पटना: राजधानी पटना के ग्रामीण इलाकों में इन दिनों धान की रोपाई चल रही है. एक तरफ से किसान जहां धान की रोपाई कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर तैयार धान को काटा भी जा रहा है. चौंकिए मत क्योंकि हम बात कर रहे हैं गरमा धान की. जी हां, कम समय में कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाले गरमा धान की इन दिनों कटाई भी शुरू हो चुकी है.
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मसौढ़ी में गरमा धान की खेती: गरमा धान की खासियत यह है कि इससे सोंधी-सोंधी चूड़ा तैयार होता है. इसकी डिमांड काफी अधिक होती है, जो पश्चिम बंगाल में भेजा जाता है. इस धान की खेती कर किसान आत्मनिर्भर बन रहे हैं. एक तरफ मानसून आते ही धान की रोपाई चल रही है तो दूसरी तरफ गरमा धान की कटाई हो रही है.
गरमा धान से कम समय में अच्छी कमाई: कम समय में कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाला यह गरमा धान है. इसकी रोपाई अप्रैल-मई के महीने में की जाती है. उस वक्त रबी सीजन खत्म हो जाता है. ऐसे में खाली पड़े खेत में किसान गरमा धान लगाते हैं और कम समय में यानी 90 दिनों में ही सुनहरे रंग के साथ धान तैयार हो जाती है. जुलाई महीने में धान को काट दिया जाता है.
पश्चिम बंगाल में है ज्यादा डिमांड: गरमा धान की खासियत यह होती है कि यह धान से तैयार चूड़ा की खुशबू से पूरा वातावरण धमकने लगता है और इसकी डिमांड काफी अधिक होती है. पश्चिम बंगाल में ज्यादातर यह धान को भेजा जाता है. मसौढ़ी के जगपुरा गांव में गरमा धान की अधिक खेती होती है. किसानों की माने तो रबी की खेती के बाद खाली पड़ी खेत में किसान गरमा धान लगाते हैं.
"ये गरमा धान है. ये तीन महीने में हो जाता है. जुलाई के मध्य में ये तैयार हो जाता है. इस धान का चूड़ा बेहतर होता है. इस धान की मांग पश्चिम बंगाल में ज्यादा है. इसलिए हम सभी किसान रोपे हैं और सभी किसानों को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं कि धान रोपें. ये खाली समय में होता है. इसकी अच्छी उपज भी है. एक बीघा में से 40 मन तक इसकी उपज होता है."- सीताराम सिंह, किसान, जगपुरा, मसौढ़ी