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Anand Mohan को रिहाई और गरीब बंदियों के साथ भेदभाव... TADA बंदियों के परिजनों ने नीतीश सरकार से पूछा सवाल - भाकपा माले की टाडा बंदियों को रिहा करने की मांग

CPIML ने टाडा बंदियों की रिहाई की मांग को लेकर पटना में धरना प्रदर्शन किया. इस दौरान कैदियों के परिजन भी मौजूद रहे. सभी ने सरकार पर आनंद मोहन सहित 27 लोगों की रिहाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर 14 साल वालों को रिहाई तो फिर 20-22 साल से जेल में बंद कैदियों के साथ भेदभाव क्यों किया जा रहा है?

CPI ML protests in Patna
CPI ML protests in Patna
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Published : Apr 28, 2023, 4:22 PM IST

Protest of relatives of TADA prisoners

पटना: शुक्रवार को जेल में बंद कैदियों के साथ हैसियत के आधार पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए भाकपा माले विधायकों ने टाडा बंदियों को रिहा करने की मांग को लेकर बंदियों के परिजनों के साथ एक दिवसीय सांकेतिक धरना प्रदर्शन किया. विधायकों ने वीरचंद पटेल पथ स्थित विधायक आवास के परिसर में धरना दिया और नीतीश कुमार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. पार्टी विधायकों ने कहा कि देश में टाडा कानून खत्म हो चुका है. बावजूद इसके इस कानून के तहत गरीबों और पिछड़ों को परेशान किया जा रहा है.

पढ़ें- Ashok Chowdhary attack on BJP: 'सुशील मोदी कहते थे जब राजीव गांधी के हत्यारों को छोड़ा जा सकता है तो आनंद मोहन को क्यों नहीं'

'22 साल सजा काटने के बाद भी जेल में हैं 80 साल के ससुर': परिजनों का आरोप है कि 14 वर्ष तक की सजा काटने वाले हिस्ट्रीशीटर आरोपियों को रिहा कर दिया जा रहा है लेकिन जो झूठे आरोप में जेल भेजे गए हैं उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा. धरना प्रदर्शन में बैठी नीरू देवी और कमला देवी ने बताया कि उनके ससुर चुरामन भगत 80 वर्ष से अधिक उम्र के हो गए हैं और बीमार हैं. टाडा कानून के तहत 22 साल से अधिक समय से जेल में हैं. चुरामन भगत के बेटे की मौत हो चुकी है.

"पूरा परिवार परेशान और प्रताड़ित है लेकिन बावजूद इसके सरकार रिहा नहीं कर रही जबकि सजा की अवधि भी पूरी हो चुकी है. गलत तरीके से उन लोगों को फंसाया गया और सरकार पैसे वाले बड़े अपराधियों को रिहा कर रही है लेकिन गरीबों को रिहा नहीं कर रही."- नीरू देवी, कैदी की परिजन

'25 साल से पति की रिहाई का है इंतजार': टाडा कानून के तहत बंदी अरविंद चौधरी की पत्नी फुलवा देवी ने बताया कि मेरे बच्चे बहुत ही छोटे थे और इस घटना में वह शामिल नहीं थे. बावजूद इसके साजिश के तहत उन्हें फंसाया गया और निर्दोष होते हुए भी उनके पति सजा भुगत रहे हैं. 25 वर्ष से अधिक समय से जेल में हैं और अब तबीयत भी अच्छी नहीं रहती है.

