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बिहार के अधिकारी नहीं करते कैबिनेट के आदेशों का पालन, अपर मुख्य सचिव के पत्र से मचा हड़कंप

बिहार में नौकरशाही बेलगाम है, इस बात की पुष्टि कैबिनेट के अपर मुख्य सचिव सिद्धार्थ के एक पत्र ने कर दी है. उन्होंने पत्र के जरिए कहा है कि 'कैबिनेट से एजेंडों को पारित तो किया जाता है लेकिन विभागों के द्वारा इसका अनुपालन नहीं किया जा रहा है.' नौकरशाही का शिकार सीएम नीतीश का विभाग भी हुआ है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

Bureaucracy in Bihar
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Published : Jul 28, 2022, 2:20 PM IST

पटना: बिहार में ब्यूरोक्रेसी (Bureaucracy In Bihar) किस कदर हावी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ महीने पहले मंत्री मदन सहनी ने नाराज होकर इस्तीफे की पेशकश तक कर दी थी. हम संरक्षक और पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने भी बेलगाम अफशाही (Bureaucracy Unbridled In Bihar) पर कई बार सवाल उठाए हैं लेकिन इस बार तो आरोपों पर मुहर लगती दिख रही है. सैकड़ों की संख्या में बिहार कैबिनेट से एजेंडों को पारित तो कर दिया गया लेकिन आजतक लागू नहीं किया जा सका है.

पढ़ें- समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी का इस्तीफा, कहा- नहीं सुनते हैं अधिकारी

बिहार में बेलगाम ब्यूरोक्रेसी!: बिहार में डबल इंजन की सरकार है और आम लोगों की अपेक्षा भी सरकार से ज्यादा है. नीतीश सरकार के द्वारा जीडीपी के मामले में अव्वल होने का दावा किया जाता है. लेकिन इन दावों की पोल तब खुल गई जब मंत्रिपरिषद द्वारा लिए गए निर्णय धरातल की सर जमीं पर नहीं उतर पाए. 17 नवंबर 2020 से 19 जुलाई 2022 तक कुल मिलाकर शामिल प्रस्ताव की संख्या 2050 है जिसमें 825 प्रस्ताव स्वीकृत हुए और 851 को अनूप पारित किया गया जबकि 374 प्रस्ताव का अनुपालन अभी लंबित है.

सैकड़ों एजेंडे लंबित: मंत्रिपरिषद द्वारा पारित सैकड़ों एजेंडे पिछले कुछ सालों से लंबित हैं और विभाग के द्वारा कार्रवाई नहीं की गई. कैबिनेट, नीति निर्धारण के मामले में सर्वोच्च संस्था है. सरकार अपनी नीतियों का क्रियान्वयन कैबिनेट के जरिए ही करती है. कैबिनेट की सहमति मिलने के बाद विभाग प्रस्ताव से संबंधित नियम बनाती है. फिर उससे अधिकारियों को सूचित किया जाता है. तब जाकर विकास योजनाएं शुरू होती हैं.

पढ़ें- मदन सहनी को मिला मांझी का साथ, कहा- जनप्रतिनिधियों की बात को गंभीरता से नहीं लेते अफसर

अपर मुख्य सचिव के पत्र से हड़कंप: कैबिनेट के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस सिद्धार्थ (Principal Secretary Dr. S. Siddhartha) के एक पत्र से हड़कंप मच गया है. पत्र में कहा गया कि विभागों के द्वारा मंत्री परिषद के निर्णय का पूर्ण अनुपालन नहीं किया जा रहा है. इसकी सूचना मंत्रिमंडल सचिवालय को नहीं दी जा रही है. वहीं अपने-अपने विभागों को वेब साइट पर नियमित रूप से प्रकाशन को लेकर भी आदेश निर्गत किए गए हैं. कैबिनेट सचिवालय के द्वारा जो पत्र निर्गत किया गया है उसके मुताबिक कुल मिलाकर 374 ऐसे एजेंडे हैं जिस पर कैबिनेट सचिवालय को एक्शन टेकन रिपोर्ट अब तक नहीं मिली है.

स्वास्थ्य विभाग के 78 एजेंडे लंबित: नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार क्यों फिसड्डी आता है वह आप आंकड़ों के जरिए समझ सकते हैं. स्वास्थ्य और शिक्षा के मामले में बिहार क्यों पिछड़ जाता है. कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग पर सबसे अधिक दारोमदार है और तेजतर्रार अधिकारी प्रत्यय अमृत विभाग को नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग के कुल 103 प्रस्ताव कैबिनेट की बैठक में शामिल किए गए जिसमें 102 को स्वीकृति मिली 24 का अनुपालन किया गया और 78 अभी लंबित हैं.

शिक्षा विभाग के 53 एजेंडे अधूरे: दूसरे स्थान पर शिक्षा विभाग है. 53 प्रस्तावों को स्वीकृति मिली, एक प्रस्ताव का भी अनुपालन नहीं हुआ. फिलहाल 53 प्रस्ताव लंबित हैं.। स्वास्थ विभाग के प्रधान सचिव बराबर अंतराल पर बदलते रहे और फिलहाल दीपक कुमार प्रधान सचिव का काम देख रहे हैं.

