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जानिए अंग्रेजी शासनकाल में बने इस जल इमारत का रहस्य, आज भी चमक है बरकरार... - अंग्रेजों के जमाने का पानी टावर

बिहार में यूरोपीय शैली की एक जल मीनार की चमक आज भी बरकरार है. इस जल मीनार को अंग्रेजों ने 1915 से 1918 के बीच पानी सप्लाई करने के लिए बनवाया था. क्या है इस जल मीनार की कहानी, पढ़िए

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यूरोपीय शैली को जल मीनार
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Published : Jan 8, 2022, 9:31 AM IST

Updated : Jan 8, 2022, 5:33 PM IST

पटना: बिहार की राजधानी पटना को ऐतिहासिक इमारतों का शहर भी कहा जाता है. ऐतिहासिक इमारत गौरवशाली अतीत की कहानी बयां करती हैं. लेकिन कई इमारतें ऐसी भी हैं जो आज भी पहेली बनी हुई है. उनमें से एक है यूरोपीय शैली का जल मीनार (European Style Water Tower in Patna) है, जिसके बारे में आज भी लोग नहीं जानते हैं.

इसे भी पढ़ें: इस योजना में कलाकार ने भरा रंग, निकल पड़ी 'नल-जल-एक्सप्रेस'

पटना हाईकोर्ट के पास स्थित यूरोपीय शैली के इस जल मीनार को अंग्रेजों ने 1915 से 18 के बीच राजधानी पटना शहर को बसाया था और तमाम दर्शनीय इमारत उसी समय बने थे. राजभवन विधानसभा हो या फिर उच्च न्यायालय भवन का निर्माण भी अंग्रेजों ने करवाया था. लुटियंस में सुचारू ढंग से वाटर सप्लाई हो इसके लिए भी योजना बनाई गई थी और यूरोपीय शैली के जल मीनार का निर्माण किया गया था.

ये भी पढ़ें: 225 करोड़ से बनने वाले जलापूर्ति योजना का रास्ता साफ, एक साल करना पड़ेगा इंतजार

जल मीनार से आज तारीख में पानी की सप्लाई नहीं होती, लेकिन 100 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी जल मीनार रूपी ऐतिहासिक इमारत की चमक और खूबसूरती आज भी बरकरार है. दरअसल इस अंग्रेजी वास्तुकला के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है. अंग्रेजी शासनकाल में आर्किटेक्ट मियूनिंग्स ने जल मीनार की आधारशिला रखीं थी. राजधानी दिल्ली, रांची और पटना में जल मीनार के निर्माण की योजना बनाई गई थी.

हाई कोर्ट के पास अवस्थित जल मीनार का निर्माण 1918 में पूरा कर लिया गया था. जल मीनार का उद्देश्य न्यू कैपिटल इलाकों को पानी की आपूर्ति करना था. शुरू में इसे बनाने वाले इंजीनियरों ने 50 फीट ऊंचे स्टील के जाली के ऊपर 1 लाख गैलन की क्षमता वाले गैलन को रखने की योजना बनाई थी. लेकिन बाद में मयूनिंग्स ने इसे कंक्रीट और ईटों से बने गुंबद आकार टावर बनाने के लिए राजी किया गुंबद का निर्माण स्टील और 3 इंच के ईटों से किया गया.

गुंबद के अंदर जो पीपा बना है वह 1 लाख गैलन पानी के लिए पर्याप्त है. छह गहरे बोरिंग के जरिए इसमें पानी का भंडारण किया जाता था. आपको बता दें कि इससे पहले मयूनिंग्स ने पुरी के हैजा अस्पताल के लिए जल मीनार तैयार किया था. वह 12 फीट ऊंचा अष्टकोणीय टावर है. इसे रिन्डफोर्सेड कंक्रीट लेटराइट से पकाई हुई हुई मिट्टी जो गर्म प्रदेशों में सड़कें बनाने के काम आती थी, उससे बनाया गया था. पानी का दबाव झेलने के लिए स्टील रॉड का प्रयोग किया गया था.

मयूनिंग्स ने दूसरे जल मीनार रांची के मानसिक आरोग्यशाला में बनवाया था. पहाड़ी पर होने की वजह से इसके डिजाइन पर विशेष ध्यान दिया गया और आसपास के ग्रामीण दृश्यों को देखने के लिए इसमें एक बालकनी को शामिल किया. एक 30 फीट ऊंचे जल मीनार को पत्थरों के आधार पर बनाया गया ईटों की दीवार में भी पत्थरों का प्रयोग किया गया. टावर में बनी बालकनी की छत पानी को ठंडा रखने में मदद करता है. इस जल मीनार में गुंबद नुमा छतरी का प्रयोग किया गया. इसके बालकनी तक पहुंचने के लिए घुमावदार सीढ़ी का भी प्रयोग किया गया है. रांची के बाद तीसरा जल मीनार का निर्माण पटना में ही कराया गया था.

शिवजी प्रसाद लंबे समय से जल मीनार की देखरेख कर रहे हैं. शिवजी प्रसाद के दादाजी भी जल मीनार का देखरेख करते थे. शिवजी प्रसाद ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि यह अंग्रेजों के शासनकाल में निर्मित हुआ था. एएन कॉलेज के पास निर्मित बोरिंग के जरिए जल मीनार में पानी भरा जाता था और मीनार के ऊपर लाल बत्ती लगी थी. जैसे-जैसे पानी भरता था वैसे लाल बत्ती का स्तर ऊपर होता रहता था पानी भर जाने पर लाल बत्ती दूर से ही दिखने लगता था. जिसके बाद लोग बोरिंग बंद कर देते थे. आज की तारीख में जल मीनार ऐतिहासिक इमारत में शुमार है. हालांकि इसकी देखरेख नहीं की जाती है. जिसकी वजह से स्थानीय लोगों को भी इस इमारत के बारे में बहुत कुछ जानकारी नहीं है.

