पटनाः वो कोई एक ही हस्ती, एक ही वजूद है, जिसने सारा जहां बनाया है, फर्क इतना कि कुछ उसे खुदा तो कुछ उसे भगवान कहते हैं. पूरे देश में राजनीति के नाम पर जहां हिंदू और मुसलमानों के बीच जहर घोला जा रहा है तो वहीं कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं, जो हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल बन जाती है. ऐसे ही एक तस्वीर मसौढ़ी प्रखंड के छाता गांव से सामने आई है, जहां सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश की जा रही है. इस गांव में मंदिर और मजार एक ही जमीन पर बना हुआ है. जिससे कभी किसी कोई अपत्ति नहीं हुई.
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मिलकर रहते हैं हिंदू और मुस्लिमः देश में कई जगहों पर मंदिर-मस्जिद को लेकर विवाद होते रहते हैं, लेकिन मसौढ़ी प्रखंड के छाता गांव में दोनों संप्रदायों के बीच इसे लेकर कभी झगड़ा नहीं हुआ. ईद पर मुस्लिम समाज के लोग मजार पर इबादत करते हैं और हिंदू भाइयों से गले मिलते हुए घर जाते हैं. वहीं हिंदू भाई भी उन्हें बधाई देते हैं. होली के पर्व पर हिंदू समाज के लोग मुस्लिम भाइयों से मिलकर उन्हें बधाई देते हैं. इस शिव मंदिर में श्रद्धालु रोजाना पूजा पाठ करते रहते हैं.
200 साल पुराना मजार और मंदिरः वहीं शिवरात्रि के मौके पर शिवालय में धूमधाम से पर्व मनाया जाता है. जहां पर मुस्लिम समाज के लोग भी आकर उसमें शामिल होते हैं. छाता गांव की इस जमीन पर मखदूम साहब का मजार है, जो 1645 में इसे बनाया गया था और उसके ही निकट मंदिर बनाया गया है. जिसकी कई पौराणिक मान्यता है, गांव में बनी मजार और मंदिर दोनों एक ही जमीन पर है और तकरीबन 200 साल पुरानी है.
"हमलोग यहां काफी मिलजुल कर रहते हैं, ईद और पूजा के मौके पर यहां बड़ी धूमधाम रहती है. सभी लोग मिलजुलकर सभी पर्व में शामिल होते हैं. हिंदू मुसलमान दोनों भाई-भाई की तरह रहते हैं. काफी सालों से ऐसा ही चलता आ रहा है, कभी कोई परेशानी नहीं हुई. मंदिर और मजार दोनों काफी सालों से यहां बना हुआ है"- अमोद कुमार, स्थानीय
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसालः मसौढ़ी प्रखंड के छाता गांव में बनी एक ही जमीन पर मंदिर और मजार सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बनी हुई है. जो गंगा जमुनी तहजीब की एक नई इबारत लिख रही है. यहां शिवरात्रि के मौके पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. सुबह से लेकर देर रात तक भजन-कीर्तन चलता रहता है. इसमें मुस्लिम समुदाय के कई लोग भी शामिल होते हैं.