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Corona Effect: कोरोनाकाल में भगवान भरोसे 'मूर्तिकार', आर्थिक संकट के चक्रव्यूह में फंसे

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Published : Jan 22, 2022, 9:47 AM IST

बिहार में कोरोना काल (Corona Period in Bihar) में लगी पाबंदियों के चलते मूर्तिकार भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं. स्कूल, कोचिंग और विभिन्न शैक्षणिक संस्थान 6 फरवरी तक बंद हैं. जिसके कारण मूर्तिकारों की मूर्तियां बिक नहीं रही हैं, जिससे मूर्तिकार दाने-दाने के लिए मोहताज हो रहे हैं. पढ़ें रिपोर्ट..

Corona Effect on business of sculptors
Corona Effect on business of sculptors

पटना: बिहार में कोरोना संकट में मूर्तिकला पर कोरोना की मार (Corona hit on sculpture) पड़ी है. कोरोना से मूर्तिकारों के व्यवसाय पर असर (Corona Effect on business of sculptors) पड़ा है. सरस्वती पूजा में इस बार उनकी बनाई प्रतिमाएं मनमाफिक बिक नहीं रही हैं. जिस कारण मूर्तिकार आर्थिक संकट के चक्रव्यूह में फंस गए हैं, जिससे उनका जीवन यापन करना भी बेहद मुश्किल हो गया है. आगामी 5 फरवरी को बसंत पंचमी के अवसर पर पूरे देशभर में मां सरस्वती पूजा धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन इस बार कोरोना काल में सरकारी और निजी विद्यालय कोचिंग सेंटर समेत सार्वजनिक स्थलों पर मां सरस्वती पूजा का आयोजन पर ग्रहण लग गया है.

ये भी पढ़ें- पटना AIIMS में कोरोना संक्रमित 4 महिलाओं की मौत, 13 नए केस आए सामने

नए साल की शुरुआत में मूर्तियों की बुकिंग की शुरुआत हो जाती थी, मूर्तिकार अपने-अपने स्थलों पर विभिन्न प्रकार के प्रतिमाओं को बनाने में जुट जाया करते थे, लेकिन इस बार कोरोना काल को लेकर जारी गाइडलाइन के बाद भी पूजा की तैयारी धरी की धरी रह गई है. स्कूल, कोचिंग और विभिन्न शैक्षणिक संस्थान इस पर 6 फरवरी तक बंद है, जिसके कारण मूर्तिकारों की मूर्तियां नहीं बिक रही हैं. ऐसे में लोग दाने दाने के लिए मोहताज हो रहे हैं और भूखे मरने को विवश है.

''मूर्ति निर्माण में लगे कलाकारों ने बताया कि पिछले साल 400 रुपए टेलर मिलने वाली मिट्टी इस बार 600 रुपए हो गई है. 50 रुपए बोझा नेवारी मिल रही है. एक बांस की कीमत 200 है, इसके अलावा काटी सुतली और पेंट की कीमतों में उछाल आ गया है. इतना ही नहीं पहले कुम्हार मिट्टी और बाद में बालू मिट्टी से मूर्ति बनाया करते थे. लेकिन, अब महंगाई के कारण चिकनी मिट्टी से काम चलाना पड़ रहा है.''- नागेश्वर प्रसाद विश्वकर्मा, मूर्तिकार, मसौढ़ी

ये भी पढ़ें- बिहार में कोरोना के 3475 नए मामले, एक्टिव मरीजों की संख्या अब 26673

ये मूर्तिकार अपने के हाथों से मिट्टी को मूर्ति का नायाब देते हैं, जिसे देखकर हर कोई तारीफ करने को विवश है. लेकिन, मूर्तियों में जान डालने वाले इन हुनरमंद को कड़ी मेहनत के बावजूद मनमाफिक रकम मिलने की गुंजाइश कोरोना काल में नहीं मिल रही है. कोरोना की तीसरी लहर में हर कोई परेशान है. ऐसे में आगामी 5 फरवरी को बसंत पंचमी के आगमन पर मां सरस्वती की पूजा की जाती है, लेकिन मूर्तिकारों को इस बार कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. स्कूल कोचिंग संस्थान बंद रहने से मूर्तियां नहीं बिक रही हैं.

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पटना: बिहार में कोरोना संकट में मूर्तिकला पर कोरोना की मार (Corona hit on sculpture) पड़ी है. कोरोना से मूर्तिकारों के व्यवसाय पर असर (Corona Effect on business of sculptors) पड़ा है. सरस्वती पूजा में इस बार उनकी बनाई प्रतिमाएं मनमाफिक बिक नहीं रही हैं. जिस कारण मूर्तिकार आर्थिक संकट के चक्रव्यूह में फंस गए हैं, जिससे उनका जीवन यापन करना भी बेहद मुश्किल हो गया है. आगामी 5 फरवरी को बसंत पंचमी के अवसर पर पूरे देशभर में मां सरस्वती पूजा धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन इस बार कोरोना काल में सरकारी और निजी विद्यालय कोचिंग सेंटर समेत सार्वजनिक स्थलों पर मां सरस्वती पूजा का आयोजन पर ग्रहण लग गया है.

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नए साल की शुरुआत में मूर्तियों की बुकिंग की शुरुआत हो जाती थी, मूर्तिकार अपने-अपने स्थलों पर विभिन्न प्रकार के प्रतिमाओं को बनाने में जुट जाया करते थे, लेकिन इस बार कोरोना काल को लेकर जारी गाइडलाइन के बाद भी पूजा की तैयारी धरी की धरी रह गई है. स्कूल, कोचिंग और विभिन्न शैक्षणिक संस्थान इस पर 6 फरवरी तक बंद है, जिसके कारण मूर्तिकारों की मूर्तियां नहीं बिक रही हैं. ऐसे में लोग दाने दाने के लिए मोहताज हो रहे हैं और भूखे मरने को विवश है.

''मूर्ति निर्माण में लगे कलाकारों ने बताया कि पिछले साल 400 रुपए टेलर मिलने वाली मिट्टी इस बार 600 रुपए हो गई है. 50 रुपए बोझा नेवारी मिल रही है. एक बांस की कीमत 200 है, इसके अलावा काटी सुतली और पेंट की कीमतों में उछाल आ गया है. इतना ही नहीं पहले कुम्हार मिट्टी और बाद में बालू मिट्टी से मूर्ति बनाया करते थे. लेकिन, अब महंगाई के कारण चिकनी मिट्टी से काम चलाना पड़ रहा है.''- नागेश्वर प्रसाद विश्वकर्मा, मूर्तिकार, मसौढ़ी

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ये मूर्तिकार अपने के हाथों से मिट्टी को मूर्ति का नायाब देते हैं, जिसे देखकर हर कोई तारीफ करने को विवश है. लेकिन, मूर्तियों में जान डालने वाले इन हुनरमंद को कड़ी मेहनत के बावजूद मनमाफिक रकम मिलने की गुंजाइश कोरोना काल में नहीं मिल रही है. कोरोना की तीसरी लहर में हर कोई परेशान है. ऐसे में आगामी 5 फरवरी को बसंत पंचमी के आगमन पर मां सरस्वती की पूजा की जाती है, लेकिन मूर्तिकारों को इस बार कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. स्कूल कोचिंग संस्थान बंद रहने से मूर्तियां नहीं बिक रही हैं.

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