"जो लोग कई हत्या कर चुके हैं वह लोग सजा काट के जेल से छूट जा रहे हैं लेकिन मेरे पति सिर्फ घटनास्थल पर मौजूद थे और उन्हें पकड़ लिया गया. आज वह 25 वर्ष से अधिक समय से जेल में बंद हैं. इस घटना के बाद पूरा परिवार तबाह हो चुका है. बिखर चुका है. हम सरकार से गुहार लगाते हैं कि मेरे पति को रिहा करें."- फुलवा देवी,अरविंद चौधरी की पत्नी

'कैदियों से भेदभाव कर रही नीतीश सरकार': भाकपा माले विधायक सुदामा प्रसाद ने कहा कि नीतीश कुमार की सरकार कैदियों के साथ भेदभाव कर रही है. एक तरफ 27 कुख्यात अपराधियों को जेल मैनुअल में बदलाव करके सरकार 14 वर्ष की सजा काट चुके कैदियों को रिहा कर रही है. जबकि दूसरी तरफ टाडा कानून जो देश में खत्म हो चुका है उसके आधार पर जो गरीब 22 वर्ष से अधिक समय से जेल में बंद है. सजा की अवधि भी पूरी हो चुकी है, उन्हें रिहा नहीं कर रही. यह सरकार का भेदभाव पूर्ण रवैया है. उन्होंने कहा कि इन कैदियों की परिहार की अवधि को भी जोड़ दिया जाए तो 30 साल से अधिक समय से जेल में है जबकि हाल ही में सरकार ने आनंद मोहन को छोड़ा है जो लगभग 16 साल की सजा काटे थे.

"हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि सरकार जेल में बंद कैदियों के साथ क्यों इस प्रकार भेदभाव पूर्ण रवैया अपना रही है. इसी के विरोध में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं और टाडा बंदियों की रिहाई हमारी पुरानी रही है. इससे पहले भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इनकी रिहाई की मांग कर चुके हैं क्योंकि कुल 14 लोग 1988 के भदासी कांड में सजायाफ्ता हुए थे और इनमें से 6 लोग ही जीवित बचे हैं बाकी की मृत्यु हो चुकी है."- सुदामा प्रसाद, सीपीआईएमएल विधायक

'टाडा कानून खत्म हो चुका है': वहीं भाकपा माले विधायक दल के नेता महबूब आलम ने कहा कि एक तरफ सरकार ने 14 वर्ष से अधिक की उम्र कैद की सजा काट चुके कुछ कैदियों को छोड़ने का निर्णय लिया है लेकिन दूसरी तरफ टाडा बंदियों कुछ सरकार अभी तक जेल में बंद रखे हुए हैं. यह टाडा बंदी वह हैं जो गरीब हैं जो अपनी पैरवी के लिए वकील नहीं रख सकते हैं. आज जब देश में टाडा कानून खत्म हो चुका है बावजूद इसके इस कानून के तहत क्यों लोगों को जेल में बंद रखा गया है जबकि सजा की अवधि भी काट चुके हैं. इन गरीब कैदियों को 1988 की तत्कालीन सरकार ने सबक सिखाने के लिए टाडा के तहत मुकदमा दर्ज कराया था क्योंकि यह सभी आंदोलनकारी थे. 4 साल की सजा काट चुके अपराधियों को जेल में उनके व्यवहार को देखते हुए सरकार ने छोड़ने का निर्णय लिया है तो यह इन बचे हुए 6 टाडा बंदियों को सरकार क्यों नहीं रिहा कर रही.

"इन 6 बंदियों में 3 अस्पताल में इलाजरत हैं और बहुत अधिक वृद्ध हैं. सरकार से डिमांड करते हैं कि इन सभी छह टाडा बंदियों को सामूहिक माफी दे. इसके अलावा शराबबंदी कानून के तहत जो गरीब जेलों में बंद हैं उन्हें सामूहिक माफी देते हुए रिहा करें. धरना प्रदर्शन के बाद विधायकों का प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलकर इन बंदियों को रिहा करने की मांग को लेकर ज्ञापन सौंपेगा. इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होती है तो पूरे मामले को लेकर पूरे प्रदेश में बड़ा आंदोलन छेड़ा जाएगा."- महबूब आलम, सीपीआईएमएल विधायक

क्या है अरवल भदासी कांड?: बता दें कि साल 1988 में अरवल जिला के भदासी में तालाब से पानी निकालने के विवाद में एक घटना घटी थी, जिसमें कुछ राउंड गोली चली थी और 3 लोगों और एक पुलिसकर्मी की मृत्यु हुई थी. इस घटना में जो लोग गिरफ्तार हुए उन पर टाडा कानून के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. टाडा कानून में कई खामियां थी और मानवाधिकार नियमों का उल्लंघन होता था. ऐसे में 1995 में यह कानून खत्म कर दिया गया.

