

धरने पर बैठे हजारों किसान
धरने पर बैठे हजारों किसान
  • किसानों की 15 मांगें जिसपर है विवाद
    MSP को वैधानिक दर्जा देते हुए किसानों की सभी फसलों जिसमें फल, सब्जियां, दूध को भी उचित और लाभकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य डॉ स्वामीनाथन द्वारा सुझाए गए ब2 फार्मूले के अनुसार तय किया जाए, कम से कम 50% लाभ जोड़कर समर्थन मूल्य घोषित किया जाए. यह भी सुनिश्चित किया जाए कि मंडी में गुणवत्ता मापदंड के उत्पादन का भाव किसी भी कीमत पर समर्थन मूल्य से कम न हो. ऐसा न होने पर दंड का प्रावधान किया जाए. सभी फसलों की शत-प्रतिशत सरकारी खरीद की गारंटी दी जाए.
  • किसानों के सभी तरह के कर्ज माफ किए जाएं. देश के किसानों पर लगभग 80 प्रतिशत कर्ज राष्ट्रीयकृत बैंकों का है. किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अन्तर्गत आने वाले बजट सत्र में चार वर्ष तक केवल ब्याज जमा करने व पांचवें वर्ष में नवीनीकरण के समय मूलधन ब्याज सहित जमा कराने का प्रावधान किया जाए.
  • राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी NGT की तरफ से 10 वर्ष से अधिक डीजल वाहनों के संचालन पर लगाई गई रोक से कई शहरों में किसानों के ट्रैक्टर, पम्पिंग सैट, कृषि कार्य में प्रयोग होने वाले डीजल इंजन को मुक्त किया जाए.
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा में बदलाव करते हुए प्रत्येक किसान को इकाई मानकर सभी फसलों में स्वैच्छिक रूप से लागू किया जाए. योजना में बदलाव करते हुए चोरी, आगजनी आदि को शामिल किया जाए. प्रीमियम का पूर्ण भुगतान सरकारों द्वारा किया जाए.
  • किसानों की न्यूनतम आमदनी सुनिश्चित की जाए. लघु एवं सीमान्त किसानों को 60 वर्ष की आयु के बाद कम से कम 5000 रुपये मासिक पेंशन दी जाए.
  • आवारा पशुओं जैसे-नीलघोड़ा, जंगली सुअर से फसलों की बर्बादी होती है. जंगली जानवरों से सुरक्षा के लिए क्षेत्रीय आधार पर वृहद कार्य योजना बनाई जाए. देश के कुछ राज्यों में प्रचलित अन्ना प्रथा पर रोक लगाई जाए.
  • किसानों का बकाया गन्ना भुगतान ब्याज सहित और चीनी का न्यूनतम मूल्य 40 रुपये प्रति किलो तय किया जाए.
  • सिंचाई के लिए नलकूप की बिजली निःशुल्क उपलब्ध कराई जाए.
  • 10 वर्षों में खेती में हो रहे नुकसान के कारण सरकारी रिकार्ड के अनुसार तीन लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है. आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों का पुनर्वास करते हुए परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए.
  • मनरेगा को खेती से लिंक किया जाए.
  • खेती में काम आने वाली सभी वस्तुओं को जीएसटी से मुक्त किया जाए.
  • कृषि को विश्व व्यापार संगठन से बाहर रखा जाए. मुक्त व्यापार समझौतों में कृषि पर चर्चा न की जाए.
  • देश में पर्याप्त मात्रा में पैदावार वाली फसलों का आयात बंद किया जाए. आसियान मुक्त व्यापार समझौते की आड़ में कई देशों द्वारा ऐसी वस्तुओं का निर्यात किया जा रहा है जिसका वह उत्पादक नहीं है. ऐसे मामलों में प्रतिबंध लगाया जाए.
  • देश में सभी मामलों में भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास अधिनियम 2013 से ही किया जाए. भूमि अधिग्रहण को केन्द्रीय सूची में रखते हुए राज्यों को किसान विरोधी कानून बनाने से रोका जाए.
  • किसानों की समस्याओं पर संसद का विशेष संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाए. इसमें एक माह तक किसानों की समस्याओं पर चर्चा कर समाधान किया जाए.
    किसानों पर वाटर कैनन (कुछ दिन पहले की तस्वीर)
    किसानों पर वाटर कैनन (कुछ दिन पहले की तस्वीर)

गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुई बैठक के बाद सरकार ने कई मांगों पर लिखित देने की बात कही है, यानी सरकार 15 में से कई मांगों पर संशोधन करने को तैयार है, लेकिन मुख्य मुद्दा जो है उस पर बात नहीं बन रही है. ज्यादातर लोगों का कहना है कि एमएसपी पर बात नहीं बन रही है. किसानों के जरिए विपक्ष को भी सरकार को घेरने का मौका मिला है. लिहाजा विपक्ष भी पूरी तरह से ना सही लेकिन मीडिया में बयानबाजी और आरोपों की राजनीति कर रहा है. जिससे सरकार पर मौजूदा समय में भारी दबाव है. यह अलग बात है कि सरकार भी किसानों की तरह पीछे हटने को तैयार नहीं है. लेकिन जिस तरह से किसानों ने मन बनाया है उससे साफ जाहिर होता है कि ये आंदोलन लंबा चलेगा.

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