पटना: कृषि कानून वापस लिए जाने के बाद से बिहार में मंडी व्यवस्था (Market system in Bihar) को लेकर विमर्श शुरू हुआ था. बिहार जैसे राज्यों में भी बाजार समिति व्यवस्था को फिर से लागू करने की मांग उठने लगी थी. महागठबंधन की सरकार बनने के बाद कृषि मंत्री सुधाकर सिंह (Sudhakar Singh controversy) ने मंडी व्यवस्था के पक्ष में आवाज भी बुलंद किया था. इसी बीच सुधाकर सिंह ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
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बाजार समिति व्यवस्था के पक्ष में विशेषज्ञ: बिहार की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है. कृषि के विकास को लेकर सरकार गंभीर है. तीन कृषि रोड मैप सरकार द्वारा लाए गए, करोड़ों रुपए खर्च भी हुए लेकिन उसका वास्तविक लाभ किसानों को नहीं मिला. नतीजतन किसानों की आय में वृद्धि अपेक्षित नहीं हुई और लोग दूसरे व्यवसाय की ओर मुखातिब हुए.
2005 में बिहार की सत्ता में आए नीतीश: नीतीश कुमार 2005 में बिहार की सत्ता में काबिज हुए. सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार कृषि के क्षेत्र में व्यापक सुधार के लिए एपीएमसी एक्ट को 2006 को समाप्त कर दिया. किसानों के बेहतरी के लिए पैक्स व्यवस्था लागू किया गया. बाजार समिति के बजाय किसान अपने उत्पाद पैक्स को देने लगे. 2006 से पहले बिहार में कुल 95 हजार समितियां थी, जिसमें 53 हजार समितियों के पास अपना यार्ड था. किसान अपने उत्पाद बाजार समिति में बेचते थे. किसानों को बाजार समिति में ही न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल जाता था. उसके बदले में किसानों को 1 प्रतिशत का कर देना होता था.
वर्तमान में पैक्स के जरिए होती है खरीदी: बिहार के गांव में कार्यरत 8483 पैक्स है. पैक्स के जरिए किसानों के अनाज की खरीद होती है. बिहार के हर पंचायत में पैक्स की व्यवस्था है. किसानों को पहले पैक्स को यह सूचना देनी होती है की कितनी भूमि पर वह बुवाई कर रहे हैं और प्रति एकड़ 15 क्विंटल के हिसाब से पैक्स उनके अनाज खरीदी है. चुनाव के जरिए पैक्स के अध्यक्ष चुने जाते हैं और अध्यक्ष के जरिए ही कार्य का संचालन होता है.
सुधाकर सिंह ने दिए थे बदलाव के संकेत: बाजार समिति व्यवस्था समाप्त करने के बाद बिहार सरकार ने पैक्स की व्यवस्था लागू की. प्रति हेक्टेयर अनाज के उत्पादन में वृद्धि तो हुए लेकिन किसानों की आय में अपेक्षित वृद्धि नहीं हुई. शपथ लेने के बाद कृषि मंत्री के तौर पर सुधाकर सिंह ने कई क्रांतिकारी बदलाव के संकेत दिए. सुधाकर सिंह ने कहा कि वो मंडी व्यवस्था को फिर से लागू करने जा रहे हैं.
किसानों के लिए बाजार की व्यवस्था: सुधाकर सिंह ने कहा था कि चौथे कृषि रोड मैप में वो किसानों के लिए बाजार की व्यवस्था करने जा रहे हैं. उन्होंने कहा था कि वो आंकड़ों के जरिए नहीं, बजटट्री सपोर्ट के जरिए नहीं, नीतियां में बदलाव के जरिए कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाएंगे. मंडी व्यवस्था लागू कर हम किसानों को सशक्त करेंगे. कृषि विभाग के 12 सहयोगी विभाग की कार्य प्रणाली को दुरुस्त करेंगे. 2011-12 में खाद्यान्न का उत्पादन एक करोड़ 76 लाख टन और 2021-22 में एक करोड़ 76 लाख टन उत्पादन रह गया. मंडी व्यवस्था को लेकर नीतीश कुमार पशोपेश में थे.
"सुधाकर सिंह का भले ही इस्तीफा हो गया लेकिन उन्होंने जो मुद्दे उठाए थे, उस पर विमर्श होना चाहिए. बिहार में किसानों को ना तो उन्नत बीज मिल पा रहा है ना ही समय पर खाद की उपलब्धता हो पाती है. अपने उत्पादन को बेचने के लिए किसानों को भी पैक्स में जटिल प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है और उन्हें अनाज बेचने के बाद पैसे भी 6 महीने बाद मिलते हैं."- डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
"किसानों के आय में वृद्धि नहीं हुई है. मंडी व्यवस्था लागू होने से किसानों को विकल्प मिलेगा. धान और गेहूं के अलावा दूसरे अनाज भी किसान बाजार समिति में बेच पाएंगे और उन्हें अपने उत्पाद का पैसा तुरंत मिल पाएगा. हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश में मंडी व्यवस्था लागू है, वहां के किसानों की स्थिति बेहतर है."- डॉ विद्यार्थी विकास, अर्थशास्त्री
"सरकार ने वर्तमान में जो व्यवस्था लागू किया है, इससे किसानों को लाभ मिल रहा है, लेकिन किसानों को अगर विकल्प मिलेंगे और बाहर की उपलब्धता होगी तो किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल पाएगा और उनकी आय में भी वृद्धि होगी."- डॉ अमित बक्सी, अर्थशास्त्री
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