Protest of relatives of TADA prisoners

पटना: शुक्रवार को जेल में बंद कैदियों के साथ हैसियत के आधार पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए भाकपा माले विधायकों ने टाडा बंदियों को रिहा करने की मांग को लेकर बंदियों के परिजनों के साथ एक दिवसीय सांकेतिक धरना प्रदर्शन किया. विधायकों ने वीरचंद पटेल पथ स्थित विधायक आवास के परिसर में धरना दिया और नीतीश कुमार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. पार्टी विधायकों ने कहा कि देश में टाडा कानून खत्म हो चुका है. बावजूद इसके इस कानून के तहत गरीबों और पिछड़ों को परेशान किया जा रहा है.

पढ़ें- Ashok Chowdhary attack on BJP: 'सुशील मोदी कहते थे जब राजीव गांधी के हत्यारों को छोड़ा जा सकता है तो आनंद मोहन को क्यों नहीं'

'22 साल सजा काटने के बाद भी जेल में हैं 80 साल के ससुर': परिजनों का आरोप है कि 14 वर्ष तक की सजा काटने वाले हिस्ट्रीशीटर आरोपियों को रिहा कर दिया जा रहा है लेकिन जो झूठे आरोप में जेल भेजे गए हैं उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा. धरना प्रदर्शन में बैठी नीरू देवी और कमला देवी ने बताया कि उनके ससुर चुरामन भगत 80 वर्ष से अधिक उम्र के हो गए हैं और बीमार हैं. टाडा कानून के तहत 22 साल से अधिक समय से जेल में हैं. चुरामन भगत के बेटे की मौत हो चुकी है.

"पूरा परिवार परेशान और प्रताड़ित है लेकिन बावजूद इसके सरकार रिहा नहीं कर रही जबकि सजा की अवधि भी पूरी हो चुकी है. गलत तरीके से उन लोगों को फंसाया गया और सरकार पैसे वाले बड़े अपराधियों को रिहा कर रही है लेकिन गरीबों को रिहा नहीं कर रही."- नीरू देवी, कैदी की परिजन

'25 साल से पति की रिहाई का है इंतजार': टाडा कानून के तहत बंदी अरविंद चौधरी की पत्नी फुलवा देवी ने बताया कि मेरे बच्चे बहुत ही छोटे थे और इस घटना में वह शामिल नहीं थे. बावजूद इसके साजिश के तहत उन्हें फंसाया गया और निर्दोष होते हुए भी उनके पति सजा भुगत रहे हैं. 25 वर्ष से अधिक समय से जेल में हैं और अब तबीयत भी अच्छी नहीं रहती है.

"जो लोग कई हत्या कर चुके हैं वह लोग सजा काट के जेल से छूट जा रहे हैं लेकिन मेरे पति सिर्फ घटनास्थल पर मौजूद थे और उन्हें पकड़ लिया गया. आज वह 25 वर्ष से अधिक समय से जेल में बंद हैं. इस घटना के बाद पूरा परिवार तबाह हो चुका है. बिखर चुका है. हम सरकार से गुहार लगाते हैं कि मेरे पति को रिहा करें."- फुलवा देवी,अरविंद चौधरी की पत्नी

