पटना : बिहार में आरक्षण हमेशा से बड़ा मुद्दा रहा है. मंडल कमीशन जब लागू हुआ तो लालू प्रसाद यादव ने बिहार में उसे बड़ा मुद्दा बनाया. 2015 में विधानसभा चुनाव में आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बना था. मोहन भागवत के एक बयान को नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने बीजेपी के खिलाफ बड़ा हथियार बनाया और उसका लाभ भी मिला. अब बिहार में जातीय गणना के बाद नीतीश कुमार ने आरक्षण का नया दाव खेला है. राजनीतिक विशेषज्ञ भी इसे नीतीश कुमार का बड़ा चुनावी दाव मान रहे है.
आरक्षण को नौवीं अनुसूची में डालने की अनुशंसा : जब नीतीश कुमार ने जातीय सर्वे कराने का फैसला लिया था, तो इस समय यह तय माना जा रहा था कि आरक्षण की सीमा बढ़ाई जाएगी. हुआ भी यही, जातीय गणना की रिपोर्ट आने के बाद पिछड़ा, अति पिछड़ा और दलित के आरक्षण में वृद्धि की गई है. 50% की सीमा को बढ़ाकर 65% तक कर दिया गया. कैबिनेट के बाद विधान मंडल से इसे पास कराया गया और अब राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद लागू हो चुका है. केंद्र से भी यह अनुशंसा की गई है कि आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में डाल दें.
नीतीश कुमार ने चुनाव को लेकर तैयार की है पाॅलिसी : राजनीतिक विशेषज्ञ रवि उपाध्याय का कहना है नीतीश कुमार और महागठबंधन की सरकार ने चुनाव को देखकर ही अपनी पॉलिसी तैयार की है और तीव्र गति से आरक्षण को लेकर फैसला लिया है.आरक्षण को लेकर स्थिति बिहार में ऐसी है कि कोई दल चाह कर भी इसका विरोध नहीं कर पा रहा है. 2015 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान से बीजेपी को बहुत नुकसान हुआ था और इसलिए इस बार आरक्षण का विरोध करने की कोई गलती नहीं कर रहा है.
"नीतीश कुमार आरक्षण के कारण 2024 चुनाव को लेकर बिहार में आगे हैं और उन्हें इसका लाभ मिलेगा. बीजेपी को समर्थन के बावजूद नुकसान उठाना पड़ सकता है." - रवि उपाध्याय, राजनीतिक विशेषज्ञ
ऐसे आरक्षण लागू होने के बाद से बीजेपी के नेता लगातार कह रहे हैं कि हम लोगों ने भी शत प्रतिशत समर्थन दिया था, लेकिन आप बिहार सरकार गरीबों के लिए काम करे जो वंचित है उन्हें आरक्षण पहुंचे इस पर कम करे. वही जेडीयू के मंत्री जयंत राज का कहना है कि "आरक्षण तो पूरे देश में इसी तरह लागू होना चाहिए. लेकिन केंद्र सरकार ने जातीय गणना कराई नहीं है. इसलिए आरक्षण पूरे देश में लागू नहीं हो सका. 2024 में यह मुद्दा जरूर बनेगा".
"गरीबों को, दलितों को, पिछड़ों को और वंचितों को समाज की मुख्यधारा से सरकार जोड़ने का काम करे. साथ ही लोगों को इसका लाभ मिलना शुरू हो जाए. इस आरक्षण को लागू कराने में बीजेपी ने 100 प्रतिशत योगदान दिया है और बीजेपी ने सबसे पहले इसके लिए घोषणा की थी."- अरविंद सिंह, प्रवक्ता, बीजेपी
बिहार में आरक्षण का दायरा 75 प्रतिशत : बिहार में अब आरक्षण 75 प्रतिशत कर दिया गया है. इसके तहत ईबीसी 25%, ओबीसी 18%, एससी 20%, एसटी 2% और ईडब्ल्यूएस 10% है. वहीं देश के अन्य राज्यों में जो आरक्षण की व्यवस्था की गई है, उसके तहत सिक्किम में 85 फीसदी, राजस्थान में 64 फीसदी आरक्षण है. इसमें 16% एसी, 12% एसटी, 21% ओबीसी, 10% गरीब सवर्ण और पांच फीसदी एमबीसी वर्ग के लिए है. वहीं तेलंगाना में 64% आरक्षण में 15% एससी, 10% एसटी, 29% ओबीसी और 10% ईडब्ल्यूएस के लिए है.
