पटना: बिहार सरकार शिक्षा (Education System In Bihar) पर बजट का सबसे बड़ा हिस्सा खर्च करती है. सरकार की ओर से शिक्षा व्यवस्था को लेकर लंबे चौड़े दावे भी किए जाते हैं. लेकिन शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार की कथनी और करनी में काफी (Bad Condition Of Bihar Education System) फर्क है. बिहार विधानसभा में दो-तीन साल पहले दिए गए आश्वासनों का भी क्रियान्वयन नहीं हो सका है, नतीजतन आंदोलनों का दौर जारी है.
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शिक्षा पर 39 हजार करोड़ का बजट: बिहार सरकार ने वर्ष 2022-23 के लिए शिक्षा पर कुल 39191 करोड़ रुपये का बजट पेश किया. इतनी बड़ी राशि खर्च करने के बाद भी ना तो शिक्षकों और छात्रों का अनुपात सही हो पाया और ना ही छात्रों का आंदोलन थमने का नाम ले रहा. बिहार विधानसभा सत्रों के दौरान शिक्षकों के मसले पर कई वायदे किए गए, जो सालों से अधर में लगते हैं. सरकार के वादाखिलाफी से शिक्षक और अभ्यर्थी लगातार आंदोलनरत हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सभाओं में भी विरोध का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है. मुजफ्फरपुर में हुए सीएम की सभा में सीटीईटी अभ्यर्थियों ने जमकर हंगामा किया था.
शिक्षक भर्ती प्रक्रिया की रफ्तार धीमी: शिक्षक भर्ती को लेकर सरकार पहल तो करती (Teacher Recruitment In Bihar) है. यहां तक की विज्ञापन भी निकाल दिए जाते हैं. लेकिन प्रक्रिया पूरी करने में 3 से 4 साल लग जाते हैं. फिलहाल स्थिति यह है कि शिक्षक भर्ती को लेकर छात्र आंदोलनरत हैं. सरकार की ओर से उन्हें सिर्फ आश्वासन मिल रहा है. ऐसे में प्रदेश भर के शिक्षक अभ्यर्थी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर बैठे हैं. विरोध प्रदर्शनों का दौर काफी दिनों से जारी है.
सवा लाख वैकेंसी, भर्ती सिर्फ 45 हजार: शिक्षक भर्ती की हालत यह है कि साल 2019 में सवा लाख शिक्षकों की वैकेंसी निकली थी. भर्ती की प्रक्रिया भी पूरी हो गई लेकिन महज 45000 शिक्षक ही नियुक्त किया जा सके. नवंबर माह से सातवें चरण की बहाली को लेकर शिक्षक अभ्यर्थी आंदोलन पर बैठे हैं. शिक्षकों की बहुप्रतीक्षित मांग स्थानांतरण की थी. अगस्त 2020 में मुख्यमंत्री ने नियोजित शिक्षकों के लिए स्थानांतरण को हरी झंडी दिखाई. विधानसभा सत्र के दौरान सैद्धांतिक रूप से स्थानांतरण पर सरकार ने मुहर लगाई थी. विडंबना यह है कि अब तक स्थानांतरण को लेकर शिक्षक उहापोह में है, विभाग सिर्फ आश्वासन दे रही है.
"शिक्षकों के हितों को लेकर सरकार गंभीर है. शिक्षकों के मांग पर सरकार सहानुभूति पूर्वक विचार कर रही है. उनकी मांगों को लागू भी किया जा रहा है. तकनीकी समस्याओं के वजह से थोड़ी देरी हो रही है. लेकिन उसे भी सरकार पूरा कर लेगी" -अंजुम आरा, जदयू प्रवक्ता
सदन में मिला आश्वासन लेकिन हुआ कुछ नहीं: शिक्षकों के लिए पदोन्नति भी दूर की कौड़ी है. सदन के अंदर लगातार आश्वासन दिए जाने के बाद भी शिक्षकों को पदोन्नति नहीं दी गयी. कोर्ट ने भी कहा है कि शिक्षकों को पदोन्नति दी जाए. प्रिंसिपल के 50% पद पदोन्नति से भरे जाने पर लेकिन यह भी अब तक अधूरा है. तालिमी मरकज का मामला भी पिछले 7 साल से अधर में लटका हुआ है. लंबे समय से तालिमी मरकज के मामले को सदन में उठाया जा रहा है. सरकार की ओर से आश्वासन भी दिया जाता है लेकिन अब तक नियुक्ति प्रक्रिया अधूरी है. शिक्षकों के लिए वेतन विसंगति ही बड़ा मुद्दा है. लंबे समय से वेतन विसंगति को दूर करने के लिए मांग उठ रही है. बिहार विधानसभा में भी सरकार की ओर से आश्वासन दिए गए. लेकिन अब तक वेतन विसंगति दूर नहीं की जा सकी.
"बिहार सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को भगवान भरोसे छोड़ दिया है. ना तो समय पर भर्ती की प्रक्रिया पूरी की जा रही है ना ही शिक्षकों को अब तक ट्रांसफर की सुविधा दी गई है. तमाम मुद्दों पर सदन के अंदर सरकार आश्वासन देती है लेकिन उसे पूरा नहीं किया जाता है" - प्रेम रंजन पटेल, भाजपा प्रवक्ता
"तीन से चार साल में पूरी होती है भर्ती प्रक्रिया": शिक्षक संघ के संघर्षशील नेता संतोष कुमार ने कहा कि शिक्षा को लेकर सरकार की रवैया ढुलमुल है. लगातार आश्वासनों के बावजूद स्थानांतरण को लेकर सरकार की नीति स्पष्ट नहीं है. विधानसभा में ही कई बार आश्वासन दिए गए हैं. इसके अलावा नियुक्ति और ईपीएफ के मामले को लेकर भी सरकार का रवैया ढुलमुल रहा है.