'कैदियों से भेदभाव कर रही नीतीश सरकार': भाकपा माले विधायक सुदामा प्रसाद ने कहा कि नीतीश कुमार की सरकार कैदियों के साथ भेदभाव कर रही है. एक तरफ 27 कुख्यात अपराधियों को जेल मैनुअल में बदलाव करके सरकार 14 वर्ष की सजा काट चुके कैदियों को रिहा कर रही है. जबकि दूसरी तरफ टाडा कानून जो देश में खत्म हो चुका है उसके आधार पर जो गरीब 22 वर्ष से अधिक समय से जेल में बंद है. सजा की अवधि भी पूरी हो चुकी है, उन्हें रिहा नहीं कर रही. यह सरकार का भेदभाव पूर्ण रवैया है. उन्होंने कहा कि इन कैदियों की परिहार की अवधि को भी जोड़ दिया जाए तो 30 साल से अधिक समय से जेल में है जबकि हाल ही में सरकार ने आनंद मोहन को छोड़ा है जो लगभग 16 साल की सजा काटे थे.

"हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि सरकार जेल में बंद कैदियों के साथ क्यों इस प्रकार भेदभाव पूर्ण रवैया अपना रही है. इसी के विरोध में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं और टाडा बंदियों की रिहाई हमारी पुरानी रही है. इससे पहले भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से इनकी रिहाई की मांग कर चुके हैं क्योंकि कुल 14 लोग 1988 के भदासी कांड में सजायाफ्ता हुए थे और इनमें से 6 लोग ही जीवित बचे हैं बाकी की मृत्यु हो चुकी है."- सुदामा प्रसाद, सीपीआईएमएल विधायक

'टाडा कानून खत्म हो चुका है': वहीं भाकपा माले विधायक दल के नेता महबूब आलम ने कहा कि एक तरफ सरकार ने 14 वर्ष से अधिक की उम्र कैद की सजा काट चुके कुछ कैदियों को छोड़ने का निर्णय लिया है लेकिन दूसरी तरफ टाडा बंदियों कुछ सरकार अभी तक जेल में बंद रखे हुए हैं. यह टाडा बंदी वह हैं जो गरीब हैं जो अपनी पैरवी के लिए वकील नहीं रख सकते हैं. आज जब देश में टाडा कानून खत्म हो चुका है बावजूद इसके इस कानून के तहत क्यों लोगों को जेल में बंद रखा गया है जबकि सजा की अवधि भी काट चुके हैं. इन गरीब कैदियों को 1988 की तत्कालीन सरकार ने सबक सिखाने के लिए टाडा के तहत मुकदमा दर्ज कराया था क्योंकि यह सभी आंदोलनकारी थे. 4 साल की सजा काट चुके अपराधियों को जेल में उनके व्यवहार को देखते हुए सरकार ने छोड़ने का निर्णय लिया है तो यह इन बचे हुए 6 टाडा बंदियों को सरकार क्यों नहीं रिहा कर रही.

"इन 6 बंदियों में 3 अस्पताल में इलाजरत हैं और बहुत अधिक वृद्ध हैं. सरकार से डिमांड करते हैं कि इन सभी छह टाडा बंदियों को सामूहिक माफी दे. इसके अलावा शराबबंदी कानून के तहत जो गरीब जेलों में बंद हैं उन्हें सामूहिक माफी देते हुए रिहा करें. धरना प्रदर्शन के बाद विधायकों का प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलकर इन बंदियों को रिहा करने की मांग को लेकर ज्ञापन सौंपेगा. इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होती है तो पूरे मामले को लेकर पूरे प्रदेश में बड़ा आंदोलन छेड़ा जाएगा."- महबूब आलम, सीपीआईएमएल विधायक

क्या है अरवल भदासी कांड?: बता दें कि साल 1988 में अरवल जिला के भदासी में तालाब से पानी निकालने के विवाद में एक घटना घटी थी, जिसमें कुछ राउंड गोली चली थी और 3 लोगों और एक पुलिसकर्मी की मृत्यु हुई थी. इस घटना में जो लोग गिरफ्तार हुए उन पर टाडा कानून के तहत मुकदमा दर्ज किया गया. टाडा कानून में कई खामियां थी और मानवाधिकार नियमों का उल्लंघन होता था. ऐसे में 1995 में यह कानून खत्म कर दिया गया.

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