पटना: बिहार में नियोजित शिक्षकों की लंबे समय से मांग रही है कि उन्हें राज्य कर्मी का दर्जा दिया जाए. 2020 विधानसभा चुनाव के समय महागठबंधन ने अपने साझा घोषणापत्र में वादा किया कि सरकार बनने पर नियोजित शिक्षकों को सीधे राज्य कर्मी का दर्जा दिया जाएगा. प्रदेश में महागठबंधन की सरकार है और शिक्षा मंत्री भी राजद से हैं. हाल ही में नई शिक्षक नियमावली जारी (New Teacher Manual) हुई है. इसके तहत नियोजित शिक्षकों को राज्य कर्मी का दर्जा पाने के लिए बीपीएससी की परीक्षा से गुजरना होगा और परीक्षा पास करना होगा.
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शिक्षक नियमावली का विरोध: सरकार के इस नियमावली का नियोजित शिक्षकों का संघ पुरजोर विरोध कर रहा है. नियोजित शिक्षकों का कहना है कि अब वह किसी विधायक या राजनेता के नेतृत्व में अपनी लड़ाई नहीं लड़ेंगे बल्कि अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगे और सरकार को अल्टीमेटम देते हैं कि जल्द उन्हें राज्य कर्मी का दर्जा दे, नहीं तो आने वाले दिनों में स्कूलों में पठन-पाठन बाधित होगा. दरअसल नई शिक्षक नियमावली के बाद ही नियोजित शिक्षकों ने नियमावली को लेकर विरोध शुरू कर दिया. जातिगत गणना का दूसरा चरण शुरू होना था, जिसमें शिक्षकों को लगाया गया और शिक्षक जाति गणना में शामिल नहीं हो रहे थे.
माले विधायक ने शिक्षक संघों को समझाया: नियोजित शिक्षकों के संघ भाकपा माले विधायक संदीप सौरव के सरकारी आवास पर एकत्रित हुए. विधायक ने उन्हें समझाया कि इस प्रकार अभी विरोध जायज नहीं है. उनकी लड़ाई लड़ी जाएगी. नियोजित शिक्षक जनगणना कार्य में जुट गए लेकिन अब उन्हें उनकी लड़ाई आगे जाती हुई नजर नहीं आ रही है. जिसके बाद एक बार फिर से नियोजित शिक्षक आक्रोशित हो गए हैं और अपनी लड़ाई का समन्वयक विधायक संदीप सौरव को मानने से इंकार कर दिए हैं. ऐसे में नियोजित शिक्षकों में भी दो गुट बट गया है. एक जो विधायक के नेतृत्व में अपनी लड़ाई जारी रखना चाहते हैं और दूसरा गुट है, जो अपने शिक्षक संघ और शिक्षकों के बलबूते हीं अपनी आगे की लड़ाई लड़ना चाहते हैं, जो किसी भी राजनेता का आंदोलन में हस्तक्षेप नहीं चाहता.
दो गुट में बंटा शिक्षक संघ: टीईटी शिक्षक संघ के अध्यक्ष अमित विक्रम ने बताया कि उन लोगों ने और कई शिक्षक संघों ने विधायक संदीप सौरभ के नेतृत्व में आंदोलन जारी रखने से इनकार कर दिया है. उन्होंने बताया कि विधायक संदीप सौरभ सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहे हैं और उनके आंदोलन को कमजोर कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नियमावली के आपत्तिजनक नियमों के विरोध में आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने को लेकर के 23 अप्रैल को बैठक होने वाली थी. जिसे विधायक ने नहीं होने दिया. इसके बाद 27 अप्रैल को बैठक प्रस्तावित थी, जिसे उन्होंने रद्द कर दिया और 30 अप्रैल को जो महासम्मेलन होना प्रस्तावित था, उसे भी रद्द कर दिया. उन्होंने कहा कि विधायक संदीप सौरभ बहला- फुसलाकर जाति गणना कार्य का विरोध कर रहे शिक्षकों को गणना कार्य करने के लिए मना लिया.