आवास विभाग के 49 एजेंडे लंबित: तीसरे स्थान पर नगर विकास एवं आवास विभाग नगर विकास एवं आवास विभाग के लिए 55 प्रस्ताव शामिल किए गए जिसमें सभी 55 प्रस्ताव स्वीकृत हुए, 6 प्रस्ताव का अनुपालन किया गया जबकि 49 प्रस्ताव लंबित हैं. नगर विकास एवं आवास विभाग के प्रधान सचिव लंबे समय से आनंद किशोर हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भरोसेमंद माने जाते हैं.

सीएम के विभाग का हाल भी लचर: कृषि विभाग का परफॉर्मेंस भी बेहतर नहीं है. कृषि विभाग की ओर से कुल 32 प्रस्ताव शामिल किए गए जिसमें सभी 32 प्रस्ताव स्वीकृत हुए थे, 6 प्रस्ताव का अनुपालन किया गया जबकि 26 प्रस्ताव अब भी लंबित हैं. मुख्यमंत्री के पास जो विभाग हैं उसकी स्थिति भी दयनीय है. गृह विभाग के 53 प्रस्ताव शामिल किए गए थे, जिसमें 51% प्रस्ताव स्वीकृत हुए और 25 का अनुपालन किया गया जबकि 26 प्रस्ताव अब भी लंबित हैं.

"बिहार में डबल इंजन की सरकार है. भाजपा जदयू की सामूहिक जिम्मेदारी है. क्यों इतने प्रस्ताव लंबित हैं इसका जवाब सरकार को देना चाहिए. सरकार के रवैए से बेलगाम नौकरशाही साफ दिखती है."- शक्ति यादव,राजद प्रवक्ता

"सरकार विकास के एजेंडे को लेकर गंभीर है. संभव है कि प्रस्ताव को लागू करने में देरी हुई होगी. लेकिन समय रहते उसे लागू कर दिया जाएगा. राजद को यह बताना चाहिए कि जब उनका शासन था तब कैबिनेट की बैठक भी होती थी क्या?"- प्रेम रंजन पटेल, भाजपा प्रवक्ता

कैबिनेट के लंबित प्रस्ताव गंभीर अपराध माने जाएंगे. नौकरशाही पर आरोप लगते थे लेकिन अब आरोपों की पुष्टि भी हो रही है. सरकार को दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है.- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

"पूरे मामले को सरकार देखेगी कि आखिर क्यों ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है. कैबिनेट के प्रस्ताव लागू होने के लिए समय सीमा निर्धारित होती है. अगर नहीं हुआ होगा तो उसकी जांच सरकार कराएगी."- विजय चौधरी, शिक्षा मंत्री, बिहार

पटना: बिहार में ब्यूरोक्रेसी (Bureaucracy In Bihar) किस कदर हावी है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ महीने पहले मंत्री मदन सहनी ने नाराज होकर इस्तीफे की पेशकश तक कर दी थी. हम संरक्षक और पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने भी बेलगाम अफशाही (Bureaucracy Unbridled In Bihar) पर कई बार सवाल उठाए हैं लेकिन इस बार तो आरोपों पर मुहर लगती दिख रही है. सैकड़ों की संख्या में बिहार कैबिनेट से एजेंडों को पारित तो कर दिया गया लेकिन आजतक लागू नहीं किया जा सका है.

पढ़ें- समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी का इस्तीफा, कहा- नहीं सुनते हैं अधिकारी

बिहार में बेलगाम ब्यूरोक्रेसी!: बिहार में डबल इंजन की सरकार है और आम लोगों की अपेक्षा भी सरकार से ज्यादा है. नीतीश सरकार के द्वारा जीडीपी के मामले में अव्वल होने का दावा किया जाता है. लेकिन इन दावों की पोल तब खुल गई जब मंत्रिपरिषद द्वारा लिए गए निर्णय धरातल की सर जमीं पर नहीं उतर पाए. 17 नवंबर 2020 से 19 जुलाई 2022 तक कुल मिलाकर शामिल प्रस्ताव की संख्या 2050 है जिसमें 825 प्रस्ताव स्वीकृत हुए और 851 को अनूप पारित किया गया जबकि 374 प्रस्ताव का अनुपालन अभी लंबित है.

सैकड़ों एजेंडे लंबित: मंत्रिपरिषद द्वारा पारित सैकड़ों एजेंडे पिछले कुछ सालों से लंबित हैं और विभाग के द्वारा कार्रवाई नहीं की गई. कैबिनेट, नीति निर्धारण के मामले में सर्वोच्च संस्था है. सरकार अपनी नीतियों का क्रियान्वयन कैबिनेट के जरिए ही करती है. कैबिनेट की सहमति मिलने के बाद विभाग प्रस्ताव से संबंधित नियम बनाती है. फिर उससे अधिकारियों को सूचित किया जाता है. तब जाकर विकास योजनाएं शुरू होती हैं.

