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Bihar Politics: आज फिर CM नीतीश के साथ नहीं दिखे तेजस्वी, क्या है रूठने मनाने का खेल!

कहते हैं कि राजनीति में जो होता है, वह दिखता नहीं है और जो दिखता है, वह होता नहीं है. राजनीति के खेल निराले हैं. हर किसी के अपने-अपने दांव-पेच हैं. साथ रह कर भी कोई दूर होता है तो कोई दूर रहकर भी साथ दे जाता है. सूबे की सियासत में ऐसी ही चर्चा चल रही है, जो आम से नहीं बल्कि खास से जुड़ी हुई है. चर्चा है कि नीतीश कुमार से तेजस्वी यादव नाराज हैं. हालांकि बुधवार शाम को राबड़ी आवास पर जाकर सीएम ने उनसे मुलाकात भी की थी लेकिन लगता नहीं कि नाराजगी समाप्त हुई है. पढ़ें खास रिपोर्ट..

नीतीश कुमार से तेजस्वी यादव नाराज
नीतीश कुमार से तेजस्वी यादव नाराज
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Published : Jul 20, 2023, 3:35 PM IST

वरिष्ठ पत्रकार मनोज पाठक

पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की नाराजगी की खबरें यूं ही नहीं है, इसके पीछे की कुछ वजह भी साफ नजर आ रही है. दरअसल बुधवार को राजगीर के मलमास मेले में सीएम नीतीश कुमार अकेले ही दिखे, जबकि आयोजन में पर्यटन विभाग सह उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव और आरजेडी के ही एक अन्य मंत्री आलोक मेहता शामिल नहीं हुए. इसके बाद राज्य की राजनीति में चर्चा जोर पकड़ने लगी. हालांकि राजगीर से आने के बाद सीएम ने 10 सर्कुलर रोड जाकर आरजेडी चीफ लालू यादव से मुलाकात की. ऐसी सूचना थी कि नीतीश ने एकांत में लालू से कई मसलों पर बात भी की.

ये भी पढ़ें: Bihar Politics: अचानक राबड़ी आवास पर तेजस्वी से मिलने पहुंचे CM नीतीश, क्या चाचा से नाराज है भतीजा?

नीतीश-तेजस्वी में रूठने-मनाने का खेल: सूबे की सियासत के पिछले कई घटनाक्रमों पर अगर नजर डालें तो यह पहला मौका नहीं है, जब सीएम नीतीश कुमार के प्रोग्राम में तेजस्वी यादव शामिल नहीं हुए. इसके पहले भी कई ऐसे मौके आए हैं, जब सीएम नीतीश प्रोग्राम में तो उपस्थित हो गए लेकिन तेजस्वी नहीं आए या फिर देरी से आए. इसी साल फरवरी महीने में जब राजधानी के टाउन हॉल में किसान समागम का आयोजन किया गया था तो उसमें डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को विशिष्ट अतिथि के रुप में शामिल होना था. इस आयोजन में डिप्टी सीएम करीब ढाई घंटे की देरी से पहुंचे, जबकि सीएम नीतीश कुमार नीयत समय पर पहुंच चुके थे.

ढाई घंटे खाली रही तेजस्वी की कुर्सी: कार्यक्रम के दौरान सीएम नीतीश कुमार के बगल में ही तेजस्वी यादव के लिए भी कुर्सी लगाई गई थी लेकिन वह कुर्सी करीब ढाई घंटे तक खाली पड़ी रही. तेजस्वी यादव के कार्यक्रम पहुंचने में जितनी देरी हुई, उतनी देर तक सियासी अटकलबाजी का दौर चलता रहा.

आखिरी वक्त में चेन्नई नहीं गए नीतीश: इसके अलावा पिछले 20 जून को जब सीएम नीतीश कुमार को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन से मिलने के लिए चेन्नई जाना था तो ऐन वक्त पर वह नहीं जा सके. स्टालिन से मिलने के लिए डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के साथ जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेता और मंत्री संजय झा चले गए. हालांकि बाद में यह खबर भी सामने आई कि स्टालिन कांग्रेस पार्टी से नाराज थे लेकिन सीएम नीतीश कुमार का अंतिम वक्त में तेजस्वी के साथ चेन्नई नहीं जाना भी खूब सियासी सुर्खियां बटोरी थी.

आरजेडी-जेडीयू में मतभेद पर क्या कहते हैं जानकार? इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार मनोज पाठक कहते हैं कि गौर से देखा जाए तो महागठबंधन का जो स्वरूप है, वह बीजेपी को हटाने के लिए हुआ था. आज विपक्षी दलों का जो गठबंधन बन रहा है, उसका मुख्य मुद्दा मोदी को हटाने का है. केवल राजगीर ही मौका नहीं है. जल जीवन हरियाली का प्रोग्राम हुआ था, उसमें भी तेजस्वी प्रसाद समय पर नहीं पहुंचे थे. ऐसा कहा जाता है कि नीतीश कुमार ने फोन किया था, उसके बाद भी तेजस्वी कार्यक्रम में पहुंचे थे. इसी प्रकार स्टालिन से मिलने के मौके पर भी नीतीश कुमार नदारद थे. राजगीर की घटना भी सामने है.