तमिलनाडु में कुल आरक्षण हैं 69 फीसदी : इसी तरह तमिलनाडु में 69 फीसदी आरक्षण के तहत 18% एससी, एक फीसदी एसटी और 50 फीसदी ओबीसी के लिए है. सिक्किम में 85 फीसदी आरक्षण है. इसमें सात फीसदी एसी, 18 फीसदी एसटी, 40% ओबीसी और 20 फीसदी स्थानीय समुदाय के लिए है. यूपी में 60% आरक्षण है. इसमें 21% एससी, 2% एसटी, 27% ओबीसी और 10% ईडब्ल्यूएस के लिये है. पश्चिम बंगाल में 55 फीसदी आरक्षण है. इसमें 22 फीसदी एससी, 6 फीसदी एसटी, 17 फीसदी ओबीसी और 10% ईडब्ल्यूएस के लिये है.
केरल में ओबीसी को 40% आरक्षण : वहीं उड़ीसा में 59% आरक्षण में 16 फीसदी एससी, 22% एसटी, 11% ओबीसी और 10% ईडब्ल्यूएस के लिए है. केरल में 60 फीसदी आरक्षण लागू है. इसमें 8% एससी, 2% एसटी, 40% ओबीसी और 10% ईडब्ल्यूएस के लिये है. दिल्ली में 59 फीसदी आरक्षण है. इसमें 15% एससी, 7% एसटी, 27% ओबीसी और 10% ईडब्ल्यूएस के लिए है. वहीं छत्तीसगढ़ में 69 फीसदी आरक्षण है. इसमें 13% एससी, 32% एसटी, 14% ओबीसी और 10% ईडब्ल्यूएस के लिए है.
लक्ष्यद्वीप में 100 प्रतिशत आरक्षण : वहीं लक्षद्वीप में अनुसूचित जाति के लिए 100% आरक्षण है. इसके अलावा पूर्वोत्तर के राज्यों मिजोरम, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में 80 फीसदी आरक्षण सिर्फ एसटी समुदाय के लिए है. वहीं मणिपुर में एससी को तीन फीसदी, एसटी को 34% और ओबीसी को 17% आरक्षण यानी कुल 54 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है. त्रिपुरा में सभी वर्गों के लिए 60% आरक्षण की व्यवस्था है. पंजाब में एसटी वर्ग के लिए कोई आरक्षण नहीं है. यहां सबसे ज्यादा एससी को 29 फीसदी, ओबीसी को 12 फीसदी और ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण, यानी कुल मिलाकर 51 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है.
2015 में आरक्षण के मुद्दे पर ही बीजेपी को मिली थी मात : 2015 में आरक्षण बड़ा मुद्दा बना था और नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की जोड़ी ने आरक्षण के मुद्दे पर ही बीजेपी को मात दी थी. महागठबंधन को 178 सीट और एनडीए को 58 सीट विधानसभा चुनाव में मिली थी. इसमें राजद को 80 और जदयू को 71 सीट मिली थी. कांग्रेस को भी 27 सीट मिली थी. वहीं बीजेपी को केवल 53 सीटें मिली थी. महागठबंधन के घटक दलों की ओर से 2015 फिर से दोहराने की बार-बार बात कही जा रही है.
चुनाव में बड़ा मुद्दा बनेगा आरक्षण : अब चुकी आरक्षण भी नीतीश सरकार ने बिहार में लागू कर दिया है, तो तय है कि यह लोकसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश होगी. उसके बाद विधानसभा चुनाव में भी इसे मुद्दा बनाया जाएगा. ऐसे तो आरक्षण देश में हमेशा से बड़ा मुद्दा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने 50% की सीमा भी तय कर रखी है, लेकिन कई राज्यों में उससे अधिक आरक्षण लागू है. अब बिहार में महागठबंधन की सरकार ने भी आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 75% कर दिया है.
सिर्फ चुनाव के लिए दिया गया है आरक्षण : बिहार में आरक्षण को लेकर सब कुछ इतनी जल्दीबाजी में इसलिए किया गया है कि इसका लाभ 2024 में मिल सके. ऐसे नीतीश कुमार और महागठबंधन को 2024 में कितना लाभ मिलेगा, यह तो चुनाव के समय पता चलेगा. फिलहाल क्रेडिट लेने की कोशिश जरूर शुरू हो गई है और अब केंद्र से अनुशंसा कर केंद्र को भी घेरने की कोशिश की गई है.
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