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Patna News: पटना एम्स के डॉक्टरों की पहल, स्लम बस्ती के बच्चों को दे रहे शिक्षा का डोज

बिहार के पटना एम्स के बाहर डॉक्टरों की पाठशाला लगती है. पटना एम्स में काम करने वाले डॉक्टर और नर्सिंग की छात्राएं स्लम बस्तियों के बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं. इस दौरान सैकड़ों बच्चों की भीड़ लगती है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Feb 6, 2023, 9:16 PM IST

पटना एम्स के बाहर डॉक्टरों की पाठशाला

पटना: धरती पर भगवान हैं तो वे डॉक्टर हैं. जिनके पास हर मर्ज की दवा होती है. इसका उदाहरण बिहार की राजधानी पटना में देखने को मिला. पटना एम्स (Patna AIIMS) में इलाज करने वाले डॉक्टर और नर्स बच्चों को शिक्षा का डोज दे रहे हैं. हर रोज एम्स के बाहर पार्क में डॉक्टरों की पाठशाला लगती है, जहां सैकड़ों बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं. सभी बच्चे स्लम बस्ती से आते हैं, जिनके परिजन मजदूरी कर जीवन यापन करते हैं. पटना एम्स के डॉक्टरों की यह पहल की हर ओर चर्चा हो रही है.

यह भी पढ़ेंः Adani Congress Protest: अखिलेश सिंह बोले- 'पहले वाजपेयी और अब मोदी सरकार देश को बेच रही'

हर रोज बच्चों के लिए क्लास लगतीः एम्स पटना में हर रोज बच्चों के लिए क्लास लगती है. इन बच्चों को पढ़ाने के लिए एम्स पटना के नर्सिंग के छात्र और डॉक्टर पढ़ाते हैं. एम्स के बाहर हर रोज बच्चों की भीड़ लगती है. डॉक्टर अपनी ड्यूटी के बाद यहां बच्चों को पढ़ाने के लिए आते हैं. नर्सिंग छात्राएं की क्लास खत्म होने के बाद वे भी बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं. यह सिलसिला करीब एक साल से चल रही है. डॉकटरों की पाठशाला में ऐसे बच्चे पढ़ने आते हैं जो जिनके माता-पिता को पढ़ाने के लिए पैसे नहीं है. जहां सरकार को मदद की जरूरत है, वहां डॉक्टर शिक्षा का डोज दे रहे हैं.

एक साल पहले शुरुआतः एम्स पटना के सीनियर फिजिशियन डॉ रमन ने कहा कि इसकी नींव एक साल पहले रखी गई थी. तब नर्सिंग की एक छात्रा शिवानी ने इन बच्चों को पढ़ाना की शुरू की थी. यह शुरुआत भी कुछ इस तरीके से हुई थी, जब एम्स में कार्य प्रगति पर था, उस समय कुछ ऐसे भी मजदूर थे जो यहां काम कर रहे थे. लेकिन अपने बच्चों को शिक्षा दिला पाने में सक्षम नहीं हो पा रहे थे. तब माता-पिता के साथ उनके बच्चे भी चले आते थे. इसी दौरान हमलोगों ने पढ़ाने का काम शुरू किया.

दो-तीन बच्चों से शुरुआतः शिवानी ने जब शुरुआत की थी, उस वक्त दो या तीन बच्चे पढ़ने के लिए आते थे. धीरे-धीरे इन बच्चों में पढ़ने की ललक बढ़ती गई. साथ ही साथ इनके माता-पिता को भी पता चला कि यहां डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के द्वारा फ्री में शिक्षा दी जा रही है तो उन्होंने भी इसके प्रति अपना उत्साह दिखाया. लोगों ने अपने बच्चों को हमारे पास भेजना शुरू किया. दो-तीन बच्चों से हुई शुरुआत मुहिम अब रंग ला रही है. आज यहां करीब 35 से 40 बच्चे हर रोज पढ़ने के लिए चले आते हैं.

दो घंटे तक चलती है क्लासः नर्सिंग की छात्रा रोशनी बताती हैं कि जितने भी बच्चे हैं, वह हर रोज शाम चार बजे तक एम्स पटना के अंदर बने पार्क में एकत्र हो जाते हैं. बच्चों को आने के लिए कोई रोकता भी नहीं है. चार बजे के बाद जब नर्सिंग के छात्र अपनी स्टडी को पूरा कर लेते हैं तो वह सीधा इन बच्चों के पास ही चले जाते हैं. तकरीबन दो घंटे तक इन बच्चों को शिक्षा देते हैं. बच्चों को मैथ, हिंदी, इंग्लिश के साथ ही गिनती, पहाड़ा पढ़ाते हैं. बच्चों की पढ़ाई के लिए जो भी जरूरी चीजें होती हैं, जिनमें कलम, किताब, कॉपी, पेंसिल, इरेजर, शार्पनर है, वह हम सब आपस में ही सहयोग करके खरीद लेते हैं. इसके बाद सभी बच्चों को उपलब्ध कराते हैं.

