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...ऐसे में नामुमकिन है तेजस्वी के लिए मुख्यमंत्री बनना! - तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने की राह में मुश्किल

कुशेश्वरस्थान (Kusheshwarsthan) में आरजेडी के उम्मीदवार उतारने के फैसले से कांग्रेस (Congress) काफी नाराज है. बिहार प्रभारी भक्त चरण दास (Bhakt Charan Das) ने तो इशारों-इशारों में ये भी कह दिया कि अगर यही रुख रहा तो भविष्य में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के लिए बिहार का मुख्यमंत्री बनने का सपना साकार नहीं हो पाएगा, क्योंकि कांग्रेस के सहयोग और समर्थन के बगैर वे सरकार नहीं बना सकते हैं.

Tejashwi Yadav
Tejashwi Yadav
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Published : Oct 7, 2021, 10:52 PM IST

पटना: तारापुर और कुशेश्वरस्थान (Tarapur and Kusheshwarsthan) में हो रहे उपचुनाव (By-election) में इतने सियासी मापदंड खड़े हो रहे हैं, जो कल की सियासत का भविष्य वाचन भी कर दे रहे हैं. कांग्रेस (Congress) ने अपने दोनों सीटों पर उम्मीदवार उतारे तो पार्टी के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास (Bhakt Charan Das) ने कह दिया कि राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने विचारधारा से पीछे हटकर गठबंधन को तोड़ दिया. हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि अभी नाम वापसी का वक्त बचा हुआ है. अगर नाम वापसी तक आरजेडी कुछ विचार कर लेती है और नाम वापस ले लेती है तो हमारा गठबंधन टिका रहेगा, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो नाम वापसी के बाद गठबंधन नहीं रहेगा.

ये भी पढ़ें: मांझी-कुशवाहा और सहनी के बाद कांग्रेस ने भी छोड़ा साथ, क्या महागठबंधन को संभाल नहीं पा रहे तेजस्वी?

भक्त चरण दास ने यहां तक कह दिया कि आने वाले समय में अगर हालात बदलते सरकार बनाने की बात आती और मुख्यमंत्री बनने की बात होती तो तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) को ही इसका फायदा मिलता लेकिन उन्होंने विचारधारा की राजनीति को छोड़कर सब कुछ खत्म कर दिया.

2020 में जिन लोगों के साथ समझौते की राजनीति में तेजस्वी यादव चुनाव लड़े थे, उससे यह माना जा रहा था कि तेजस्वी यादव में राजनीतिक परिपक्वता आ गई है. कांग्रेस भी जिद पर आ गई कि सिर्फ एक सीट के लिए राष्ट्रीय जनता दल ने कई सालों पुराना साथ छोड़ दिया. हालांकि यह विरोध कोई बहुत पुराना नहीं है. 2010 में भी इसी तरह की सियासत ने दोनों राजनीतिक दलों को अलग कर दिया था. अनिल कुमार सिन्हा उस समय कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे और लालू यादव से राजनीतिक विरोध में सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ गए. परिणाम हुआ कि सिर्फ 4 सीटें ही जीत पाई. खामियाजा आरजेडी को भी भुगतना पड़ा था और महज 22 सीटों पर सिमट कर रह गई थी. इतना ही नहीं विधानसभा में विरोधी दल का दर्जा भी पार्टी को नहीं मिल पाया.

ये भी पढ़ें: 'सिर्फ एक सीट के लिए विचारधारा से समझौता कर RJD ने कांग्रेस से गठबंधन तोड़ा'

वहीं, कांग्रेस और आरजेडी जब फिर एकजुट हुए और बिहार की राजनीति में जिस तरीके से उनकी वापसी हुई, यह कहा जाने लगा कि तेजस्वी की राजनीतिक जमीन तैयार हो गई और आगे की सियासत तेजस्वी बिहार में काफी मजबूती से करेंगे लेकिन महज 2 सीटों के उपचुनाव में राजनैतिक महत्वाकांक्षा का अहंकार इस कदर दोनों राजनीतिक दलों पर आ गया कि गठबंधन का आधार तो टूटा ही अब समझौते को उस राजनीति पर भी बयानबाजी शुरू हो गई है, जिसमें मुख्यमंत्री कौन बनेगा और बनाने की जिम्मेदारी किसकी थी. अगर नहीं बनेगा तो उसकी वजह क्या है.

ईटीवी भारत से खास बातचीत में भक्त चरण दास ने इस बात को कहा है कि अभी नाम वापसी का वक्त बचा हुआ है. अगर तबतक राष्ट्रीय जनता दल कुशेश्वरस्थान से अपने उम्मीदवार का नाम वापस ले लेती है तो यह गठबंधन बच जाएगा लेकिन अगर नाम वापस नहीं लेती है तो फिर या महागठबंधन बचना मुश्किल है. अगर महागठबंधन नहीं बचा तो तेजस्वी यादव के लिए जो जनाधार बाहर खड़ा हो रहा था, उसका बच पाना भी नामुमकिन हो जाएगा, क्योंकि कांग्रेस निश्चित तौर पर तेजस्वी के लिए एक बड़ा घटक दल था और सियासी मुद्दों के लिए एक वजूद वाला राजनैतिक दल भी. जिसकी गोद में बैठकर अपनी सियासी गद्दी तेजस्वी यादव सेट कर सकते थे, लेकिन वहां भी वर्तमान राजनीति में विभेद दिख ही रहा है. हालांकि राजनीति संभावनाओं का खेल है. ना तो इसमें कोई स्थाई दोस्त होता है और ना कोई निजी तौर पर दुश्मन. ऐसे में यह बात तो साफ तौर पर नहीं कही जा सकती कि कल के बदले राजनीतिक हालात में समझौते का समीकरण क्या होगा, लेकिन आज के समय में अगर कांग्रेस के रुख को समझा जाए तो नाराजगी निश्चित तौर पर इस कदर बढ़ चुकी है कि तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने पर भी सवाल खड़ा होने लगा है.