"अगर विधायक संदीप सौरभ को सही में शिक्षकों की चिंता है और शिक्षकों की मांगों के साथ खड़े हैं, तो सरकार के साथ क्यों खड़े हैं. यह एक साथ नहीं चल सकता कि शिक्षकों के विरोध में निर्णय लेने वाली सरकार को भी समर्थन दें और शिक्षकों के आंदोलन में भी शिक्षकों के साथ रहे. सरकार से अपना समर्थन वापस लें और फिर शिक्षकों के साथ उनके आंदोलन में शामिल हों, ऐसा करेंगे तो सभी शिक्षक संघ आंदोलन का नेतृत्व विधायक संदीप सौरभ को दे देंगे. लेकिन यह की सरकार में साथ रहेंगे. सरकार को समर्थन देंगे और फिर शिक्षकों के आंदोलन में सरकार के खिलाफ भी रहेंगे, यह एक साथ नहीं चलेगा."- अमित विक्रम, अध्यक्ष, टीईटी शिक्षक संघ
जनता के साथ है भाकपा माले: भाकपा माले विधायक संदीप सौरभ ने कहा कि भाकपा माले जन आंदोलनों की पार्टी रही है और जनता की जो कुछ भी मुद्दे हैं. उसको लेकर शुरू से आवाज उठाती रही है. चाहे सरकार में हैं या सरकार में नहीं हैं. इससे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता. बल्कि उनकी पार्टी जनता के मुद्दों को लेकर हमेशा सरकार से सवाल पूछने का काम करती है और इन मुद्दों पर आंदोलन के लिए तैयार रहती है. विधायक संदीप सौरभ ने कहा कि नई शिक्षा नियमावली में नियोजित शिक्षकों को राज्य कर्मी का दर्जा देने के लिए बीपीएससी परीक्षा पास करने का जो क्लॉज जोड़ा गया है, वह शिक्षकों के सम्मान के खिलाफ है.
"हमारा सीधा मानना है कि महागठबंधन के घोषणा पत्र में था कि सरकार बनते ही सीधे राज्य कर्मी का दर्जा नियोजित शिक्षकों को दिया जाएगा. ऐसे में अब इसमें अलग से शर्त लगाने की कोई बात ही नहीं थी. इसका हम विरोध करते हैं. सरकार यदि कह रही है कि शिक्षकों की गुणवत्ता जांचने के लिए बीपीएससी परीक्षा होगी तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बताएं कि उन्हीं के कार्यकाल में नियोजित शिक्षकों ने ज्वाइन किया है और क्या जब वह विद्यालय ज्वाइन किए तब वह गुणवत्ता वाले नहीं थे और यदि नहीं थे तो उस समय क्यों विद्यालय ज्वाइन करने दिया गया. बीपीएससी परीक्षा में जो फेल होंगे वह भी विद्यालय में शिक्षक बने रहेंगे जो पास करेंगे वह भी शिक्षक बने रहेंगे. ऐसे में इससे सरकारी विद्यालय की छवि खराब होगी और स्कूल के बच्चे ही कहेंगे कि आज फलाना मास्टर साहब का क्लास है. वही मास्टर साहब जो फेल किए थे. सरकार का यह निर्णय विद्यालय के लोकतंत्र को खत्म करने वाला निर्णय है. इसका तमाम नियोजित शिक्षक संघ विरोध कर रहे हैं और हम उन्हें अपना समर्थन दे रहे हैं."- संदीप सौरभ, विधायक, भाकपा माले
बीपीएससी की परीक्षा सरासर गलत: विधायक संदीप सौरभ ने कहा कि सभी नियोजित शिक्षक एक सुर में राज्य कर्मी बनने के लिए दोबारा परीक्षा देने के खिलाफ हैं और आंदोलन करने के लिए भी तैयार हैं. सरकार जल्द इस पर निर्णय नहीं लेती है और बिना शर्त उन्हें राज्य कर्मी का दर्जा नहीं देती है तो आने वाले दिनों में प्रदेश में एक बड़ा आंदोलन होगा. जिसमें सभी नियोजित शिक्षक शामिल होंगे और उनकी पार्टी का पूरा समर्थन होगा. नियोजित शिक्षकों के लिए बीपीएससी परीक्षा सरासर गलत है. क्योंकि यह शिक्षक पहली से पांचवी कक्षा के बच्चों को विगत 10 से 15 वर्षों से पढ़ा रहे हैं और कंपटीशन की तैयारी करने का लय इनमें नहीं है.
"कुछ दिनों पूर्व मुख्यमंत्री से मिलकर 5 सूत्री सलाह का ज्ञापन सौंपा है. जिससें विद्यालय में गुणवत्तापूर्ण शिक्षक मिले. हमने सलाह दिया है कि सभी शिक्षकों को सीधे राज्य कर्मी का दर्जा देते हुए उनकी गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए स्पेशल ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाया जाए. शिक्षकों से किसी भी प्रकार का कोई भी गैर शैक्षणिक कार्य नहीं कराया जाए. सरकार जो राज्य कर्मी शिक्षक को सम्मानजनक वेतन तय की हुई है, वह वेतन शिक्षकों को मिले. बेहतर काम करने वाले शिक्षकों के लिए प्रोत्साहन योजना तैयार किए जाएं. जिससे बेहतर शिक्षक प्रोत्साहित किए जाए और विद्यालयों में शिक्षा की हालात शिक्षकों की उपस्थिति इत्यादी पता करने के लिए जो जांच दल है, उसकी पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए. ताकि कहीं भी विद्यालय में जांच में कुछ गड़बड़ पाया जाए. जांच दल की रिपोर्ट पर उस पर एक्शन होना की जांच दल वही मामले को कंप्रोमाइज कर ले."- संदीप सौरभ, विधायक, भाकपा माले