पटना: बिहार में आगामी नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसके मद्देनजर सभी पार्टियां दलित वोट पाने की राजनीति शुरू कर दी है. लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान और हम पार्टी के सुप्रीमो जीतन राम मांझी खुद को गठबंधन में तवज्जो नहीं मिलने की वजह से बेचैन नजर आ रहे हैं. चिराग पासवान जेडीयू से तो मांझी आरजेडी से खफा नजर आ रहे हैं. आखिर क्यों बिहार की सियासत दलित राजनीति को लेकर इतना कमजोर है. बिहार की राजनीति को लेकर यह कहीं ना कहीं सवाल खड़ा कर रहा है.
दरअसल, बिहार में कुल 16% दलित मतदाता हैं. वहीं बिहार देश का एक ऐसा राज्य है, जहां से पहले दलित उपप्रधानमंत्री और पहले मुख्यमंत्री मिले थे. इसके बावजूद भी दलित राजनीति बिहार में यूपी और महाराष्ट्र की तरह अपनी जड़े नहीं जमा सकी है. बीजेपी ने जिस तरह से बिहार में दलित वोट ना भटके इसलिए लोजपा को साथ रखी हुई है. ठीक उसी प्रकार उमीद जताई जा रही है कि जेडीयू भी दलित वोट के खातिर फिर से जीतन राम मांझी को अपने साथ लेने का निर्णय लिया है.
दलित कैटेगरी की 22 जातियों में से 21 को घोषित कर दिया महादलित
बिहार के दलित समुदाय में 22 जातियां आती हैं. 2005 में नीतीश कुमार सत्ता में आए तो उन्होंने दलित समुदाय को साधने के लिए दलित कैटेगरी की 22 जातियों में से 21 को महादलित घोषित कर अपनी तरफ से कोशिशें शुरू की थी. जिसमें वह कामयाब भी रहे. हालांकि 2018 में पासवान जातियों को भी शामिल कर सभी को महादलित बना दिया गया. इस तरह से बिहार में अब कोई दलित समुदाय नहीं रहा गया है.
चिराग और मांझी अपने ही सहयोगी दल पर उठा रहे सवाल
लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान पिछले कई महीनों से लगातार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके कामकाज के तरीकों पर सवाल उठा रहे हैं. पहले वो 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' यात्रा के दौरान जेडीयू के खिलाफ बयान दिया था. वहीं अब बाढ़ और कोरोना के मुद्दे को लेकर चिराग पासवान लगतार नितीश कुमार और जेडीयू पर निशाना साधते नजर आ रहे हैं. भला इस बीच जेडीयू भी कहां शांत रहने वाली है.
जेडीयू सांसद ललन सिंह ने चिराग को कालिदास तक बता दिया, तो वहीं दूसरी तरफ मांझी ने भी आरजेडी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. मांझी लगातार महागठबंधन में कोऑर्डिनेशन कमिटी बनाने की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन तेजस्वी यादव उन्हें तवज्जो ही नहीं दे रहे हैं. ऐसे में मांझी ने फैसला ले लिया है कि वह महागठबंधन से अब वह अलग है. उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के साथ मांझी का गठबंधन होगा. फिलहाल इसकी कोई औपचारिक घोषणा नहीं हुई.
'हम बीजेपी के साथ है'
लोजपा के प्रधान महासचिव मो. शाहनवाज कैफी ने कहा कि रामविलास पासवान दलितों के नहीं बल्कि सर्वमान्य नेता हैं. उन्होंने कहा कि रामविलास पासवान ने जितना मुसलमान समुदाय के लोगों के लिए किया है उतना किसी भी पार्टी के नेता ने नहीं किया है. लोजपा की तरफ से लगातार बिहार सरकार पर सवाल खड़े किए जाने पर उन्होंने कहा कि गठबंधन में अपनी सहयोगी पार्टी के कमियों को अवगत कराना अगर बगावत है, तो हां हम बागी हैं. वहीं उन्होंने कहा कि हमारा गठबंधन बीजेपी के साथ है. बीजेपी जिसके साथ सरकार बनाएगी. हम उसके साथ हैं.
'नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा बिहार विधानसभा चुनाव'
हालांकि सभी पार्टियां अपने-अपने तरीके से बिहार में दलित एजेंडा सेट करने में लगी हुई है. जिस तरह से लोजपा लगातार जेडीयू पर हमलावर है और इस बीच एनडीए गठबंधन के घटक दल बीजेपी ने चुप्पी साध रखी है. वहीं बीजेपी प्रवक्ता संजय टाइगर ने कहा कि एनडीए गठबंधन अटूट है. पिछले लोकसभा चुनाव में भी इस तरह की कयास लगाई जा रही थी. जिसका परिणाम मिला कि 40 में से 39 सीटों पर एनडीए गठबंधन को जीत हासिल हुई थी. इस बार भी नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा.
'दलित-महादलित चेहरे की कोई कमी नहीं'
हालांकि कुछ पार्टियां जीतन राम मांझी के बारे में विचार रखती हैं कि वह डगरा का बैगन है. जिस गठबंधन में उनका मतलब खत्म हो जाता है. वह उस गठबंधन में नहीं रहते हैं. जीतन राम मांझी ने महागठबंधन में रहते हुए अपने बेटे को एमएलसी आरजेडी कोटे से बना दिया है. वहीं आरजेडी के मुख्य प्रवक्ता भाई वीरेंद्र ने कहा कि हमारे दल में दलित-महादलित के चेहरे की कोई कमी नहीं है. दलित-महादलित ने मूड बना लिया है कि जिस तरह से एनडीए गठबंधन ने उन्हें प्रताड़ित करने का काम किया है. इसीलिए महागठबंधन को ही वोट देकर सरकार बनाएंगे.
'लोजपा से किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं'
बिहार सरकार के मंत्री जय कुमार सिंह ने कहा कि जेडीयू का लोजपा से किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं है. एनडीए के तीनों दल आपस में सम्मानजनक सीटों का बंटवारा करके चुनाव लड़ेंगे और पहले से ज्यादा सीटें जीतने का काम करेंगे.
'2015 में आरजेडी ने सबसे ज्यादा 14 दलित सीटों पर की थी जीत दर्ज'
बता दें कि बिहार विधान सभा में कुल आरक्षित सीटें 38 हैं. 2015 में आरजेडी ने सबसे ज्यादा 14 दलित सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि जेडीयू को 10 कांग्रेस को 5 बीजेपी के पास 5 और बाकी चार सीटें अन्य को मिली थी. इनमें से 13 सीटें रविदास समुदाय के नेता जीते थे, जबकि 11 पर पासवान समुदाय से आने वाले नेताओं ने कब्जा किया था.
2005 में जेडीयू को 15 सीटें मिली थी और 2010 में 19 सीटें जीती थी. बीजेपी के खाते में 2005 में 12 सीटें आई थी और 2010 में 18 सीटें आई थी. आरजेडी को 2005 में 6 सीटें मिली थी, जो 2010 में घटकर 1 रह गई थी. 2005 में 2 सीटें जीतने वाली एलजीपी ने तो 2010 में इन सीटों पर खाता तक नहीं खुला और कांग्रेस का भी हाल कुछ यूं ही था.
पासवान समुदाय पर एलजीपी की है पकड़
हालांकि, जीतन राम मांझी जब 8 महीने मुख्यमंत्री पद पर थे, तो उनका सारा फोकस इस बात पर था कि वह कैसे महादलित का चेहरा बन सके. लेकिन बिहार सरकार के पूर्व मंत्री श्याम रजक ने विगत दिनों में दलित नेताओं को एकजुट करने का पूरा प्रयास किया था. लेकिन इसका परिणाम अब तक देखने को नहीं मिल पाया है. पासवान समुदाय पर आज भी एलजीपी की पकड़ मानी जाती है, हालांकि दलित वोट को लेकर कौन सी गठबंधन पार्टी सरकार बना पाती है. यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे.