पटना: नवरात्र के चौथे दिन सभी मंदिरों और पूजा पंडालों में मां कुष्मांडा का पूजन वैदिक मंत्रों के साथ किया गया. शक्तिपीठ छोटी पटनदेवी मंदिर समेत राजधानी के सभी मंदिरों में मां के दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिली. सभी भक्तों ने जय माता दी का जयकारा लगाकर मां कुष्मांडा को याद किया. ऐसी मान्यता है कि शक्ति और समृद्धि कि देवी मां कुष्मांडा की पूजा करने से मनोवांछित फल मिलता है.
मंदिरों और पंडालों में हो रही पूजा-अर्चना
नवरात्र के चौथे दिन सभी पूजा पंडालों में सुबह से ही वैदिक मंत्रों के साथ पूजा की गई. राजधानी के सभी मन्दिरों में श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी रही. शहर की छोटी पटनदेवी मन्दिर में भी पूजा करने भक्त बहुत दूर से आये थे. मंदिर के पुजारी ने बताया कि राजधानी में छोटी पटनदेवी मन्दिर का विशेष स्थान है. नवरात्र के समय यहां पूजा करने के लिए काफी लोग आते हैं.
मां कुष्मांडा का स्वरूप
मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं हैं, इसलिए उन्हें अष्टभुजा भी कहते हैं. जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी. इसीलिए इन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है. इनके सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा और आठवें हाथ में जप माला है. मां कुष्मांडा का वाहन सिंह है.
सूर्य है इनका निवास स्थान
मां के इस रुप को लेकर मान्यता है कि इन्होंने ही इस संसार की रचना की है. इन्हे दुखों को हरने वाली मां कहा जाता है. सूर्य इनका निवास स्थान माना जाता है. इसलिए माता के इस स्वरुप के पीछे सूर्य का तेज दर्शाया जाता है. इनके आठ हाथ है और इनकी सवारी सिंह है. मां कुष्मांडा की पूजा करने से मन का डर और भय दूर होता है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है.