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पटना: बिहार की राजधानी पटना को ऐतिहासिक इमारतों का शहर भी कहा जाता है. ऐतिहासिक इमारत गौरवशाली अतीत की कहानी बयां करती हैं. लेकिन कई इमारतें ऐसी भी हैं जो आज भी पहेली बनी हुई है. उनमें से एक है यूरोपीय शैली का जल मीनार (European Style Water Tower in Patna) है, जिसके बारे में आज भी लोग नहीं जानते हैं.

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पटना हाईकोर्ट के पास स्थित यूरोपीय शैली के इस जल मीनार को अंग्रेजों ने 1915 से 18 के बीच राजधानी पटना शहर को बसाया था और तमाम दर्शनीय इमारत उसी समय बने थे. राजभवन विधानसभा हो या फिर उच्च न्यायालय भवन का निर्माण भी अंग्रेजों ने करवाया था. लुटियंस में सुचारू ढंग से वाटर सप्लाई हो इसके लिए भी योजना बनाई गई थी और यूरोपीय शैली के जल मीनार का निर्माण किया गया था.

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जल मीनार से आज तारीख में पानी की सप्लाई नहीं होती, लेकिन 100 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी जल मीनार रूपी ऐतिहासिक इमारत की चमक और खूबसूरती आज भी बरकरार है. दरअसल इस अंग्रेजी वास्तुकला के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है. अंग्रेजी शासनकाल में आर्किटेक्ट मियूनिंग्स ने जल मीनार की आधारशिला रखीं थी. राजधानी दिल्ली, रांची और पटना में जल मीनार के निर्माण की योजना बनाई गई थी.

हाई कोर्ट के पास अवस्थित जल मीनार का निर्माण 1918 में पूरा कर लिया गया था. जल मीनार का उद्देश्य न्यू कैपिटल इलाकों को पानी की आपूर्ति करना था. शुरू में इसे बनाने वाले इंजीनियरों ने 50 फीट ऊंचे स्टील के जाली के ऊपर 1 लाख गैलन की क्षमता वाले गैलन को रखने की योजना बनाई थी. लेकिन बाद में मयूनिंग्स ने इसे कंक्रीट और ईटों से बने गुंबद आकार टावर बनाने के लिए राजी किया गुंबद का निर्माण स्टील और 3 इंच के ईटों से किया गया.

गुंबद के अंदर जो पीपा बना है वह 1 लाख गैलन पानी के लिए पर्याप्त है. छह गहरे बोरिंग के जरिए इसमें पानी का भंडारण किया जाता था. आपको बता दें कि इससे पहले मयूनिंग्स ने पुरी के हैजा अस्पताल के लिए जल मीनार तैयार किया था. वह 12 फीट ऊंचा अष्टकोणीय टावर है. इसे रिन्डफोर्सेड कंक्रीट लेटराइट से पकाई हुई हुई मिट्टी जो गर्म प्रदेशों में सड़कें बनाने के काम आती थी, उससे बनाया गया था. पानी का दबाव झेलने के लिए स्टील रॉड का प्रयोग किया गया था.

मयूनिंग्स ने दूसरे जल मीनार रांची के मानसिक आरोग्यशाला में बनवाया था. पहाड़ी पर होने की वजह से इसके डिजाइन पर विशेष ध्यान दिया गया और आसपास के ग्रामीण दृश्यों को देखने के लिए इसमें एक बालकनी को शामिल किया. एक 30 फीट ऊंचे जल मीनार को पत्थरों के आधार पर बनाया गया ईटों की दीवार में भी पत्थरों का प्रयोग किया गया. टावर में बनी बालकनी की छत पानी को ठंडा रखने में मदद करता है. इस जल मीनार में गुंबद नुमा छतरी का प्रयोग किया गया. इसके बालकनी तक पहुंचने के लिए घुमावदार सीढ़ी का भी प्रयोग किया गया है. रांची के बाद तीसरा जल मीनार का निर्माण पटना में ही कराया गया था.

शिवजी प्रसाद लंबे समय से जल मीनार की देखरेख कर रहे हैं. शिवजी प्रसाद के दादाजी भी जल मीनार का देखरेख करते थे. शिवजी प्रसाद ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि यह अंग्रेजों के शासनकाल में निर्मित हुआ था. एएन कॉलेज के पास निर्मित बोरिंग के जरिए जल मीनार में पानी भरा जाता था और मीनार के ऊपर लाल बत्ती लगी थी. जैसे-जैसे पानी भरता था वैसे लाल बत्ती का स्तर ऊपर होता रहता था पानी भर जाने पर लाल बत्ती दूर से ही दिखने लगता था. जिसके बाद लोग बोरिंग बंद कर देते थे. आज की तारीख में जल मीनार ऐतिहासिक इमारत में शुमार है. हालांकि इसकी देखरेख नहीं की जाती है. जिसकी वजह से स्थानीय लोगों को भी इस इमारत के बारे में बहुत कुछ जानकारी नहीं है.

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Last Updated : Jan 8, 2022, 5:33 PM IST
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