पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में दलितों पर खूब सियासत होती रही है. रामविलास पासवान लंबे समय से दलितों के नाम पर ही राजनीति करते रहे हैं. लेकिन बिहार की सियासत में अब केवल राम विलास पासवान ही दलितों के एकमात्र नेता नहीं रह गए हैं. पूर्व सीएम जीतन राम मांझी के साथ बीजेपी और जदयू ने भी कई ऐसे चेहरे सामने रखे हैं.
बिहार में 243 विधानसभा सीटों में 40 सीटों पर दलित उम्मीदवार के लिए रिजर्व हैं. वहीं, दलित वोटरों की संख्या 16 से 17% है और कई सीटों पर दलित वोटर जीत हार का फैसला तय करते हैं इसलिए सभी दल दलित वोटरों को रिझाने की हर संभव कोशिश हर चुनाव में करते रहे हैं.
दलित वोटरों पर सभी दलों की नजर
बिहार में रामविलास पासवान के दलित वोट पर एकाधिकार को नीतीश कुमार ने दलित को महादलित में बांटकर किया था. दलितों की 22 समुदाय में से 21 को नीतीश कुमार ने महादलित में शामिल कर दिया. केवल पासवान जाति को बाहर छोड़ दिया. हालांकि, अब सभी महादलित में शामिल हो चुके हैं. उसके बाद नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना कर एक बड़ा दलित गेम खेला था. जीतन राम मांझी बागी हो गए और अलग पार्टी भी बना ली.
सबसे बड़े दलित नेता-मांझी
आज जीतन राम मांझी अपने आप को दलितों के सबसे बड़े नेता कहने से गुरेज नहीं करते हैं. मांझी दलितों के मुसहर समाज से आते हैं इसलिए मुसहर वोट पर अपना एकाधिकार बताते हैं, तो वहीं रामविलास पासवान पासवान जाति पर अभी भी एकाधिकार होने का दावा करते हैं. दलितों में ऐसे तो 22 समुदाय है लेकिन उसमें से रविदास, मुसहर और पासवान ही प्रमुख रूप से हैं. हम प्रमुख जीतन राम मांझी दलित वोट बैंक 22% तक होने की दावा करते हैं.
श्याम रजक ने छोड़ा साथ
श्याम रजक के आरजेडी में जाने के बाद आरोप-प्रत्यारोप भी शुरू है. जहां जदयू के दलित विधायक और नेता हमला कर रहे हैं. तो वहीं, उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी तक ने ट्वीट कर श्याम रजक पर निशाना साधा है. वहीं, राजगीर के जदयू एमएलए रवि ज्योति ने अपने फेसबुक लाइव के माध्यम से श्याम रजक को गद्दार तक कह दिया है. रवि ज्योति ने कहा कि नीतीश कुमार प्रदेश में समावेशी विकास कर रहे हैं लेकिन श्याम रजक पुराने मंत्री हैं. दलितों के लिए कुछ नहीं किया और चुनाव के समय पार्टी भी बदल ली. जनता ऐसे लोगों को सबक सिखाएगी.
जीतन राम मांझी पर जदयू की नजर!
बिहार विधानसभा का चुनाव में बहुत ज्यादा समय नहीं रह गया है. ऐसे में श्याम रजक का आरजेडी में शामिल होना, आरजेडी को कितना लाभ दिलाता है या तो देखने वाली बात है लेकिन नीतीश कुमार के लिए फिलहाल मुश्किलें बढ़ गई हैं. सहयोगी लोजपा के लिए भी मुश्किल काम नहीं हैं.
ऐसे नीतीश कुमार और बीजेपी श्याम रजक का काट अपने तरीके से खोजने की कोशिश कर रहे हैं. जीतन राम मांझी फिर से एक बड़ा मोहरा हो सकते हैं. हाल के दिनों में जीतन राम मांझी ने नीतीश कुमार की कई मौकों पर तारीफ भी की है. दूसरी तरफ मांझी आरजेडी के रवैया से कुछ भी नहीं है इसलिए कई तरह के कयास लग रहे हैं.