दिल्ली/पटना: भला कौन नहीं चाहता है बड़ा बने. तो क्या बुरा किया एलजेपी, आरजेडी और जेडीयू ने? उसने भी तो यही सोचा कि पार्टी का विस्तार करना है. पर, उसे क्या पता था कि, 'बड़ी मुश्किल है राह पनघट की.'
वो 70 का दशक था जब, बिहार से जयप्रकाश नारायण ने हुंकार भरी और इंदिरा गांधी का सिंघासन डगमगा गया. बिहार में बैठे नेता फिर से सोचने लगे चलो एक बार फिर से दाव आजमाते हैं, केजरीवाल को हराते हैं.
दिल्लीवासियों को पसंद नहीं आया 'बिहारराज'
पिछड़ा बिहार अपने आप को अग्रणी दिखाकर दिल्ली को छोटा करने में लगा था. नीतीश कुमार दिल्ली सरकार को कठघड़े में खड़ा करके बिहार की राह पर चलने की दिशा दे रहे थे. पर, दिल्लीवासी को 'बिहारराज' पसंद नहीं आया. वह 'तीर' चलाने से अच्छा 'छाड़ू' लगाना ही समझे.
'दिल्ली बहुत दूर है'
लालू पुत्र तेजस्वी यादव ने भी तो बहुत कोशिश की. पर, दिल्ली वासियों ने उनकी 'लालटेन' में तेल नहीं डाला. कुछ ऐसा ही हाल चिराग पासवान का रहा. उनके 'घर' में भी कोई रहना पसंद नहीं किया.
कुल मिलाकर कहें तो बिहार के नेता हजार किलोमीटर की दूरी तय कर दिल्ली पहुंच तो गए. पर वह दिल्ली के दिल में नहीं बस पाए. तभी तो लोग कहने लगे हैं, 'दिल्ली बहुत दूर है.'