पटना: तारापुर और कुशेश्वरस्थान (Tarapur and Kusheshwarsthan) में हो रहे उपचुनाव (By-election) में इतने सियासी मापदंड खड़े हो रहे हैं, जो कल की सियासत का भविष्य वाचन भी कर दे रहे हैं. कांग्रेस (Congress) ने अपने दोनों सीटों पर उम्मीदवार उतारे तो पार्टी के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास (Bhakt Charan Das) ने कह दिया कि राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने विचारधारा से पीछे हटकर गठबंधन को तोड़ दिया. हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि अभी नाम वापसी का वक्त बचा हुआ है. अगर नाम वापसी तक आरजेडी कुछ विचार कर लेती है और नाम वापस ले लेती है तो हमारा गठबंधन टिका रहेगा, लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो नाम वापसी के बाद गठबंधन नहीं रहेगा.

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भक्त चरण दास ने यहां तक कह दिया कि आने वाले समय में अगर हालात बदलते सरकार बनाने की बात आती और मुख्यमंत्री बनने की बात होती तो तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) को ही इसका फायदा मिलता लेकिन उन्होंने विचारधारा की राजनीति को छोड़कर सब कुछ खत्म कर दिया.

2020 में जिन लोगों के साथ समझौते की राजनीति में तेजस्वी यादव चुनाव लड़े थे, उससे यह माना जा रहा था कि तेजस्वी यादव में राजनीतिक परिपक्वता आ गई है. कांग्रेस भी जिद पर आ गई कि सिर्फ एक सीट के लिए राष्ट्रीय जनता दल ने कई सालों पुराना साथ छोड़ दिया. हालांकि यह विरोध कोई बहुत पुराना नहीं है. 2010 में भी इसी तरह की सियासत ने दोनों राजनीतिक दलों को अलग कर दिया था. अनिल कुमार सिन्हा उस समय कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे और लालू यादव से राजनीतिक विरोध में सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ गए. परिणाम हुआ कि सिर्फ 4 सीटें ही जीत पाई. खामियाजा आरजेडी को भी भुगतना पड़ा था और महज 22 सीटों पर सिमट कर रह गई थी. इतना ही नहीं विधानसभा में विरोधी दल का दर्जा भी पार्टी को नहीं मिल पाया.

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वहीं, कांग्रेस और आरजेडी जब फिर एकजुट हुए और बिहार की राजनीति में जिस तरीके से उनकी वापसी हुई, यह कहा जाने लगा कि तेजस्वी की राजनीतिक जमीन तैयार हो गई और आगे की सियासत तेजस्वी बिहार में काफी मजबूती से करेंगे लेकिन महज 2 सीटों के उपचुनाव में राजनैतिक महत्वाकांक्षा का अहंकार इस कदर दोनों राजनीतिक दलों पर आ गया कि गठबंधन का आधार तो टूटा ही अब समझौते को उस राजनीति पर भी बयानबाजी शुरू हो गई है, जिसमें मुख्यमंत्री कौन बनेगा और बनाने की जिम्मेदारी किसकी थी. अगर नहीं बनेगा तो उसकी वजह क्या है.

ईटीवी भारत से खास बातचीत में भक्त चरण दास ने इस बात को कहा है कि अभी नाम वापसी का वक्त बचा हुआ है. अगर तबतक राष्ट्रीय जनता दल कुशेश्वरस्थान से अपने उम्मीदवार का नाम वापस ले लेती है तो यह गठबंधन बच जाएगा लेकिन अगर नाम वापस नहीं लेती है तो फिर या महागठबंधन बचना मुश्किल है. अगर महागठबंधन नहीं बचा तो तेजस्वी यादव के लिए जो जनाधार बाहर खड़ा हो रहा था, उसका बच पाना भी नामुमकिन हो जाएगा, क्योंकि कांग्रेस निश्चित तौर पर तेजस्वी के लिए एक बड़ा घटक दल था और सियासी मुद्दों के लिए एक वजूद वाला राजनैतिक दल भी. जिसकी गोद में बैठकर अपनी सियासी गद्दी तेजस्वी यादव सेट कर सकते थे, लेकिन वहां भी वर्तमान राजनीति में विभेद दिख ही रहा है. हालांकि राजनीति संभावनाओं का खेल है. ना तो इसमें कोई स्थाई दोस्त होता है और ना कोई निजी तौर पर दुश्मन. ऐसे में यह बात तो साफ तौर पर नहीं कही जा सकती कि कल के बदले राजनीतिक हालात में समझौते का समीकरण क्या होगा, लेकिन आज के समय में अगर कांग्रेस के रुख को समझा जाए तो नाराजगी निश्चित तौर पर इस कदर बढ़ चुकी है कि तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने पर भी सवाल खड़ा होने लगा है.

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