पढ़ें- मदन सहनी को मिला मांझी का साथ, कहा- जनप्रतिनिधियों की बात को गंभीरता से नहीं लेते अफसर

अपर मुख्य सचिव के पत्र से हड़कंप: कैबिनेट के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस सिद्धार्थ (Principal Secretary Dr. S. Siddhartha) के एक पत्र से हड़कंप मच गया है. पत्र में कहा गया कि विभागों के द्वारा मंत्री परिषद के निर्णय का पूर्ण अनुपालन नहीं किया जा रहा है. इसकी सूचना मंत्रिमंडल सचिवालय को नहीं दी जा रही है. वहीं अपने-अपने विभागों को वेब साइट पर नियमित रूप से प्रकाशन को लेकर भी आदेश निर्गत किए गए हैं. कैबिनेट सचिवालय के द्वारा जो पत्र निर्गत किया गया है उसके मुताबिक कुल मिलाकर 374 ऐसे एजेंडे हैं जिस पर कैबिनेट सचिवालय को एक्शन टेकन रिपोर्ट अब तक नहीं मिली है.

स्वास्थ्य विभाग के 78 एजेंडे लंबित: नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार क्यों फिसड्डी आता है वह आप आंकड़ों के जरिए समझ सकते हैं. स्वास्थ्य और शिक्षा के मामले में बिहार क्यों पिछड़ जाता है. कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग पर सबसे अधिक दारोमदार है और तेजतर्रार अधिकारी प्रत्यय अमृत विभाग को नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग के कुल 103 प्रस्ताव कैबिनेट की बैठक में शामिल किए गए जिसमें 102 को स्वीकृति मिली 24 का अनुपालन किया गया और 78 अभी लंबित हैं.

शिक्षा विभाग के 53 एजेंडे अधूरे: दूसरे स्थान पर शिक्षा विभाग है. 53 प्रस्तावों को स्वीकृति मिली, एक प्रस्ताव का भी अनुपालन नहीं हुआ. फिलहाल 53 प्रस्ताव लंबित हैं.। स्वास्थ विभाग के प्रधान सचिव बराबर अंतराल पर बदलते रहे और फिलहाल दीपक कुमार प्रधान सचिव का काम देख रहे हैं.

आवास विभाग के 49 एजेंडे लंबित: तीसरे स्थान पर नगर विकास एवं आवास विभाग नगर विकास एवं आवास विभाग के लिए 55 प्रस्ताव शामिल किए गए जिसमें सभी 55 प्रस्ताव स्वीकृत हुए, 6 प्रस्ताव का अनुपालन किया गया जबकि 49 प्रस्ताव लंबित हैं. नगर विकास एवं आवास विभाग के प्रधान सचिव लंबे समय से आनंद किशोर हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भरोसेमंद माने जाते हैं.

सीएम के विभाग का हाल भी लचर: कृषि विभाग का परफॉर्मेंस भी बेहतर नहीं है. कृषि विभाग की ओर से कुल 32 प्रस्ताव शामिल किए गए जिसमें सभी 32 प्रस्ताव स्वीकृत हुए थे, 6 प्रस्ताव का अनुपालन किया गया जबकि 26 प्रस्ताव अब भी लंबित हैं. मुख्यमंत्री के पास जो विभाग हैं उसकी स्थिति भी दयनीय है. गृह विभाग के 53 प्रस्ताव शामिल किए गए थे, जिसमें 51% प्रस्ताव स्वीकृत हुए और 25 का अनुपालन किया गया जबकि 26 प्रस्ताव अब भी लंबित हैं.

"बिहार में डबल इंजन की सरकार है. भाजपा जदयू की सामूहिक जिम्मेदारी है. क्यों इतने प्रस्ताव लंबित हैं इसका जवाब सरकार को देना चाहिए. सरकार के रवैए से बेलगाम नौकरशाही साफ दिखती है."- शक्ति यादव,राजद प्रवक्ता

"सरकार विकास के एजेंडे को लेकर गंभीर है. संभव है कि प्रस्ताव को लागू करने में देरी हुई होगी. लेकिन समय रहते उसे लागू कर दिया जाएगा. राजद को यह बताना चाहिए कि जब उनका शासन था तब कैबिनेट की बैठक भी होती थी क्या?"- प्रेम रंजन पटेल, भाजपा प्रवक्ता

कैबिनेट के लंबित प्रस्ताव गंभीर अपराध माने जाएंगे. नौकरशाही पर आरोप लगते थे लेकिन अब आरोपों की पुष्टि भी हो रही है. सरकार को दोषी अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है.- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

"पूरे मामले को सरकार देखेगी कि आखिर क्यों ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है. कैबिनेट के प्रस्ताव लागू होने के लिए समय सीमा निर्धारित होती है. अगर नहीं हुआ होगा तो उसकी जांच सरकार कराएगी."- विजय चौधरी, शिक्षा मंत्री, बिहार

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