पटना(मसौढ़ी): शिक्षक वो होते हैं, जो बच्चों को शिक्षा के आसमान में उड़ने के लिए पंख (Teachers Day 2022) देते हैं. शिक्षक ही देश के भविष्य यानी बच्चों को दिशा देते हैं. राजधानी पटना से करीब 45 किमी दूर धनरूआ प्रखंड में दो शिक्षक यह काम पिछले 35 वर्षों से निशुल्क कर रहे हैं. बरबीघा गांव के दिव्यांग शिक्षक गुलेश्वर प्रसाद (Divyang Teacher Guleshwar Prasad) और नदपुरा गांव की महादलित परिवार की शिक्षिका कांति कुमारी गरीब परिवार के बच्चों को ना सिर्फ शिक्षित बना रहे, बल्कि राष्ट्र के निर्माण में भी अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं.
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दो पैर से दिव्यांग हैं गुलेश्वर: बरबीघा गांव के गुलेश्वर प्रसाद दोनों पैर से दिव्यांग है. वे पिछले 35 सालों से गांव के बच्चों के बीच शिक्षा का अलख जगा रहे हैं. गुलेश्वर प्रसाद की मानें तो गांव में स्कूल नहीं होने के कारण कई बच्चे अनपढ़ रह जाते थे. जिसे देखकर उन्होंने काफी दुख होता था. ऐसे में उन्होंने गरीब परिवार के बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया. वे कहते है कि किसी तरह से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद मन में ठान लिया कि गांव के हर बच्चों को पढ़ाएंगे. पिछले 35 साल से वह शिक्षा की अलख जगा रहे हैं.
महादलित परिवार की बेटी हैं कांति: वहीं धनरूआ प्रखंड के नदपूरा गांव की कांति कुमारी महादलित परिवार से आती हैं. वे महादलित बस्ती में बच्चों के बीच शिक्षा का अलख जगा रही हैं. वह भी बिना एक पैसा लिए हुए. कांति कुमारी बताती है कि जैसे-तैसे करके हम इंटर तक पढ़ाई पूरी किए थे. गांव में आज भी महिला और बच्चों में शिक्षा का अभाव है. ऐसे में अब इन लोगों को हम पढ़ाकर शिक्षित बना रहे. उसके बदले में कोई चावल देता है तो कोई आटा. उसी के सहारे मेरा घर चलता है. वे कहती है कि शिक्षा के बिना जीवन काफी मुश्किल हो जाता है.
आटा-चावल लेकर चलाते हैं घर: दोनों शिक्षक बच्चों को पढ़ाने के बदले कोई पैसा नहीं लेते. लेकिन इसके बदले बच्चों के माता-पिता उनको आटा-चावल दे देते हैं. इसी से दोनों शिक्षक अपना गुजरा करते हैं. बता दें कि सोमवार को शिक्षक दिवस है. यह दिन शिक्षकों के सम्मान में मनाया जाता है. इस दिन सभी छात्र अपने शिक्षकों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं और उन्हें कई उपहार भी देते हैं. शिक्षक दिवस मुख्य रुप से देश के दूसरे राष्ट्रपति और एक महान शिक्षक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन पर मनाया जाता है. राधाकृष्णन दर्शनशास्त्र के विद्वान थे. उन्होंने भारतीय संस्कृति, परंपरा और दर्शनशास्त्र का गहन अध्ययन किया था.
"मेरा नाम गुलेश्वर प्रसाद है. मेरा गांव गरीब है, जिस कारण बच्चों में शिक्षा का अभाव है. मैंने स्नातक तक की पढ़ाई की है. ऐसे में मैंने बीड़ा उठाया है कि बच्चों को शिक्षित बना जाए. मेरी सरकार से मांग है कि गरीब को राहत दी जाए" - गुलेश्वर प्रसाद, शिक्षक