पटना: प्रकाश का पर्व दिवाली (Festival Of Light) की अलग ही रौनक होती है. चाहे जितना भी घना अंधेरा हो, एक दीपक उस घने अंधेरे को दूर कर देता है. कुछ ऐसी भी महिलाएं हैं, जो अपनी इच्छाशक्ति के दम पर प्रकाश पर्व दिवाली (Diwali festival 2022) की तैयारी कर रही हैं ताकि इस दिवाली दूसरों के घरों को रोशन कर सके. दरअसल हाफ वे होम पटना में रहने वाली महिलाएं मिट्टी का दीया पर अपनी कलाकारी को बखूबी पेश कर रही हैं. डिजाइनदार दीया बना रही हैं ताकि दिवाली में घरों को रोशन किया जा सके.
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मानसिक रूप से कमजोर हैं महिलाएंः खास बात यह है कि यह सभी महिलाएं अनाथ है और बिहार के अलावा देश के दूसरे राज्यों से भी ताल्लुक रखती हैं. यह सभी महिलाएं मानसिक रूप से कमजोर है और इनकी याददाश्त उतनी मजबूत नहीं है कि यह अपने गुजरे हुए जीवन को याद कर सके पर इच्छाशक्ति इतनी तगड़ी है कि वह मिट्टी के दीया पर कलाकारी जैसे बारीक कार्य को बखूबी कर ले रही हैं.
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दीया को पैकिंग कर बाजार में उतारा जाएगाः महिलाओं के बनाए गए मिट्टी के डिजाइनदार दीये (designer diyas for diwali decoration) पहली बार पटना बाजार में उतारे जा रहे हैं। हाफ-वे-होम की सुपरिटेंडेंट खुशबू बताती हैं कि इन महिलाओं के साथ बैठ दीया बनाकर दिखाना होता है. वह बहुत गौर से इन चीजों को देखती हैं फिर बनाती हैं. सोशल वर्कर मनोज कहते हैं, इस ग्रुप का नाम मेंटल इल क्योर है. यह वैसी महिलाएं हैं जो मेडिकल फिट हो चुकी हैं. यह अपने घर का पता भी सही तरीके से नहीं बता पाती हैं. इन सभी को दीया पर कलाकारी करने का काम दिया गया है. सभी को पेंटिंग सिखाई गई. तैयार किए गए दीया को पैकिंग के साथ बाजार में उतारा जाएगा.
अस्पताल से नहीं ले जाते परिजनः दरअसल इन महिलाओं का इलाज भोजपुर के कोइलवर मेंटल हॉस्पिटल में हो चुका है. डॉक्टर की नजर में यह फिट है लेकिन समाज की नजर में यह अभी भी कमजोर है. हाफ वे होम के अधिकारी बताते हैं कि मानसिक रूप से ऐसी कमजोर महिलाओं को परिवार वाले या फिर समाज के अन्य लोग हॉस्पिटल में एडमिट करा देते हैं. इनके ठीक हो जाने के बाद भी परिवार वाले घर नहीं ले जाते तो विभागीय स्तर पर इन्हें यहां रख दिया जाता है.
एनजीओ करता है मददः इस कार्य में समाज कल्याण विभाग द्वारा वित्त पोषित एनजीओ कर्पूरी ठाकुर ग्रामीण विकास संस्थान (Karpoori Thakur Institute of Rural Development) मदद करती है. विभागीय स्तर पर ही इन महिलाओं के रहने खाने और सामाजिक रूप से मजबूत किए जाने की पहल की जाती है.
"सभी को पहले दीया बनाना सिखाया गया है. बनाए गए दीये को पैकिंग के साथ बाजार में उतारा जाएगा. जो इससे आमदनी होगा उसे इन महिलाओं के कल्यान में लगाया जाएगा." -मनोज कुमार, सोशल वर्कर, पटना