पूर्णिया: डीजल की आसमान छूती कीमतों के बीच लॉकडाउन रिटर्न ने किसानों की कमर तोड़कर रख दी है. दोहरी मार धान की खेती करने वाले किसानों के लिए दोहरी मुसीबत लेकर आया है. एक महीने के भीतर डीजल की कीमतों में हुई 10 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोतरी फसलों की जुताई और बुआई में लगे किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है. इस साल जिला कृषि विभाग ने 95 हजार हेक्टेयर में धान रोपनी का लक्ष्य रखा है. हालांकि जैसे मौजूदा हालात हैं, कोई आसमानी करिश्मा ही कृषि विभाग को उसके लक्ष्य तक पहुंचा सकता है.
95 हजार हेक्टेयर में की जाती है धान की खेती
खरीफ फसलों में किसान सबसे अधिक खेती धान की करते हैं. कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले में 95000 हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है. वहीं उत्पादन की बात करें तो यह आंकड़ा 2 लाख 85 हजार टन को छू जाता है. हालांकि इस वित्तीय वर्ष यह तस्वीर बिल्कुल जुदा होगी. जैसी विषम परिस्थितियां किसानों के सामने बन पड़ी हैं, गुजरे सालों से कहीं ज्यादा लक्ष्य से पिछड़ने के आसार बन पड़े हैं.
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डीजल ने बिगाड़ा किसानों का बजट
दरअसल, ऐसा इसलिए भी है कि धान की खेती करने वाले किसानों को पल-पल पैसे की जरूरत पडती है। पहले खेतों की जुताई, बोआई, निंदाई और फिर ठीक इसके बाद खाद -बीज से लेकर कटाई तक में अच्छा-भला कॉस्ट किसानों के सर एक बड़ा बोझ बनकर आता है। पट्टे पर खेत लेकर धान की खेती करने वाले किसान बजापते इसके लिए या तो सगे-संबंधियों से या फिर बैंक ऋण लेते हैं। इसके लिए किसान पूर्व से ही एक बजट बनाकर चलते हैं। मगर इस बार डीजल की आसमान छूती कीमतों ने किसानों का बजट बिगाड़ कर रख दिया है.
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धान पर डीजल और लॉकडाउन की डबल मार
किसान श्री सम्मान से सम्मानित किसान कहते हैं कि पीएम मोदी ने सरकार में आते ही अच्छे दिनों के वायदे किए थे. लेकिन मौजूदा वक्त में डीजल की कीमतों ने जो आसमानी छलांग लगाई है, उससे किसानों का भरोसा टूट रहा है. 2014 में जिस डीजल की कीमत में 57 रुपये थी. आज उसकी कीमत 80 रुपए के आस-पास पंहुच गई है. ऊपर से लॉकडाउन के भार ने किसानों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है. मक्के की क्षति से उबरे भी नहीं थे कि धान की खेती के लिए पैसों की जुगाड़ बड़ी चुनौती बन गई. कुछ यही वजह भी है कि धान की रोपनी इस बार देरी से शुरू हुई है.
डीजल की बढ़ती कीमतों से किसानों की जेबें ढ़ीली
श्री नगर प्रखंड के किसान याघवेंद्र प्रसाद चौधरी कहते हैं कि धान पानी की फसल होती है. अच्छी बारिश हो तब भी कम से कम 5-7 दफे पटवन की जरूरत होती है. एक बार में एक एकड़ में पानी लगने में करीबन 8 घण्टें लग जाते हैं. इसमें 16-18 लीटर डीजल की खपत होती है. इस हिसाब से एक एकड़ में धान की फसल तैयार करने में करीबन 85 लीटर डीजल की जरूरत बनती है. वहीं धान रोपनी से पहले खेतों की 5 जुताई करनी होती है. जिसमें प्रति एकड़ 30 लीटर तक के डीजल कॉस्ट का खर्च आता है. वहीं लिहाजा डीजल की आसमान छूती कीमतों न धान की खेती से मिलने वाले मुनाफे से मक्के की क्षति की भरपाई के बची-कूची उम्मीदों पर पानी फेर दिया है.
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देव इंद्र पर टिकी किसानों की आखिरी उम्मीद
कसबा प्रखंड स्थित खेतों में अच्छे फसल की कामना में पारंपरिक धान रोपनी गीत गाकर भगवान इंद्र को मनाया जा रहा है. धान रोपनी गीत गाकर सरकार पर व्यंग करती महिलाएं कहती हैं, यूं तो आम तौर पर प्रसन्न बारिश के लिए ग्रामीण महिलाएं धान रोपनी के समय पारंपरिक गीत गाकर इंद्र देव को मनाती हैं. मगर डीजल की कीमतों में जिस तरह से आग लगी. देव इंद्र के सिवाए दूसरा कोई सहारा नहीं.
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धान रोपनी पर कोरोना ग्रहण
ईटीवी भारत के हाथ लगे आंकड़ों पर नजर डालें तो कोरोना की मार धान रोपनी के लक्ष्य पर साफ देखा जा सकता है. गुजरे साल की तरह ही इस वर्ष भी धान रोपनी का लक्ष्य 95 हजार हेक्टेयर पर ही सिमट कर रह गया. गौरतलब हो कि विभाग पिछले साल इसी लक्ष्य का 65 फीसद हिस्सा ही कवर कर पाई थी.
सभी 14 प्रखण्डों के प्रखंडवार धान रोपनी का लक्ष्य... |
क्र.स | प्रखंड | लक्ष्य | अबतक |
1. | पूर्णिया पूर्व | 6800 | 1300 |
2. | कसबा | 4850 | 1012 |
3. | जलालगढ़ | 4675 | 1200 |
4. | के. नगर | 6800 | 1320 |
5. | बनमनखी | 10330 | 1200 |
6. | धमदाहा | 9240 | 1985 |
7. | भवानीपुर | 5456 | 980 |
8. | रुपौली | 7576 | 1100 |
9. | बिकोठी | 7220 | 1025 |
10. | डगरुआ | 6850 | 1500 |
11. | बायसी | 6425 | 2350 |
12. | अमौर | 9515 | 2150 |
13. | बैसा | 5955 | 2203 |
14. | श्री नगर | 3300 | 885 |