"महागठबंधन में रूठने और मनाने का खेल बराबर चला है. राजद एक बड़ी पार्टी है. जनता दल यूनाइटेड को सरकार चलाना है तो स्वभाविक है कि जदयू को राजद से मिलकर के चलना होगा. देखा जाए तो इसमें कोई दो मत नहीं है कि दोनों दल मिले तो हैं लेकिन दिल नहीं मिले हैं. अब इसमें सच्चाई क्या है? सब सत्ता का खेल है. जब भी मौका मिलेगा, दोनों दल एक-दूसरे से अलग-अलग रास्ते अपना लेंगे, इनको चुनाव का इंतजार है"- मनोज पाठक, वरिष्ठ पत्रकार

वरिष्ठ पत्रकार मनोज पाठक

पटना: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की नाराजगी की खबरें यूं ही नहीं है, इसके पीछे की कुछ वजह भी साफ नजर आ रही है. दरअसल बुधवार को राजगीर के मलमास मेले में सीएम नीतीश कुमार अकेले ही दिखे, जबकि आयोजन में पर्यटन विभाग सह उप मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव और आरजेडी के ही एक अन्य मंत्री आलोक मेहता शामिल नहीं हुए. इसके बाद राज्य की राजनीति में चर्चा जोर पकड़ने लगी. हालांकि राजगीर से आने के बाद सीएम ने 10 सर्कुलर रोड जाकर आरजेडी चीफ लालू यादव से मुलाकात की. ऐसी सूचना थी कि नीतीश ने एकांत में लालू से कई मसलों पर बात भी की.

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नीतीश-तेजस्वी में रूठने-मनाने का खेल: सूबे की सियासत के पिछले कई घटनाक्रमों पर अगर नजर डालें तो यह पहला मौका नहीं है, जब सीएम नीतीश कुमार के प्रोग्राम में तेजस्वी यादव शामिल नहीं हुए. इसके पहले भी कई ऐसे मौके आए हैं, जब सीएम नीतीश प्रोग्राम में तो उपस्थित हो गए लेकिन तेजस्वी नहीं आए या फिर देरी से आए. इसी साल फरवरी महीने में जब राजधानी के टाउन हॉल में किसान समागम का आयोजन किया गया था तो उसमें डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को विशिष्ट अतिथि के रुप में शामिल होना था. इस आयोजन में डिप्टी सीएम करीब ढाई घंटे की देरी से पहुंचे, जबकि सीएम नीतीश कुमार नीयत समय पर पहुंच चुके थे.

ढाई घंटे खाली रही तेजस्वी की कुर्सी: कार्यक्रम के दौरान सीएम नीतीश कुमार के बगल में ही तेजस्वी यादव के लिए भी कुर्सी लगाई गई थी लेकिन वह कुर्सी करीब ढाई घंटे तक खाली पड़ी रही. तेजस्वी यादव के कार्यक्रम पहुंचने में जितनी देरी हुई, उतनी देर तक सियासी अटकलबाजी का दौर चलता रहा.

आखिरी वक्त में चेन्नई नहीं गए नीतीश: इसके अलावा पिछले 20 जून को जब सीएम नीतीश कुमार को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन से मिलने के लिए चेन्नई जाना था तो ऐन वक्त पर वह नहीं जा सके. स्टालिन से मिलने के लिए डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के साथ जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेता और मंत्री संजय झा चले गए. हालांकि बाद में यह खबर भी सामने आई कि स्टालिन कांग्रेस पार्टी से नाराज थे लेकिन सीएम नीतीश कुमार का अंतिम वक्त में तेजस्वी के साथ चेन्नई नहीं जाना भी खूब सियासी सुर्खियां बटोरी थी.

आरजेडी-जेडीयू में मतभेद पर क्या कहते हैं जानकार? इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार मनोज पाठक कहते हैं कि गौर से देखा जाए तो महागठबंधन का जो स्वरूप है, वह बीजेपी को हटाने के लिए हुआ था. आज विपक्षी दलों का जो गठबंधन बन रहा है, उसका मुख्य मुद्दा मोदी को हटाने का है. केवल राजगीर ही मौका नहीं है. जल जीवन हरियाली का प्रोग्राम हुआ था, उसमें भी तेजस्वी प्रसाद समय पर नहीं पहुंचे थे. ऐसा कहा जाता है कि नीतीश कुमार ने फोन किया था, उसके बाद भी तेजस्वी कार्यक्रम में पहुंचे थे. इसी प्रकार स्टालिन से मिलने के मौके पर भी नीतीश कुमार नदारद थे. राजगीर की घटना भी सामने है.

"महागठबंधन में रूठने और मनाने का खेल बराबर चला है. राजद एक बड़ी पार्टी है. जनता दल यूनाइटेड को सरकार चलाना है तो स्वभाविक है कि जदयू को राजद से मिलकर के चलना होगा. देखा जाए तो इसमें कोई दो मत नहीं है कि दोनों दल मिले तो हैं लेकिन दिल नहीं मिले हैं. अब इसमें सच्चाई क्या है? सब सत्ता का खेल है. जब भी मौका मिलेगा, दोनों दल एक-दूसरे से अलग-अलग रास्ते अपना लेंगे, इनको चुनाव का इंतजार है"- मनोज पाठक, वरिष्ठ पत्रकार

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