पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलने का ऐलान किया. अब इस अवॉर्ड का नाम राजीव गांधी खेल रत्न (Rajiv Gandhi Khel Ratna) की जगह मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड (Major Dhyan Chand Khel Ratna Award) रख दिया गया है. ऐसे में केंद्र सरकार के इस फैसले का कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी ने स्वागत किया है. लेकिन सरकार पर खेल की नीतियों को लेकर सवाल भी उठाए हैं.
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सीपीआईएम (CPIM) के केंद्रीय कमेटी के सदस्य अरुण कुमार मिश्रा ने कहा कि राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड का नाम बदलकर ध्यानचंद्र खेल रत्न अवॉर्ड कर दिया गया है, यह अच्छा फैसला है. खेल जगत से जुड़े अवॉर्ड उन्हीं लोगों के नाम पर होने चाहिए, जो लोग खेल जगत से जुड़े हुए हैं. जैसे कि कोई खिलाड़ी हो या फिर कोई कोच रहा हो.
'सरकार सिर्फ नाम बदलने का ही काम करना जानती है. खेल जगत से जुड़े शख्सियत के नाम पर खेल अवॉर्ड का नाम किया गया है, यह एक सही कदम है. लेकिन सरकार नाम बदलकर सांप्रदायिक माहौल कायम करने का प्रयास कर रही है. इसके अलावा नाम बदलकर नेहरू परिवार के खिलाफ राजनीतिक अभियान भी चलाती है. नाम बदलने से कुछ नहीं होता. अगर सही मायने में खेल का उत्थान करना है तो देश में खेल की नीतियों में बदलाव लाना होगा.' -अरुण कुमार मिश्रा, सदस्य, केंद्रीय कमेटी, सीपीआईएम
अरुण कुमार मिश्रा ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने बड़े देश से ओलंपिक में इतने कम मेडल आए हैं. जितने भी खिलाड़ियों ने मेडल लाया है, वह काफी गरीब परिवार से आते हैं. ऐसे में देश का मान सम्मान गरीब परिवार के खिलाड़ियों ने ही बढ़ाया है. इसमें सरकार का कोई योगदान नहीं है. यह खिलाड़ियों के कठिन परिश्रम का ही नतीजा है कि वे मेडल ला पाए हैं. सरकार को अगर खेल का सही मायने में विकास करना है तो खेल से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाना होगा. खिलाड़ियों के लिए प्रोत्साहन नीति लानी होगी.
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