पटना: देशभर में आज शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है. आज इसी कड़ी में राजधानी पटना से सटे धनरूआ प्रखंड के बरबीघा गांव की बात करेंगे. जहां दोनों पैर से दिव्यांग शिक्षक बिनेश्वर प्रसाद पिछले 40 वर्षों से अपने गांव के बच्चों के बीच निशुल्क रूप से शिक्षा का अलख जगा रहे हैं. इसके अलावा धनरूआ के ही नदपुरा की कांति कुमारी जो पिछले कई सालों से स्लम के बच्चों के बीच निशुल्क रूप से शिक्षा प्रदान कर रही हैं.
गांव में नहीं है सरकारी विद्यालय: बरबीघा के दिव्यांग शिक्षक बिनेश्वर प्रसाद ने कहा कि हमारे गांव में दूर-दूर तक कोई सरकारी विद्यालय नहीं है. ऐसे में उन्होंने किसी तरह से पढ़ई कर ली. हालांकि उनके गांव के लोगों के बीच शिक्षा का काफी आभाव है. ऐसे में उन्होंने प्रण लिया है कि वो अपने गांव के बच्चों के बीच शिक्षा का अलख जगायेंगे. वो 1986 से लेकर अब तक गांव के हर बच्चे को मुफ्त में शिक्षा दान करते हैं.
"मेरा नाम बिनेश्वर प्रसाद है, 1986 से मैं लगातार अपने गांव के बच्चों को निशुल्क रूप में शिक्षा देता आ रहा हूं, सरकार से मांग करता हूं कि हमारे गांव में सरकारी स्कूल बनवाया जाए ताकि बच्चों को पढ़ने के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़े." -बिनेश्वर प्रसाद, दिव्यांग शिक्षक, बरबीघा
सरकारी जॉब कर रहे कई बच्चें: उन्होंने बताया कि उनके पढ़ाए गए कई बच्चे सरकारी जॉब में भी हैं. वो सरकार से मांग करते हैं कि उनके गांव में सरकारी विद्यालय बनाया जाए ताकि बच्चों को पढ़ने के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़े. बिनेश्वर प्रसाद ने कहा कि वो बच्चों को निशुल्क रूप में पढ़ाते हैं, बदले में उन्हें कोई अभिभावक चावल तो कोई खाने के लिए अनाज देता है. इसी तरह से जिंदगी कट रही है. उन्होंने अभी तक शादी नहीं की है. वहीं नदपुरा गांव की कांति कुमारी जो खुद भी स्लम इलाके से हैं और वहां के बच्चों को फ्री में शिक्षा दें रही हैं.
"स्लम इलाके के बच्चों के बीच हम कई वर्षों से निशुल्क रूप में पढ़ा रही हूं. कठिनाइयां तो बहुत आती है लेकिन बाबा भीमराव अंबेडकर के सपनों का भारत बनाने के लिए हम तत्पर हैं."-कांति कुमारी, नदपुरा, धनरूआ