"इन बच्चों में पढ़ने की ललक बहुत ही ज्यादा है. कभी आने में देर भी हो जाती है तो ये बच्चे समय से आ जाते हैं. शिक्षा का महत्व क्या है यह भी हम लोग जानते हैं. इसे हमारे सीनियर ने शुरू किया था. वे पास आउट हो चुके हैं तो अब हमलोग इन बच्चों को पढ़ा रहे हैं. हमारे एग्जाम भी आते हैं तो हम लोग फिर भी कोशिश करते हैं कि बच्चों को पढ़ाएं." -रोशनी, नर्सिंग स्टूडेंट

पटना एम्स के बाहर डॉक्टरों की पाठशाला

पटना: धरती पर भगवान हैं तो वे डॉक्टर हैं. जिनके पास हर मर्ज की दवा होती है. इसका उदाहरण बिहार की राजधानी पटना में देखने को मिला. पटना एम्स (Patna AIIMS) में इलाज करने वाले डॉक्टर और नर्स बच्चों को शिक्षा का डोज दे रहे हैं. हर रोज एम्स के बाहर पार्क में डॉक्टरों की पाठशाला लगती है, जहां सैकड़ों बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं. सभी बच्चे स्लम बस्ती से आते हैं, जिनके परिजन मजदूरी कर जीवन यापन करते हैं. पटना एम्स के डॉक्टरों की यह पहल की हर ओर चर्चा हो रही है.

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हर रोज बच्चों के लिए क्लास लगतीः एम्स पटना में हर रोज बच्चों के लिए क्लास लगती है. इन बच्चों को पढ़ाने के लिए एम्स पटना के नर्सिंग के छात्र और डॉक्टर पढ़ाते हैं. एम्स के बाहर हर रोज बच्चों की भीड़ लगती है. डॉक्टर अपनी ड्यूटी के बाद यहां बच्चों को पढ़ाने के लिए आते हैं. नर्सिंग छात्राएं की क्लास खत्म होने के बाद वे भी बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं. यह सिलसिला करीब एक साल से चल रही है. डॉकटरों की पाठशाला में ऐसे बच्चे पढ़ने आते हैं जो जिनके माता-पिता को पढ़ाने के लिए पैसे नहीं है. जहां सरकार को मदद की जरूरत है, वहां डॉक्टर शिक्षा का डोज दे रहे हैं.

एक साल पहले शुरुआतः एम्स पटना के सीनियर फिजिशियन डॉ रमन ने कहा कि इसकी नींव एक साल पहले रखी गई थी. तब नर्सिंग की एक छात्रा शिवानी ने इन बच्चों को पढ़ाना की शुरू की थी. यह शुरुआत भी कुछ इस तरीके से हुई थी, जब एम्स में कार्य प्रगति पर था, उस समय कुछ ऐसे भी मजदूर थे जो यहां काम कर रहे थे. लेकिन अपने बच्चों को शिक्षा दिला पाने में सक्षम नहीं हो पा रहे थे. तब माता-पिता के साथ उनके बच्चे भी चले आते थे. इसी दौरान हमलोगों ने पढ़ाने का काम शुरू किया.

दो-तीन बच्चों से शुरुआतः शिवानी ने जब शुरुआत की थी, उस वक्त दो या तीन बच्चे पढ़ने के लिए आते थे. धीरे-धीरे इन बच्चों में पढ़ने की ललक बढ़ती गई. साथ ही साथ इनके माता-पिता को भी पता चला कि यहां डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के द्वारा फ्री में शिक्षा दी जा रही है तो उन्होंने भी इसके प्रति अपना उत्साह दिखाया. लोगों ने अपने बच्चों को हमारे पास भेजना शुरू किया. दो-तीन बच्चों से हुई शुरुआत मुहिम अब रंग ला रही है. आज यहां करीब 35 से 40 बच्चे हर रोज पढ़ने के लिए चले आते हैं.

दो घंटे तक चलती है क्लासः नर्सिंग की छात्रा रोशनी बताती हैं कि जितने भी बच्चे हैं, वह हर रोज शाम चार बजे तक एम्स पटना के अंदर बने पार्क में एकत्र हो जाते हैं. बच्चों को आने के लिए कोई रोकता भी नहीं है. चार बजे के बाद जब नर्सिंग के छात्र अपनी स्टडी को पूरा कर लेते हैं तो वह सीधा इन बच्चों के पास ही चले जाते हैं. तकरीबन दो घंटे तक इन बच्चों को शिक्षा देते हैं. बच्चों को मैथ, हिंदी, इंग्लिश के साथ ही गिनती, पहाड़ा पढ़ाते हैं. बच्चों की पढ़ाई के लिए जो भी जरूरी चीजें होती हैं, जिनमें कलम, किताब, कॉपी, पेंसिल, इरेजर, शार्पनर है, वह हम सब आपस में ही सहयोग करके खरीद लेते हैं. इसके बाद सभी बच्चों को उपलब्ध कराते हैं.

"इन बच्चों में पढ़ने की ललक बहुत ही ज्यादा है. कभी आने में देर भी हो जाती है तो ये बच्चे समय से आ जाते हैं. शिक्षा का महत्व क्या है यह भी हम लोग जानते हैं. इसे हमारे सीनियर ने शुरू किया था. वे पास आउट हो चुके हैं तो अब हमलोग इन बच्चों को पढ़ा रहे हैं. हमारे एग्जाम भी आते हैं तो हम लोग फिर भी कोशिश करते हैं कि बच्चों को पढ़ाएं." -रोशनी, नर्सिंग स्टूडेंट

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