पटना: शारदीय नवरात्र (Sharadiya Navratri) में भक्त मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना करते हैं. नवमी के दिन माता की पूजा (Durga Puja) आराधना करने का अलग ही महत्व है. मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु वर्ष में दो बार 9 दिन का उपासना रखते हैं. पहला चैत्र नवरात्र के नाम से जाना जाता है, वहीं दूसरा आश्विन माह में किया जाता है. जिसको शारदीय नवरात्र कहा जाता है. इस वर्ष शारदीय नवरात्र की शुरुआत सात अक्टूबर को हुई. वहीं नवरात्र की समाप्ति 15 अक्टूबर को हो रही है.
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इस बार के शारदीय नवरात्र में मां का आगमन घोड़ा पर हुआ, जबकि उनकी विदायी गज यानि हाथी पर होगी. पटना के आचार्य रामाशंकर दुबे ने बताया कि नवरात्र पर्व में माता के 9वें दिन पूजा अनुष्ठान शुरू करने से पहले स्नान आदि करके साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर धरती माता, गुरुदेव, इष्टदेव को नमन करने के बाद गणेश जी का आवाहन करते हुए, षोडश मातृका, सप्त घृत मातृका, नवग्रह की पूजा करने के बाद माता की पूजा आरंभ करनी चाहिए. उन्होंने बताया कि माता दुर्गा की पूजा अर्चना के बाद मां सप्तशती का पाठ किया जाता है.
नवरात्र पर्व के अंतिम दिन मां भगवती के सिद्धिदात्री स्वरूप का पूजन किया जाता है. इस दिन हवन करने का बहुत बड़ा महत्व है. आचार्य ने बताया कि जब तक हवन नहीं किया जाएगा, तब तक उस पूजा में पूर्णता नहीं आएगी. हवन करने से यश की प्राप्ति होती है. मनवांछित फल मिलता है साथ ही पूजा अर्चना के दौरान जो गलती या त्रुटियां हुई है, वह हवन करने से दूर होती है. पूजा में खास करके हवन और आरती का बहुत ही महत्व है. अगर किसी प्रकार की त्रुटियां हो जाती हैं तो मां की आरती और हवन करने से मां उस गलती को क्षमा करती हैं.
नवरात्र के पाठ के उपरांत मां से क्षमा प्रार्थना भी की जाती है. आचार्य ने बताया कि हवन विधि करने का समय सुबह 9:00 बजे से लेकर 11:36 तक है. इसे अजीर्ण मुहूर्त कहा जाता है. हालांकि उन्होंने बताया कि भक्त नवमी के दिन संध्या 6:00 तक हवन कर सकते हैं. बता दें कि नवमी तिथि अष्टमी की शाम 7:42 मिनट में ही प्रवेश कर रहा है, लेकिन नवमी के दिन भी पूरे दिन भर नवमी तिथि रहेगी. उन्होंने बताया कि रात्रि के समय हवन नहीं होता है. नवमी के दिन मां सर्व सिद्धि के रूप में हैं.
आचार्य ने बताया कि जो श्रद्धालु अष्टमी के दिन कुंवारी कन्या और भैरव बाबा के रूप में बालक को भोजन नहीं करा पाए हैं, वह कुंवारी कन्या एक बालक को नवमी के दिन भोजन करा सकते हैं. आज के दिन भोजन कराना श्रेष्ठ माना जाता है. कुंवारी कन्या और भैरव बाबा को भोजन कराने से पूजा में पूर्णता आती है. यश की प्राप्ति होती है. उन्होंने बताया कि भोजन के उपरांत कुंवारी कन्या और भैरव बाबा को प्रणाम करें और उनको दक्षिणा के रूप में दान करें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें. इस तरह से पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. घर में सुख शांति बनी रहती है और मां जगजननी सभी मनुष्यों का कल्याण करती हैं.
बता दें कि बहुत सारे भक्त नवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को भोजन कराने के बाद अन्न ग्रहण कर लेते हैं. ऐसे में आचार्य ने बताया कि माता के नौ स्वरूपों की पूजन विधि 9 दिन की जाती है. ऐसे में जो भी भक्त मां सप्तशती का पाठ केवल फलाहार पर रहकर करते हैं. उनको दशमी के दिन ही भोजन करना चाहिए. उन्होंने कहा कि दसवीं के दिन ही नमक ग्रहण करना चाहिए. आचार्य रामाशंकर दुबे का कहना है कि नवमी के दिन हवन करने के बाद आप पूजा से मुक्ति नहीं पाएंगे.
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